“पैनल परिचर्चा” से क्या अभिप्राय है ? इसकी विशेषताओं का विवेचना कीजिए।

“पैनल परिचर्चा” से क्या अभिप्राय है ? इसकी विशेषताओं का विवेचना कीजिए।

उत्तर— पैनल परिचर्चा पैनल–(नामिका) परिचर्चा या दल वादविवाद विधि आधुनिक व्यवस्था सिद्धान्त पर आधारित है। परिचर्चा का वातावरण लोकतांत्रिक होता है। इसकी यह धारणा है कि व्यवस्था के सदस्य में अपनी अभिवृत्तियाँ, अभिरुचियाँ, मूल्य, आदर्श तथा अपनेअपने लक्ष्य होते हैं। इसके अतिरिक्त उनमें निर्णय लेने और समस्या समाधान की क्षमता होती है।
स्ट्रक ने पैनल चर्चा के अर्थ को स्पष्ट करते हुए कहा, चर्चा में चार से आठ व्यक्तियों (विशेषज्ञों) का एक समूह किसी समस्या पर आपसी विचार-विमर्श करता है । यह चर्चा जन-समूह या कक्षा के विद्यार्थियों के समक्ष की जाती है । “
इस प्रकार पैनल चर्चा वह चर्चा है, जो विशिष्ट समूह के द्वारा बड़े समूह के समक्ष की जाती है तथा समूह के सभी सदस्य इस चर्चा में भाग लेते हैं ।
पैनल परिचर्चा की परिभाषा—
हरबर्ट गुली के मतानुसार, “परिचर्चा उस समय होती है जब व्यक्तियों का एक समूह आमने-सामने एकत्रित होकर मौखिक अन्त:क्रिया द्वारा सूचनाओं का आदान-प्रदान करते हैं या किसी सामूहिक समस्या पर कोई निर्णय लेते हैं। “
पैनल परिचर्चा का स्वरूप—
(1) पैनल परिचर्चा के दो रूप होते हैं— औपचारिक तथा अनौपचारिक । औपचारिक कार्यक्रम को पहले से बनाया जाता है। इसमें विशिष्ट नियमों का अनुसरण किया जाता है।
(2) पैनल परिचर्चा किसी शैक्षिक समस्या तथा पाठ्यक्रम सम्बन्धी समस्या पर आयोजित की जाती है।
(3) छात्रों द्वारा व्यवस्था करने पर उन्हें नेता का चयन करना पड़ता है जो उसका कार्यक्रम बनाता है।
(4) इसमें छात्रों के प्रश्नों तथा उत्तरों को ही महत्त्व दिया जाता है।
पैनल परिचर्चा में चार प्रकार के व्यक्ति विभिन्न प्रकार की भूमिकाएँ निभाते हैं—
(1) अनुदेशक–अनुदेशक का कार्य अधिक महत्त्वपूर्ण होता है क्योंकि उसे वाद-विवाद की सम्पूर्ण व्यवस्था करनी होती है; यथावाद-विवाद प्रकरण, समय, स्थान, समूह सदस्य एवं अध्यक्ष । इसके अतिरिक्त वाद-विवाद का पूर्व अभ्यास (Reharsal) भी कराता है। सम्पूर्ण कार्यक्रम की रूपरेखा (Outline) तैयार की जाती है ।
(2) अध्यक्ष–अध्यक्ष की भूमिका वाद-विवाद के समय अधिक महत्त्वपूर्ण होती है क्योंकि समूह के सदस्यों के वाद-विवाद का संचालन करता है और बीच-बीच में उनकी अन्तःक्रिया (Interaction) व तर्कों का संक्षेपीकरण एवं सुधार करता है।
(3) समूह के सदस्य–समूह के सदस्यों की संख्या चार से दस तक होती है। वाद-विवाद प्रारम्भ करने में अध्यक्ष प्रकरण समस्या के सम्बन्ध में ऐसे बिन्दुओं की ओर संकेत करता है जिससे सदस्यगण तथा श्रोतागण उसके स्वरूप को जान सकें। सामान्यतया परिचर्चा किसी शैक्षिक समस्या, पाठ्यचर्या सम्बन्धी समस्या, विद्यालय संगठन सम्बन्धी समस्या आदि पर होती है। समूह के अध्यक्ष का यह दायित्व होता है कि यह परिचर्चा को विषय-वस्तु अथवा समस्या से दूर न जाने दे, सभी को परिचर्चा में सक्रिय भाग लेने के लिए समान रूप से अवसर प्रदान करे तथा सभी को स्वतन्त्रतापूर्वक अपने विचारों को अभिव्यक्त करने की अनुमति दे । एक-एक बिन्दु पर सदस्यगण प्रतिक्रिया करते हैं, तर्क देते हैं। अध्यक्ष अन्त में उसमें सुधार करके निष्कर्ष का संक्षेपीकरण करता है।
