निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

(i) पुस्तक समीक्षा
(ii) मस्तिष्क चित्र (माइन्ड मैप )
(iii) विज्ञापन लेखन
उत्तर— (i) पुस्तक समीक्षा—पुस्तक समीक्षा ही एक ऐसा साधन है जो पाठक और पुस्तक के बीच के सम्बन्ध स्थापित करने के साथसाथ उन्हें प्रगाढ़ भी बनाती है। प्रतिदिन सैकड़ों की संख्या में पुस्तकों के प्रकाशन से पाठक भी इस परेशानी से जूझ रहे हैं कि आखिर किस पुस्तक का अध्ययन करें और किसे पढ़ने से छोड़ दें, पुस्तक समीक्षाओं का सहारा लेकर अपनी रुचि से सम्बन्धित श्रेष्ठ पुस्तक का भी चुनाव कर सकने में समर्थ होते हैं। वह पहले विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं या आलोचनात्मक पुस्तकों में प्रकाशित समीक्षाओं के द्वारा पुस्तकों की विषयवस्तु के बारे में जानकारी प्राप्त कर लेता है उसके उपरान्त वह अपने विषय से सम्बन्धित पुस्तकों का चयन कर उनका पूर्ण अध्ययन एवं शोधपरक विश्लेषण करता है। इस तरह से शैक्षिक मूल्य से सम्बद्ध होने के कारण भी पुस्तक समीक्षा अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होती जा रही है ।
साहित्य में उत्पन्न हो रही अनेक विचारधाराओं और प्रवृत्तियों के विषय में आम-आदमी का ज्ञान अधूरा होता है। उन विचारधाराओं और प्रवृत्तियों के कारण साहित्य ने किस प्रकार का नया मोड़ लिया और उनमें ऐसी कौनसी विशेषता है जो उस साहित्य को किसी नए युग के निर्माण के लिए महत्त्वपूर्ण बनाती है। ऐसे प्रश्नों की जानकारी के लिए पुस्तक समीक्षा सबसे विशेष माध्यम है।
किसी नए विवाद को जन्म देती पुस्तकें उस विवाद के विभिन्न पहलुओं को किस हद तक पाठकों के सामने ला पाती हैं यह कार्य पुस्तक समीक्षा द्वारा सरलता से पता चलता है । इस प्रकार पुस्तकों के विशाल भण्डारों में से उचित पुस्तक के चयन की सार्थकता के लिए पुस्तक समीक्षायें ही सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण कार्य करती हैं। इसके द्वारा ही पाठक अपनी रुचि के अनुरूप न केवल पुस्तकों का चयन एवं पाठन ही कर पाता है बल्कि अनावश्यक एवं अरुचिकर पुस्तकों के अध्ययन से भी मुक्ति पा लेता है।
पुस्तक समीक्षक के गुण—
(i) विशेषता
(ii) तटस्थता
(iii) अध्ययन की रुचि
(iv) निष्पक्षता एवं पूर्वाग्रह से मुक्त
(v) सन्तुलित मूल्यांकन दृष्टि
(vi) सहृदयता
(vii) प्रकाशन सम्बन्धी अपेक्षित ज्ञान ।
पुस्तक समीक्षा के प्रकार–विभिन्न वैचारिक चिन्तन की पद्धति और लेखन शैली होने के कारण पुस्तक समीक्षा भी अलग-अलग रूपों में हमारे सामने आती है। डॉ. सन्तोष संघी ने अपनी पुस्तक ‘पुस्तक समीक्षा का इतिहास’ में उसके लिए दस प्रकार निर्धारित किए हैंप्रचारात्मक पुस्तक समीक्षा, परिचयात्मक पुस्तक समीक्षा, निर्णयात्मक पुस्तक समीक्षा, तुलनात्मक पुस्तक समीक्षा, विवादी पुस्तक समीक्षा, सैद्धान्तिक पुस्तक समीक्षा, प्रभाववादी पुस्तक समीक्षा, सर्जनात्मक पुस्तक समीक्षा, पुनर्मूल्यांकन युक्त पुस्तक समीक्षा, आत्म समीक्षा ।
पुस्तक समीक्षा के लेखन प्रक्रिया—
(1) सर्वप्रथम पुस्तक का आरम्भ से लेकर अंत तक अच्छी तरह से अध्ययन कर लेना ।
(2) पुस्तक में जो मुख्य/विशेष बातें आयी हैं, उनको रेखांकित कर लेना चाहिए ।
