भारत में नैतिक संकट की स्थिति की विवेचना कीजिए ।

भारत में नैतिक संकट की स्थिति की विवेचना कीजिए । 

उत्तर— भारत में नैतिक संकट-नैतिक संकट का अभिप्राय नैतिक नियमों में ह्रास की स्थिति से है जैसे कि सहयोग शांति, विनम्रता एवं क्षमा की कमी हो जाना तथा मानसिक सन्तुष्टि का स्तर निम्न हो जाना साथ ही भौतिक सन्तुष्टि के स्तर को उच्चतम रखने के प्रयास में लग जाना। नैतिक संकट दो शब्दों से मिल कर बना है। नैतिक-अर्थात् नीति सम्मत उत्कर्ष की ओर ले जाना वाला प्रयास । संकट – इस प्रयास की प्राप्ति में बोधक भौतिक एवं अभौतिक कारक ।

सन्तुष्टि के निम्न स्तर से उच्च स्तर के मध्य सन्तुष्टि का स्तर औसत है तो उसे प्रसन्नता का क्षेत्र (Real Happines Zone) कहलाता है । यह क्षेत्र मानसिक सन्तुष्टि एवं शारीरिक सन्तुष्टि के मध्य आता है। सन्तुष्टि के उच्च स्तर एवं शारीरिक सन्तुष्टि के मध्य नैतिक संकट की स्थिति उत्पन्न होती है।
आज के परिवेश में हमारे देश के विषय में जो विचार प्रकट किये जाते हैं। उनमें से कुछ निम्नवत्—
देश की संस्कृति एवं परम्पराओं का संरक्षण करने वाले व्यक्तियों को खोजना कठिन है।
नैतिकता एवं नीति के विषय इतिहास में ही रह गये हैं।
धीरे-धीरे हम मानवता एवं मानवीय मूल्यों को भूल रहे हैं ।
नैतिक संकट उत्पन्न होने के कारण– नैतिक संकट उत्पन्न होने के प्रमुख कारकों को संक्षेप में निम्नवत् समझ सकते हैं–
(1) आत्मकेन्द्रित चिन्तन– लालच, लगाव, आक्रामकता, संलग्नता इत्यादि के कारण सोचने का तरीका सीमित हो  जाता है व्यक्ति स्वयं तक केन्द्रित हो जाता है ।
(2) आर्थिक एवं भौतिक मूल्यों पर अत्यधिक बल– शक्ति धन, स्तर इत्यादि भौतिक पक्षों को ही मूल्य स्वीकार करने के कारण भी यह स्थिति उत्पन्न होती है।
(3) विध्वंसात्मक भावनाएँ– भय, क्रोध, घना, ई या, दुःख, तनाव, हताशा इत्यादि नकारात्मक भावनाओं से जनात्मकता न होकर विध्वंसात्मक भाव जाग्रत होता है जिससे मूल्य संकट उत्पन्न होता है ।
भारतवर्ष के विषय में कहा जाता है कि यह राष्ट्र है। ऐसे राष्ट्र में नैतिक संकट के कारणों से उत्पन्न परिणामों को जानकर उनका उपाय खोजना भी आवश्यक प्रतीत होता है।
नैतिक संकट के परिणाम— जो परिस्थितियों उत्पन्न होती हैं उनका संक्षिप्त उल्लेख निम्नवत् हैं—
(1) हिंसा– युद्ध, आतंकवाद, आत्महत्या, शाब्दिक एवं अशाब्दिक हिंसा, शक्ति प्रदर्शन इत्यादि के रूप में हिंसा की प्रवृति बढ़ती है ।
(2) पर्यावरण समस्याएँ– पर्यावरणीय असन्तुलन, प्राकृतिक, आपदायें, ग्लोबल वार्मिंग इत्यादि समस्याएँ नैतिक संकट के कारण बढ़ती है।
(3) आर्थिक संकट एवं आर्थिक अवसाद – ऋण एवं वित्त से जुड़ी समस्याएँ ।
(4) धनी एवं निर्धन के मध्य अंतराल ।
शिक्षा एवं नैतिक संकट– शिक्षा की प्रक्रिया सही व गलत का . निर्णय लेने की क्षमता का विकास करने वाली प्रक्रिया है। क्या करणी है ? क्या अकरणीय है ? क्या समाज सम्मत है ? क्या व्याज्य है ? विवेक पूर्ण निर्णय क्या है ? अविवेक क्या है ? ऐसी विभेदकारी क्षमता का विकास शिक्षा से ही होता है। नैतिक संकट की स्थिति में शिक्षा की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। कुछ महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं में अपनी बात को समझ सकते हैं—
(1) विवेकपूर्ण निर्णय लेने योग्य बनाना ।
(2) भावनात्मक स्थिरता विकसित करना ।
(3) सामाजिक संदर्भों की स्पष्टता जानना।
(4) सामाजिक संवेदन शीलता विकसित करना ।
(5) स्वार्थ भावना से ऊपर उठ कर विचार करना सिखना |
(6) समाज एवं राष्ट्र के हित का चिन्तन विकसित करना ।
(7) अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा करना ।
(8) अन्य व्यक्तियों का सम्मान करना सिखना ।
(9) संविधान में आस्था उत्पन्न करना।
(10) श्रेष्ठ नागरिक जीवन जीने की योग्यता विकसित करना।
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