(4) श्रोतागण–जब वाद-विवाद समाप्त हो जाता है उसके अन्त में श्रोतागण प्रश्न पूछते हैं। श्रोतागण अपना दृष्टिकोण तथा अनुभवों को भी प्रस्तुत करते हैं। श्रोतागणों के प्रश्नों का उत्तर तथा उनकी शंकाओं का समाधान पहले समूह के सदस्य देने का प्रयास करते हैं। यदि सदस्यगण उत्तर देने में असमर्थ होते हैं, तो ऐसी स्थिति में अध्यक्ष अपनी प्रतिक्रिया तथा समाधान प्रस्तुत करता है।
अन्तः अध्यक्ष वाद-विवाद (परिचर्चा) के निष्कर्षों का संक्षेपीकरण करता है तथा अपने दृष्टिकोण सभी के सम्मुख प्रस्तुत करता है। समूह के सदस्यों के प्रति आभार प्रदर्शित करता है और श्रोतागणों को धन्यवाद देता है।
पैनल परिचर्चा के उद्देश्य–निम्नलिखित हैं—
(i) समस्या से सम्बन्धित सूचनाओं, तथ्यों तथा आँकड़ों को विशेषज्ञों की सहायता से प्राप्त करना ।
(ii) समस्या का विश्लेषण को अधिगम कर प्रभावी बनाना ।
(iii) सामाजिक, सांस्कृतिक और नैतिक मूल्यों को निर्धारित विद्यार्थियों में विकास करना।
(iv) छात्रों में तार्किक चिन्तन की योग्यता विकसित करना ।
(v) छात्रों में आत्मविश्वास, आत्मनिर्णय, आत्मचिन्तन के साथ मौखिक अभिव्यक्ति की क्षमता जागृत करना ।
(vi) शिक्षण को मनोवैज्ञानिक आधार प्रदान करना; जैसे— स्वयं क्रिया द्वारा सीखने पर बल देना ।
(vii) पैनल चर्चा द्वारा मनोरंजन के साथ-साथ ज्ञानवर्धन करना ।
(viii) छात्रों में परस्पर सहयोग की भावना के भाव व्यापक दृष्टिकोण उत्पन्न होना ।
पैनल परिचर्चा की विशेषताएँ एवं उपयोगिताएँ—पैनल/नामिका परिचर्चा की प्रमुख विशेषताएँ एवं उपयोगिताएँ इस प्रकार है-
(i) इसके द्वारा छात्रों में सहयोग, दूसरों के विचारों के प्रति सम्मान व सहिष्णुता की भावना का विकास किया जाता है।
(ii) यह छात्रों को मिल-जुलकर कार्य करने का शिक्षण है।
(iii) इसके द्वारा बालक किसी विषय-वस्तु के सम्बन्ध में चिन्तन करना, अपने भावों- विचारों को सुव्यवस्थित रूप में अभिव्यक्त करना सीखता है ।
(iv) सीखने की प्रक्रिया में भाग लेने के लिए सक्रिय लगती है ।
(v) छात्रों में सृजनात्मक आलोचनात्मक विश्लेषण, अभिव्यक्ति, अभिवृत्तियों एवं विवेचन की क्षमताओं का विकास होता है। “
(vi) यह प्रविधि उच्च स्तरीय ज्ञानात्मक एवं भावात्मक क्षेत्र के ‘उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए सर्वथा उपयुक्त है।
(vii) इसके द्वारा छात्रों में स्वतन्त्र अध्ययन करने की आदत, तर्कशक्ति, समस्या समाधान की क्षमताओं एवं प्रवृत्ति का विकास किया जाता है। निर्णय लेने एवं समस्या समाधान के लिए व्यापक उपागमों के प्रयोग का अवसर दिया जाता है।
(viii) छात्रों को विषय-सामग्री का चयन, गठन करना सिखाती है।
(ix) यह संकोची व शंकालु छात्रों की झिझक दूर कर बोलने के तरीकों को सीखने तथा अनुकरण करने का अवसर प्रदान करती है।
(x) इसमें गलत भावनाओं तथ्यों एवं विचारों की आलोचना करने और उन्हें सुधारने के लिए अधिक अवसर मिलता है।
(xi) इसमें सामाजिक-अधिगम को अधिक प्रोत्साहन मिलता है।
(xii) पाठ्य-वस्तु तथा प्रकरण के बोधगम्य के साथ परिपाक / आत्मसात (Assimilation) को भी प्रोत्साहन मिलता है।
(xiii) छात्रों में अपनी आलोचना सुनने की क्षमता विकसित होती है।

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