निराला की लंबी कविताओं का वैशिष्ट्य

निराला की लंबी कविताओं का वैशिष्ट्य

अंग्रेजी कवि डब्लू. बी. वीट्स ने लिखा है, “जब हम अपने से बाहर संघर्ष करते हैं तो कथा साहित्य की सृष् िहोती है और अपने आप से लड़ते हैं तो गीतिकाव्य की। लेकिन एक तीसरी स्थिति भी होती है जब हम अपने आप से लड़ते हुए बाहरी स्थिति से भी लड़ने की कोशिश करते हैं तो एक विशेष प्रकार की ‘लंबी कविता’ पैदा होती है, जो आधुनिक कविता की सबसे बड़ी उपलब्धि है।” वास्तव में निराला जीवन भर अपने अंदर और बाहर दोनों से लड़ते रहे थे। इसी संघर्ष की उपज है – राम की शक्तिपूजा, सरोज-स्मृति, तुलसीदास तथा कुकुरमुत्ता सरीखी लंबी कविताएं। ‘सरोज-स्मृति’ की लंबाई का कारण यह है कि उनमें अनेक स्मृति-चित्रों का गुंथन है। डा0 नन्द किशोर नवल के अनुसार, “वह कविता स्मृति के तर्क के सहारे आगे बढ़ती है और उस क्रम में लंबी हो जाती है। यदि वह कवि का भावात्मक विस्फोट होती, तो न उसका आकार बड़ा होता, न विभिन्न प्रकार के समृति-चित्रों के संकलन से उसकी विषय-वस्तु में विस्तार और वैविध्य
संभव होता। उसके विपरीत ‘राम की शक्तिपूजा’ निराला की एक अन्य लंबी कविता ‘तुलसीदास’ की तरह कथात्मक है। इन दोनों कविताओं की लंबाई का कारण उनमें एक कथा का होना है जो अपने आरंभ के साथ अपना विकास करती हुई अवसाद को प्राप्त करती है। इस दृष्टि गे ये दोनों कविताएं अपने स्वरूप में परंपरागत हैं, भले ही उनकी अंतर्वस्तु और उनका प्रतिपादन पर्याप्त नवीन हो। निराला की प्रसिद्ध लंबी कविता ‘प्रेयसी’ भी कथात्मक ही है, जबकि ‘मित्र के प्रति’ और ‘बन-बेला’ जैसी लंबी कविताएं एक विचार का सूत्र पकड़कर आगे बढ़ती हैं। वैसे ये दोनों कविताएं आत्मकथात्मक भी हैं। पहली कविता में आत्मकथा का स्पर्श हल्का है, जबकि दूसरी में बहुत गहरा। पहली कविता वाद-विवादमूलक है, जबकि दूसरी आत्मालापमूलक। निराला लंबी कविता के क्षेत्र में बाद में भी प्रयोग करते हैं और उन्होंने कुकुरमुत्ता,
स्फटिक शिला तथा देवी सरस्वती जैसी कविताएं लिखीं। यहाँ दो लंबी कविताओं के माध्यम से आप उनको समस्त लंबी कविताओं के शिल्प को समझने की चेष्टा करेंगे।
‘सरोज-स्मृति’ को हिंदी में ‘एलेजी’ कहा गया है। एलेजी वस्तुतः एक यूरोपीय काव्य विधा है। यूनानी काव्य-भाष में बिल्कुल आरंभिक काल में ‘एलेजी’ का विषय मृत्यु नहीं बल्कि युद्ध और प्रेम होता था। सोलहवीं शताब्दी में अंग्रेजी में आकर ‘एलेजी’ शोक गीत बन गयी। किसी प्रियजन की मृत्यु पर किया जाने वाला विलाप को शोकगीत की संज्ञा दी गई। सरोज-स्मृति को हिंदी की सर्वश्रेष्ठ शोकगीत माना गया है। इस कविता का महत्व सिर्फ इसी कारण नहीं है। यह कविता निराला ने अपनी पुत्री की मृत्यु पर लिखी और इसमें अपने जीवन के लिए पुत्री को वह महत्व दिया जो उनसे पहले और किसी ने न दिया होगा। उन्होंने संपूर्ण कवि – जीवन में – दो महान कविताओं की रचना की – सरोज-स्मृति और ‘राम की शक्तिपूजा’ इनमें पहली कविता पुत्री प्रेम की कविता है और दूसरी पत्नी प्रेम की। दरअसल नारी उनके साहित्य का एक मुख्य विषय है और नारी मुक्ति उनकी विचारधारा का एक मुख्य लक्ष्य। उनके उपन्यासों की नायिकाएं भी प्राय: नए