(3) पुस्तक में लिखी विषयवस्तु के प्रति यदि किसी प्रकार का भ्रम है तो वह उन तथ्यों का परीक्षण भी कर सकता है।
(4) विभिन्न प्रामाणिक स्रोतों को एकत्र करने के लिए आवश्यकता पड़ने पर समीक्षक को विषय से सम्बन्धित अन्य पुस्तकों का अध्ययन कर लेना चाहिए ।
(5) पुस्तक के लेखक और पुस्तक की अपेक्षित जानकारी आरम्भ में ही देनी चाहिए।
(6) पुस्तक की केन्द्रीय विषयवस्तु को दृष्टिगत रखकर लेखक के उद्देश्य और पुस्तक के महत्त्व पर भी अपनी दृष्टि बनाए रखनी चाहिए।
(7) विषयवस्तु के विश्लेषण के समय कोई महत्त्वपूर्ण पक्ष छूट नहीं जाए, यह ध्यान रखना चाहिए।
(8) पुस्तक की भाषिक संरचना और शैलीगत प्रस्तुति का मूल्यांकन करना भी अत्यन्त आवश्यक है ।
(9) प्रकाशन सम्बन्धी जानकारियाँ भी उपलबध करवायी जानी चाहिए।
(10) पुस्तक की भाषा और शैली पर विचार करते हुए उसके कलात्मक सौन्दर्य को पाठक के सामने लाना समीक्षक का ही दायित्व है।
(11) पुस्तक का नाम, लेखक का नाम, प्रकाशक, प्रकाशन वर्ष, पृष्ठ संख्या, मूल्य जैसी जानकारियाँ भी दिया जाना आवश्यक है।
(ii) मस्तिष्क चित्र ( माइन्ड मैप )—जब हम कोई भी चीजें हमारे दिमाग में स्टोर करते हैं / रखते हैं, तो उसका एक तरीका होता है कि हम उस चीज को दिमाग में कैसे रखते हैं। सामान्यतः हम उसको रेखीय तरीके से रखते हैं। जैसे छात्र कक्षा में नोट्स लेते हैं, टॉपिक याद रखते हैं, समझते हैं तो ये सब जैसे-जैसे वे इसके बारे में सुनते हैं, वैसे-वैसे Points लिखते जाते हैं उदाहरण के लिए कक्षा में मान लो फलों के बारे में चर्चा हो रही है कि किस-किस तरह के फल व कौन-कौनसे फल होते हैं, उनको उसी क्रम में छात्र याद रखने का प्रयास करते हैं, इसको हम सामान्य परम्परागत तरीका (Normal Traditional Method) कह सकते हैं। माइन्ड मैप Object oriented programming approach से लिए गए हैं अर्थात् आप एक Base लेकर चल रहे हैं यह एक Structured way है। इसका एक वृक्ष (tree) बन जाता है और उस वृक्ष को Follow करना बहुत आसान होता है। उसको याद रखना ही सरल होता है। हमारे मन में जो स्मृति Organised होती है, उस तकनीक पर यह काम करती है। ये चीजें वैज्ञानिक हैं।
· माइन्ड मैप तकनीक Left and Right Brain की शक्ति का एक साथ इस्तेमाल करती है।
· माइन्ड मैपिंग विज्युअली (Visually) रिवाइज करने का तरीका है।
· यह एक ऐसी नई तकनीक है, जो आपको विषय को समझने और याद रखने में मदद करेगी।
· मस्ती से भरी इस एक्टीविटी का इस्तेमाल आप नोट्स बनाने, ब्रेनस्ट्रॉर्मिंग, अध्ययन, मेमराइजेशन में कर सकते हैं।
· दिमाग में जो अनेक तरह की बातें चलती रहती हैं, उससे छुटकारा पाने अर्थात् Tension free रखने का सुन्दर तरीका है माइंड मैपिंग ।
· दिमाग को तेज रखने के लिए माइंड मैप बहुत जरूरी है ।
माइंड मैप (Mind Maps)—Structured information using both left and right brain.
Traditional Notes-Line by line linear information using left brain.
(1) Words—एक से तीन शब्द होने चाहिए।
(2) Line—पतली या मोटी लाइन बताती है हमारे कमजोर या मजबूत सम्पर्क को बताती है।
(3)…… (डॉट लाइन)—हमारे कमजोर सम्पर्क को दर्शाती है।
(4) Images/picture.
