जी.एस.टी. क्या है ? भारत में इसके परिचय के पीछे क्या प्रमुख कारण थे? भारत की अर्थव्यवस्था एवं मौद्रिक नीति पर इसके कार्यान्वयन से क्या लाभ एवं नुकसान हुए ?
जी.एस.टी. क्या है ? भारत में इसके परिचय के पीछे क्या प्रमुख कारण थे? भारत की अर्थव्यवस्था एवं मौद्रिक नीति पर इसके कार्यान्वयन से क्या लाभ एवं नुकसान हुए ?
अथवा
जी.एस.टी. की परिभाषा देते हुए इसके अंतर्राष्ट्रीय औचित्य के बारे में वर्णन करें तथा भारत में इसे लाने के पीछे के उद्देश्यों का वर्णन करें। अर्थव्यवस्था पर हुए इसके नकारात्मक व सकारात्मक प्रभाव का वर्णन करें।
उत्तर – जी.एस.टी. एक अप्रत्यक्ष कर है जो “गुड्स एवं सर्विस टैक्स (वस्तु एवं सेवा कर) का संक्षिप्त रूप है। अप्रत्यक्ष कर से तात्पर्य, ऐसे कर से है जो विवर्तित किए जा सकते हैं अर्थात् दूसरे पर टाले जा सकते हैं। इसमें केन्द्र, राज्य तथा स्थानीय स्तर के लगभग सभी कर समाहित कर दिए जाते हैं तथा पूरे देश में एक समान स्तर पर लागू किया जाता है। जी.एस. टी. एक बहुस्तरीय, मूल्यवर्धित तथा गंतव्य आधारित कर है।
भारत जी.एस.टी. लागू करने वाला दुनिया का 166वां देश बन गया है। जी.एस.टी. सर्वप्रथम 1954 में फ्रांस में लागू किया गया। भारत का जी. एस. टी. मॉडल कनाडा मॉडल पर आधारित है। 122वें संविधान संशोधन विधेयक तथा 101वें संविधान संशोधन द्वारा इसे मान्यता दी गई तथा संविधान में अनुच्छेद-246A, अनुच्छेद 268A, अनुच्छेद-279A जोड़ा गया। अनुच्छेद-279। के तहत जी. एस. टी. परिषद का गठन किया गया जिसका अध्यक्ष केन्द्रीय वित्त मंत्री होता है। इसके द्वारा भारत में 17 अप्रत्यक्ष कर तथा 23 अधिभार को समाप्त कर दिया गया। शराब, पेट्रोलियम, विद्युत जैसी वस्तुओं को (राज्य की एक बड़ी आय का स्रोत होने के कारण) फिलहाल जी.एस.टी. से बाहर रखा गया है। सामाजिक हित में शिक्षा तथा स्वास्थ्य सेवाओं को भी फिलहाल जी.एस.टी. से बाहर रखा गया है ।
भारत में जी.एस.टी. लाने के मुख्य उद्देश्य हैं
1. राज्यों तथा केन्द्र द्वारा अलग-अलग कर वसूलने के कारण कर के ऊपर कर लगता था जिसे कास्केडिंग इफेक्ट कहा जाता है। जीएसटी लागू होने से यह समस्या अब समाप्त हो गई।
2. वस्तु एवं सेवा कर अलग-अलग होने के कारण कई बार इस पर दोनों वसूला जाता था। जीएसटी लागू होने से दोहरी कर वसूली समाप्त हो गई।
3. विभिन्न राज्यों में वस्तुओं पर लगने वाली कर की दर अलग थी, जीएसटी लागू होने के बाद पूरे देश में समान कर की दर लागू हो गई है।
4. भारत में छोटे-बड़े अनेक कर थे जिन्हें हटाकर केवल एक टैक्स व्यवस्था कर दी गई है। अब जीएसटी लागू होने से भारत ‘एक राष्ट्र, एक कर, एक बाजार’ में तब्दील हो गया है।
जीएसटी आजादी के बाद सबसे बड़े आर्थिक सुधारों में से एक है। इसमें कोई संदेह नहीं कि भविष्य में जीएसटी भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए आमूल-चूल सुधार साबित होगा। परन्तु अल्पावधिक में गौर करें तो मामला चिंताजनक बना हुआ है, जिसके कई कारण हैं। यदि इसके प्रावधानों पर गौर करें तो पाते हैं कि वर्तमान जीएसटी कराधान संरचना बहुत जटिल है। जीएसटी प्रणाली में 6 दरें ( 0%, 5%, 12%, 18%, 28%, 28% + सेस ) प्रभावी रूप से लागू हैं। दरों की भिन्नता कर संरचना को तो जटिल बना ही रही हैं साथ ही, अलग-अलग आर्थिक व व्यवसायिक गतिविधियों पर अलग-अलग असर भी डाल रही हैं।
