“प्रभावी शिक्षण” की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए । आप अपने शिक्षण को प्रभावी बनाने हेतु क्या उपाय/सुझाव करेंगे ?

“प्रभावी शिक्षण” की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए । आप अपने शिक्षण को प्रभावी बनाने हेतु क्या उपाय/सुझाव करेंगे ? 

उत्तर— प्रभावकारी शिक्षण – शिक्षक जिस सीमा तक शिक्षार्थी पर प्रभाव डालने में सफल होता है, वह उसी सीमा तक प्रभावी शिक्षक कहलाता है और शिक्षण उद्देश्य भी उसी सीमा तक पूरा हो जाता है। प्रभावकारी शिक्षण का अर्थ शिक्षक की कार्यक्षमता से है जिस सीमा तक वह अपने कार्य में कुशल हो पाता है उस हद तक उसे प्रभावी माना जाता है। दाश के अनुसार, “प्रभावकारी शिक्षण का अर्थ है शिक्षण की पूर्णता अर्थात् कार्य-कुशलता तथा उत्पादकता का अनुकूलतम स्तर । “
शिक्षार्थी सरलता से अधिगम कर सकें, पाठ्य-वस्तु को सरलता से ग्रहण कर सकें तथा शिक्षण समय का शिक्षक अधिकाधिक समुचित प्रयोग कर सके, इसके लिए पाठ योजना का संगठन तथा विषय-वस्तु पर प्रभुत्व के साथ-साथ शिक्षक को रोचक विधियों का भी अपने शिक्षण में प्रयोग करना चाहिए तभी शिक्षण प्रभावी होगा।
शिक्षण को प्रभावी बनाने के लिए शिक्षक को पांठ योजना में निर्धारित क्रियाकलापों के अलावा तुरन्त परिवर्तन हेतु निर्णय लेने पड़ते हैं।
शिक्षण को प्रभावशाली बनाने के उपाय—
(1) पाठ-योजना का निर्माण – कक्षा शिक्षण से पूर्व पाठयोजना का निर्माण करके तथा उसी योजनानुसार शिक्षण करके शिक्षक प्रभावी शिक्षण करने में सफलता प्राप्त कर सकता है।
(2) उद्देश्यों का ज्ञान – शिक्षा के उद्देश्यों का ज्ञान होने पर ही शिक्षक उन्हें प्राप्त करने के लिए विभिन्न क्रियाएँ करके शिक्षण को प्रभावशाली बना सकता है।
(3) उपयुक्त शिक्षण विधियों का ज्ञान एवं प्रयोग — प्रभावशाली शिक्षण के लिए उपयुक्त शिक्षण विधि का प्रयोग आवश्यक होता है।
(4) शिक्षण कौशलों का प्रयोग — अपने शिक्षण को प्रभावी बनाने के लिए शिक्षक को आवश्यकतानुसार विभिन्न शिक्षण कौशलों का प्रयोग करना चाहिए।
(5) विषय-वस्तु का ज्ञान – शिक्षक को पढ़ाई जाने वाली विषयवस्तु का अच्छा ज्ञान होना चाहिए। तभी वह आत्मविश्वासपूर्वक शिक्षण कर इसे प्रभावी बना सकता है।
(6) पुनर्बलन का उपयोग — छात्रों का सहयोग शिक्षण में मिलने से ही शिक्षण प्रभावी बनता है । इसके लिए शिक्षक को शिक्षण के मध्य छात्रों को सही अनुक्रिया के लिए उन्हें पुनर्बलन प्रदान करना चाहिए।
(7) शिक्षण सहायक सामग्री का प्रयोग – शिक्षण को रोचक, सरल तथा प्रभावी बनाने के लिए शिक्षक को पाठ्यवस्तु तथा छात्रों के स्तर के अनुसार शिक्षण सहायक सामग्री का प्रयोग करना चाहिए।
(8)  शिक्षा मनोविज्ञान के सिद्धान्तों का पालन – शिक्षक को शिक्षण के समय शिक्षा मनोविज्ञान के सिद्धान्तों को ध्यान में रखना चाहिए। इसके द्वारा शिक्षण को प्रभावशीलता में वृद्धि की जा सकती है।
(9) मूल्यांकन परिणामों के आधार पर शिक्षण में सुधार – मूल्यांकन से प्राप्त परिणामों के द्वारा शिक्षक को शिक्षण की प्रभावशीलता का ज्ञान होता है, उसे आवश्यकतानुसार सुधार के द्वारा शिक्षण को प्रभावशाली बनाने के लिए सदैव तैयार रहना चाहिए।
(10) स्वाध्याय की प्रवृत्ति का विकास – शिक्षक को अपने अन्दर स्वाध्याय की आदत का विकास करना चाहिए क्योंकि इससे वह अपने ज्ञान भण्डार को विस्तृत एवं व्यापक बना सकता है। परिणामस्वरूप शिक्षण प्रभावी बन जाता है।
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