‘पाँच सौ रुपये देकर मैंने गण्डा बँधवाया’ की व्याख्या कीजिए।
‘पाँच सौ रुपये देकर मैंने गण्डा बँधवाया’ की व्याख्या कीजिए।
उत्तर :- प्रस्तुत पंक्ति हिन्दी पाठ्य-पुस्तक के जित-जित मैं निरखत हूँ शीर्षक से उद्धृत है । यह शीर्षक हिन्दी साहित्य की साक्षात्कार विधा है । इस पंक्ति से बिरजू
महाराज अपने गुरुस्वरूप पिता की कर्तव्यनिष्ठा एवं उदारशीलता का यथार्थ चित्रण किया है।
इस प्रक्ति से पता चलता है कि बिरजू महाराज के पिता ही उनके गुरु थे। उनके पिता में गुरुत्व की भावना थी। बिरजू महाराज अपने गुरु के प्रति असीम आस्था और विश्वास व्यक्त करते हुए अपने ही शब्दों में कहते हैं कि यह तालीम मुझे बाबूजी से मिली है। गुरु दीक्षा भी उन्होंने ही मुझे दी है। गण्डा भी उन्होंने ही मुझे बाँधा । गण्डा का अभिप्राय यहाँ शिष्य स्वीकार करने की एक लौकिक परंपरा का स्वरूप है । जब बिरजू महाराज के पिता उन्हें शिष्य स्वीकार कर लिये तो बिरजू महाराज ने गुरु दक्षिणा के रूप में अपनी कमाई का 500 रुपये उन्हें दिये ।
- Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
- Facebook पर फॉलो करे – Click Here
- Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
- Google News ज्वाइन करे – Click Here