युग की चेतना से लैस युवतियाँ हैं। ‘अनामिका’ में जो ‘मुक्ति’ शीर्षक कविता है, वह नारी मुक्ति को ही विषय बनाकर लिखी गई है। इसमें वे नारियों को ही संबोधित कर कहते हैं, ‘तोड़ो, तोड़ो, तोड़ो कारा / पत्थर से निकलो फिर । गंगाजल धारा।’
डा० रामविलास शर्मा ‘सरोज-स्मृति’ को ‘राम को शक्तिपूजा’, ‘तुलसीदास’ तथा बनबेला से संरचना की दृष्टि से कमजोर मानते हुए लिखते हैं कि ‘शक्तिपूजा’ में उन्होंने कथा कहने का दूसरा ढंग अपनाया है, वे दृश्य से अटके रहते हैं, साथ ही कौशल से काल-प्रवाह के साथ पाठक को आगे-पीछे घुमाते रहते हैं। उनकी दृष्टि में ‘तुलसीदास’ और ‘शक्तिपूजा’ ही नहीं ‘बनबेला’ भी संरचना की दृष्टि से ‘सरोज स्मृति’ से श्रेष्ठ है क्योंकि उनकी तुलना में ‘बनबेला’ की आंतरिक गठन सुदृढ़ है।
जिस तरह का वैषम्य ‘सरोज-स्मृति’ को विषय-वस्तु में है, वैसा ही उसके रूप-शिल्प में भी। एक तरफ यह कविता एक
आत्माभिव्यक्ति मूलक प्रतीतात्मक रचना है और दूसरी तरफ यथार्थमूलक वर्णनात्मक रचना। इसी तरह इसमें एक तरफ कवि का ध्यान कविता के स्थापत्य पर रहा है तो दूसरी तरफ भीतरी सजावट पर भी। भाषा भी एक तरफ कवित्वपूर्ण है, तो दूसरी तरफ बातचीत वाली। पूरी कविता छंदोबद्ध है, लेकिन वाक्य विन्यास गद्यात्मक। छंद निहायत छोटा है, पर उसमें बंधे हुए वाक्य कभी- कभी बहुत लंबे। कविता में चित्र के साथ संगीत भी है।
‘राम की शक्तिपूजा’ का पूरा ढाँचा ‘कृतिवास रामायण’ से लिया गया है। रावण से बार-बार पराजित होने के बाद कृतिवास के राम दुर्गा की आराधना करते हैं। हनुमान एक सौ आठ नीलकमल लाते हैं। यहाँ भी दुर्गा अंतिम कमल गायब कर देती है। आलोचकों ने ‘शक्तिपूजा’ की श्रेष्ठता का एक बहुत बड़ा कारण इसमें पायी जानेवाली नाटकीयता को माना है। यह नाटकीयता उसकी घटनाओं में भी है। उसके चरित्रों में भी। उसके भाव में भी और उसमें प्रयुक्त संवादों की भाषा में भी। पूरी कविता एक नाटक की तरह है, जिसमें एक क्रम से सारे दृश्य रंगमंच पर प्रत्यक्ष होते हैं। उसका आरंभ युद्ध के दृश्य से होता है जो कि वस्तुतः आगे घटनेवाली घटनाओं की पृष्ठभूमि है। इसकी नाटकीयता बहुत स्वाभाविक है, जो इस बात की सूचना देती है कि निराला क्रिया- व्यापार और भाव-व्यापार दोनों को एक-दूसरे से पृथक् मानते थे।
जिसमें उनके भाव-व्यापार को क्रिया-व्यापार मूर्त कर देता थ और उनके क्रिया-व्यापार को भाव-व्यापार गतिशील बना देता था। यह कविता चूँकि कथात्मक कविता है, इसलिए स्वभावत: इसमें बहुत ज्यादा गति और वेग है। आलोचक नंद किशोर नवल ने शक्तिपूजा की अन्यतम विशेषता उसमें पाई जानेवाली उदात्तता को माना है। उदात्तता वस्तुतः रचना का गुण है, जिसमें शैली और भाव परस्पर अपृथक होते हैं और एक दूसरे को प्रभावित करते रहते हैं।

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