‘स्थिर जीवन कला’ का संक्षिप्त परिचय दीजिए ।

‘स्थिर जीवन कला’ का संक्षिप्त परिचय दीजिए ।

उत्तर— स्टिल लाइफ कला की शुरुआत 16वीं शताब्दी में मिलती है। स्थिर जीवन चित्रण कला का अर्थ है— निर्जीव वस्तु को ड्राइंग और पेंटिंग के माध्यम से प्रदर्शित करना । ये प्राकृतिक भी हो सकते हैं और मानव निर्मित भी। भोजन, फल, मृत पशु, पौधे, पत्थर आदि प्राकृतिक विषय हैं। पानी पीने का गिलास, किताबें, बर्तन, आभूषण, सिक्के, पाइप आदि मानव निर्मित विषय के उदाहरण हैं। 17वीं शताब्दी से पूर्व स्थिर जीवन कला के प्रसंग धार्मिक और प्रतीकात्मक होते थे । आधुनिक स्टिल लाइफ पेंटिंग ने 2डी की सीमा को तोड़कर 3डी की सीमा में प्रवेश कर लिया है, त्रिआयामी मिश्रित माध्यम का प्रयोग किया जाने लगा है। 16वीं शताब्दी से आज तक स्थिर जीवन कला निरन्तर लोकप्रिय रही है ।
स्टिल लाइफ पेंटिंग के विषय निम्न प्रकार के हो सकते हैं—
(i) वैयक्तिक
(ii) सांस्कृतिक
(iii) सामाजिक
(iv) पौराणिक
(v) धार्मिक
(vi) दार्शनिक
(vii) अस्तित्ववादी
इस पेंटिंग के विषय पदार्थ के गुणों पर भी निर्भर हो सकते हैं, जैसे— रंग या संरचना । ऐसी भी वस्तुएँ स्टिल लाइफ पेंटिंग का विषय हो सकती हैं जो किसी के बक्से में बहुत दिनों से पड़ी हैं और प्रयोग नहीं की जा रही है। 16वीं शताब्दी में धार्मिक और पौराणिक विषयों को इस पेंटिंग में चुना जाता था, जैसे— चर्च। 16वीं शताब्दी समाज को परिवर्तन की दिशा में ले जा रही थी। वैज्ञानिक अभिवृत्ति का विकास हो रहा था, धार्मिक विषयों की लोकप्रियता कम होने लगी। कलाकारों ने प्राकृतिक जगत् में रुचि लेना आरम्भ कर दिया। 19वीं शताब्दी के मध्य में प्राकृतिक जगत् की पेंटिंग से भी रुचि कम होने लगी । कलाकारों ने मानव की भावनाओं और संवेगों को विचित्र करने में अपनी रुचि दिखाई। 20वीं शताब्दी आते-आते स्थिर जीवन ज्यामिति में घुल गया, कैनवास के बजाए अमूर्तता की ओर आकर्षण बढ़ा। 20वीं शताब्दी के अन्त तक उपयोगी वस्तुओं के चित्रण का चलन बढ़ गया।
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