(5) Colour—दिमाग में जितने ज्यादा कलर होंगे, उतने ही अच्छे रहते हैं। उदाहरण के लिए एक महिला अपने परिवार के लिए पूरे सप्ताह को किस प्रकार Mind map के द्वारा Organise करती है—
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि—
(i) माइंड मैप एक डायग्राम है, जिसका उपयोग विषय के टॉपिक को समझने के लिए किया जाता है।
(ii) माइन्ड मैप्स अक्सर ट्री ब्रांच फारमेट में बनाए जाते हैं,
(iii) जिसमें आडियाज की ब्रांचेज निकलती हुई लगती हैं। ये सिर्फ खूबसूरत पिक्चर नहीं है, बल्कि अलग-अलग टॉपिक्स के बीच कनेक्शन बनाने की कला का मिश्रण है। इसमें ज्ञान का सही उपयोग होता है, जिसके लिए दिमाग का सही प्रयोग होता है।
(iv) अगर आप किसी टॉपिक को ठीक से समझ नहीं पाएंगे तो पिक्चर भी ठीक से ड्रॉ नहीं कर पाएँगे। आपको हर विषय के सिलेबस और परीक्षा का पैटर्न पता होना चाहिए। माइन्ड मैप के लिए आपका रचनात्मक होना जरूरी है ।
माइन्ड मैप बनाने का तरीका—
(i) किसी पेपर के बीचों-बीच इमेज बनाकर कलर करें और मुख्य टॉपिक लिखें, क्योंकि कलरफुल इमेजन के जरिए हमारे दिमाग को टॉपिक याद रखने में मदद मिलती है। जो प्वाइंट्स हो, उन्हें बुलेट देकर लिखें।
(ii) टॉपिक की शाखाएँ बनाएँ और अध्याय की मुख्य-मुख्य
बातें अलग-अलग कलर और शेप्स में लिखना शुरू करें। लिखने के लिए ज्यादा से ज्यादा कलर का इस्तेमाल करना बेहतर होगा ।
(iii) अब शाखाओं के साथ दूसरे सब टॉपिक्स के नाम और उनके नीचे उनके बारे में महत्त्वपूर्ण बातें लिखें । इनके साथ-साथ अलग-अलग इमेजेज भी बनाते जाएँ ।
(iv) एक अच्छे माइन्ड मैप के लिए शुरुआत में किसी टॉपिक को पढ़ते समय ही उसकी मुख्य बातें अलग लिख ली जाए, ताकि आगे माइन्ड मैप बनाने में आसानी रहे। एक बार जब आपको टॉपिक की पूरी समझ हो जाएगी तो सिर्फ कीवर्डस याद रखने से ही परीक्षा के समय आपको पूरा माइन्ड मैप याद आ जाएगा और परीक्षा में उत्तर आराम से लिख पाएंगे।
माइन्ड मैप बनाने के नियम—
(i) किसी भी पेज के बीच से शुरू करें, मेन टॉपिक रखें ।
(ii) उस टॉपिक से सम्बन्धित सब-टॉपिक्स के प्वाइंट्स लिखें।
(iii) इसी तरह आगे के सब-टॉपिक्स के प्वाइंट्स लिखें।
(iv) कलर्स, ड्राइंग्स और सिम्बल्स, ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करें।
(v) शीर्षक छोटे रखें।
माइन्ड मैपिंग के फायदेये—
(i) ब्रेन फ्रेन्डली है।
(ii) दिमाग कुछ सैकण्ड्स में ही सैकड़ों इमेज प्रोसेज कर सकता है ।
(iii) मैप यह दर्शाता है कि दिमाग कैसे याद रखता है, और फैक्ट्स को लिंक करता है ।
(iv) रिव्यू करना बहुत आसान है।
(v) माइन्ड मैप प्रोसेस डीप लर्निंग पर आधारित है ।
(vi) माइन्ड मैपिंग तकनीक मनोरंजन के साथ पढ़ाई या दोहरान में काफी मददगार हो सकती है ।
(vii) डायग्राम बना कर पढ़ने से टॉपिक का कॉन्सेप्ट समझने, याद करने में आसान होता है।
Mind Map Soft Ware—
· Free mind (Open source)
· I mind Map (Paid )
Examples—
उपर्युक्त माइन्ड मैप में Fruits फल से सम्बन्धित सभी प्रकार की जानकारी दर्शायी गई है जैसे— फलों के प्रकार, रंग, प्रकृति, स्वाद आदि । इस प्रकर माइन्ड मैप के द्वारा किसी एक वस्तु/विषय के बारे में अधिकाधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं ।