दूसरी समस्या जीएसटी के प्रगतिशील कर प्रणाली के विरुद्ध जुड़ी होने से है। वस्तुओं और सेवाओं पर गरीब व अमीर को समान ‘जीएसटी’ देने से है, जिसे एक प्रगतिशील कर प्रणाली का लक्षण तो बिल्कुल नहीं कहा जा सकता।
तीसरी बड़ी समस्या पेट्रोलियम और अल्कोहल को जीएसटी वे बाहर रखना है। यह स्थिति जीएसटी प्रणाली की अपूर्णता को खुले तौर पर प्रदर्शित करती है। गौरतलब है कि कच्चे क्रूड ऑयल के सापेक्ष केन्द्र व राज्य सरकारें इसका लाभ उपभोक्ताओं तक नहीं पहुंचा रही हैं।
भारतीय अर्थव्यवस्था में असंगठित क्षेत्र का आकार बहुत बड़ा है और यह क्षेत्र करीब 80 से 85% रोजगार प्रदान करता है। जीएसटी लागू होने बाद से यह क्षेत्र व्यापक रूप से प्रभावित हुआ है। मांग घट गई है, उत्पादन सुस्त हुआ है, नेटवर्क की समस्या बनी हुई है। कुछ वस्तुओं में मुद्रास्फीति की स्थिति भी बनी हुई है ।
जीएसटी लागू होने के बाद कुछ सकारात्मक स्थिति भी देखने को मिली है जो धीरे-धीरे जीएसटी के अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभाव को दर्शाने लगे हैं। इनमें सर्वप्रथम अप्रत्यक्ष करदाताओं की संख्या में लगभग 50% की वृद्धि हुई है तथा अप्रत्यक्ष कर में वृद्धि हुई है। विनिर्माण क्षेत्र ने पुनः गति पकड़ ली है। पंजीकृत छोटे फर्मों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है। दीर्घावधिक लाभ में वित्तीय समावेशन में जीएसटी के कारण पड़ने वाले प्रभाव शामिल होंगे। यह रूझान बना रहा तो परिवहन लागत, ईंधन प्रयोग एवं भ्रष्टाचार में उल्लेखनीय कमी लाई जा सकती है। केन्द्र व राज्यों के मध्य आर्थिक संघवाद में वृद्धि हुई है। राज्यों व केन्द्र के बीच सूचना प्रवाह में वृद्धि हुई है।
जीएसटी व्यवस्था लागू होने में आपूर्ति श्रृंखला तथा लॉजिस्टिक्स क्षेत्र पहले से कहीं ज्यादा दक्ष हुआ है। राज्यों द्वारा लगाए गए चेकपोस्ट हटा लिए गए हैं जिससे यात्रा समय में काफी कमी हुई है और भारत वैश्विक स्तर पर धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा है। देश में अंतर्राज्यीय व्यापार का तेजी से बढ़ना शुरू हो गया है।
नयी कराधान व्यवस्था आरंभ होने का सरकार की राजस्व स्थिति पर भी प्रभाव पड़ा है। इससे सरकार को करीब 35 से 36 हजार करोड़ की अनुमानित हानि होगी जो कि 11 माह की कर प्राप्तियों के कारण होगी, न कि जीएसटी के कम वसूली से। जीएसटी से अप्रत्यक्ष करों की प्राप्तियों में वृद्धि हुई है।
जीएसटी के समग्र प्रभावों पर दृष्टि डालें तो एक बात स्पष्ट है कि अल्पकालिक अवधि में तो इन प्रयासों ने अर्थव्यवस्था को कोई लाभ नहीं पहुंचाया, बल्कि अर्थव्यवस्था में सुस्ती लाने में बड़ी भूमिका अदा की है। परन्तु जीएसटी का दीर्घकालिक असर देश के जीडीपी की वृद्धि, व्यापार सुगमता और उद्योग में वृद्धि तथा सरकार के मेक इन इंडिया जैसे कार्यक्रमों पर पड़ेगा। साथ ही इससे ईमानदार कारोबार को बढ़ावा मिलेगा। सरकार ने इसके साथ ही जीएसटी की दरों में राहत का संकेत देते हुए कहा कि जैसे-जैसे कर संग्रह बढ़ता जायेगा, वैसे-वैसे स्लैब को संगत बनाने और दरों को तर्कसंगत बनाने की क्षमता बढ़ती जाएगी। इस प्रकार से कर व्यवस्था सक्षम होने पर चोरी की गुंजाइश खत्म हो जाएगी।
जीएसटी लागू होने के 1 वर्ष पूरे होने पर इसके कार्यान्वयन में काफी सुधार आ चुका है। आइ. एम. एफ. तथा विश्व बैंक ने भी इस बात के संकेत दिए हैं कि अब भारतीय अर्थव्यवस्था रफ्तार पकड़ेगी तथा भारत में कर व्यवस्था में सुधार होने से विदेशी निवेश पर भी असर होगा।
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