(iii) विज्ञापन लेखन—विज्ञापन शब्द की उत्पत्ति वि’ उपसर्ग ‘और ज्ञापन शब्द के संयोग से हुई जिसका सामान्य अर्थ ज्ञापन कराया या सूचना प्रदान करना है । Advertising शब्द की उत्पत्ति लेटिन भाषा के एडवर्टर (Adverter) से हुई है। अंग्रेजी में इसका अर्थ टू टर्न टू अर्थात् किसी ओर मोड़ना या आकर्षित करना है। किसी वस्तु और सेवा के सन्दर्भ में इसका तात्पर्य लोगों को अपनी ओर आकर्षित करना होता है। विज्ञापन को विभिन्न विद्वानों ने परिभाषित करने का प्रयास किया है—
(i) लस्कर—विज्ञापन मुद्रित विक्रय क्षमता है।
(ii) फ्रैंक प्रेतबी—लिखित, मुद्रित, मौखिक तथा ग्राफिक विक्रय क्षमता ही विज्ञापन है।
(iii) स्टार्च—विज्ञापन मुद्रित माध्यमों का प्रयोग करते हुए किसी विचार की जन प्रस्तुति है, जिसके द्वारा वे विज्ञापनकर्ता के मन्तव्य के अनुसार ढल जाते हैं ।
(iv) मधुकर गंगाधर—विज्ञापन वस्तुतः किसी वस्तु, व्यवस्था आदि के गुणों का ऐसा प्रचार है, जिसका उद्देश्य अपनी ओर आकर्षित करना और लाभ उठाना होता है।
(v) अमेरिकन मार्केटिंग ऐसोसिएशन—विज्ञापन परिचित प्रायोजक द्वारा वस्तु, सेवा, विचार आदि के प्रचार व प्रसार हेतु भुगतान के साथ किया गया गैर व्यक्तिगत प्रस्तुतीकरण है ।
विज्ञापन का प्रयोजन—व्यावसायिक प्रयोजन से अधिक गहरा सम्बन्ध होने के साथ-साथ कई बार गैर-सरकारी विज्ञापनों में किसी सेवा या विचार के प्रति लोगों में आकर्षण का भाव जागृत करते हुए उसके प्रति लोगों की रुचि को गहराई देना विज्ञापन का मुख्य उद्देश्य होता है।
· वस्तु या सेवा के नाम को जन सामान्य में प्रचलित करना ।
· वस्तु या सेवा के गुणों द्वारा आकर्षण पैदा करना ।
· वस्तु या सेवा की ग्राह्यता, विश्वास और बिक्री पढ़ाना ।
मुद्रित विज्ञापनों का लेखन—मुद्रित विज्ञापनों के लेखन के लिए प्रतिलेखक को मुख्य रूप से निम्नलिखित भागों का निर्माण करना होता है—
(1) शीर्षक—विज्ञापन का शीर्षक उपभोक्ताओं को वस्तु के मूल गुणों से परिचित करना होता है। शीर्षक ऐसा होना चाहिए जो पाठक को अपनी ओर आकर्षित करने में सक्षम हो। इसके लिए प्रतिलेखक कौतूहल युक्त या प्रश्न उठाने वाले कथनों को भी प्रयोग में ले सकता है। शीर्षक वर्तमान काल में होने के साथ-साथ रोचकता, आकर्षण आदि गुणों को लिए हुए होना चाहिए।
(2) उपशीर्षक—उपशीर्षक शीर्षक का पूरक कहा जाता है।
मगर शीर्षक प्रश्नवाची हो तो उसका उत्तर उपशीर्षक में दिया जाता है । शीर्षक और बॉडी के बीच की महत्त्वपूर्ण कड़ी के रूप में उपशीर्षक ही होता है।
(3) मध्यभाग की प्रति या बॉडी—शीर्षक और उपशीर्षक में कहे गए कथन के विस्तार और प्रमाण बॉडी में दिए जाते हैं। इस भाग में विज्ञापित वस्तु के गुणों के विषय में चर्चा की जाती है।
(4) उपसंहार का नारा—नारा पूरे विज्ञापन का सार होता है । विज्ञापनकर्त्ता के लिए अपनी वस्तु को याद कराने का सबसे महत्त्वपूर्ण और प्रभावशाली भाग यही होता है।
मुद्रित विज्ञापन की भाषा में कुछ विशेषताओं का होना. आवश्यक माना है—
(1) विज्ञापन की भाषा में आकर्षण तत्त्व का अपना महत्त्व होता है। आकर्षक शब्दों के कारण ही उपभोक्ता विज्ञापित वस्तु के विषय में जानने के लिए उत्सुक होते हैं ।
(2) विज्ञापनों में श्रव्यता के लिए काव्यात्मक और गीतात्मक भाषा का प्रयोग किया जाता है।
(3) विज्ञापन में दिए जाने वाले नारे या अपील छोटे-छोटे वाक्यों में सरल भाषा में ही लिखे जाने चाहिए तांकि उन्हें जन सामान्य का प्रत्येक वर्ग आसानी से समझ सकें एवं याद रख सकें ।
(4) विज्ञापन की भाषा इतनी प्रभावी एवं सक्षम होनी चाहिए जिससे वह वस्तु के प्रति लोगों में आकर्षण उत्पन्न कर सके उसे खरीदने के लिए बाध्य कर दे ।
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