भाषा प्रयोगशाला पर निबन्ध लिखिए ।

भाषा प्रयोगशाला पर निबन्ध लिखिए ।

                                       अथवा
भाषायी प्रयोगशाला से क्या तात्पर्य है ? स्पष्ट करते हुए शिक्षण प्रशिक्षण में इसकी उपयोगिता पर प्रकाश डालिए ।
                                       अथवा
भाषा प्रयोगशाला’ का सम्प्रत्यय स्पष्ट कीजिये और भाषा प्रयोगशाला में प्रयुक्त होने वाली शिक्षण योजना का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर— भाषा प्रयोगशाला– भाषा प्रयोगशाला का निर्माण व्यक्तिगत शिक्षण तथा सामूहिक शिक्षण में समन्वय करने और भाषा सीखने में बच्चों की क्रियाशीलता बढ़ाने के उद्देश्य से किया गया है । भाषा – प्रयोगशाला भाषा-शिक्षण के क्षेत्र में वस्तुतः सहायक मात्र है, यह शिक्षक के स्थान पर प्रतिस्थापन नहीं है । भाषा प्रयोगशाला स्थापित होने पर शिक्षक का उत्तरदायित्व और अधिक बढ़ जाता है।
भाषा-प्रयोगशाला की प्रत्येक सीट पर एक-एक टेपरिकार्डर होता है तथा प्रत्येक छात्र के लिए हैडफोन होता है। छात्र के सामने मेज पर
माइक्रोफोन भी फिट रहता है। अध्यापक की सीट ऐसे स्थान पर होती है कि वह प्रयोगशाला में सीखने वाले सभी छात्रों पर नियंत्रण रख सकता है। इसकी सहायता से वह प्रयोगशाला के सभी अथवा किसी एक छात्र को निर्देश दे सकता है।
कक्षा की अपेक्षा भाषा प्रयोगशाला में विद्यार्थी अधिक सक्रिय भाग लेता है। उसकी यह सक्रियता ही अधिक प्रभावशाली सिद्ध होती है। भाषा-प्रयोगशाला के पाठ अधिक प्रभावशाली होते हैं, क्योंकि इसमें भाषा रिकार्डिग अधिक स्वाभाविक वातावरण की सृष्टि करता है। शिक्षक कन्सोल से प्रसारित पाठ की ध्वनियाँ सीधे छात्र के कान में पहुँचती हैं, अतः उनका प्रभाव कक्षा तथा लिंग्वाफोन से भी अधिक पड़ता है। साथ ही छात्र ही माइक से अपनी आवाज को इयरफोन की सहायता से सुन  सकता  है।
भाषा प्रयोगशाला का अर्थ—
भाषा प्रयोगशाला एक ऐसा कक्ष है, जिसमें भाषा के अधिगम को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए विशेष प्रकार के उपकरण जुटाए जाते हैं। भाषा प्रयोगशाला शिक्षण का केन्द्र है, जिसमें छात्रों को सुनने, बोलने, पढ़ने तथा लिखने आदि के लिए नियंत्रित वातावरण प्रदान किया जाता है।
भाषा प्रयोगशाला का महत्त्व—
भाषा शिक्षण में भाषा-कक्ष का भी विशेष महत्त्व होता है। जो विद्यालय आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न हैं, उनमें प्राय: सभी विषयों के अलगअलग कक्ष होते हैं। भाषा के लिए भी एक अलग कक्ष होना आवश्यक है, क्योंकि भाषा के कक्ष में घुसते ही बालकों का ध्यान एकदम अन्य विषयों से हटकर भाषा पर आ जाता है और वे भाषा पढ़ने के लिए तैयार हो जाते हैं तथा भाषा विषय में रुचि लेने लगते हैं। भाषा-कक्षा की साज-सज्जा देखकर वे भाषा की ओर अधिक आकर्षित हो जाते हैं और शीघ्र ही भाषा सीखने की निपुणता प्राप्त करने में दक्षता प्राप्त कर लेते हैं । भाषा-कक्ष से अध्ययन और अध्यापन दोनों में सहायता मिलती है।
भाषा-कक्ष बालकों को भाषा सिखाने के लिए अनुकूल वातावरण उत्पन्न करता है। भाषा-कक्ष में बने पुस्तकालय में विभिन्न प्रकार की पुस्तकों तथा शब्दकोश के माध्यम से भाषा सम्बन्धी विभिन्न प्रकार का ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं । अतः यह आवश्यक है कि प्रत्येक विद्यालय में भाषा-कक्ष होना चाहिए।
शिक्षक का बहुत-सा समय व शक्ति पुस्तकों, शब्दकोश तथा अन्य शिक्षण सहायक सामग्री एक कमरे से दूसरे कमरे में ले जाने में नष्ट होती है। भाषा-कक्ष होने से ऐसा नहीं हो सकेगा। भाषा-कक्ष में शिक्षक द्वारा श्यामपट्ट पर लिखा पाठों का सारांश रचना तथा रेखाचित्र दूसरे दिन भी प्रयोग में लाया जा सकता है। भाषा-कक्ष में टंगे विभिन्न कवियों तथा साहित्यकारों के चित्र उनकी जीवनी व रचना पढ़ने के लिए छात्रों को उत्सुक करते हैं। बहुत से चार्ट व चित्रों को देखकर बालकों को बहुतसी बातों का ज्ञान अनायास हो जाता है।
भाषा प्रयोगशाला की उपयोगिता—
कक्षा-प्रयोगशाला का भाषा शिक्षण में विशेष महत्त्व होता है। यह वह स्थान होता है-जहाँ कक्षा में पढ़ाई गई पाठ्य सामग्री का अभ्यास कराया जाता है। कक्षा अध्यापन का पूरक भाषा प्रयोगशाला है। यदि कक्षा तथा प्रयोगशाला में समुचित समन्वय रहे तो यह काफी उपयोगी सिद्ध हो सकता है । भाषा प्रयोगशाला की उपयोगिता के सम्बन्ध में निम्नलिखित तथ्य प्रस्तुत किए जा सकते हैं—
(i) भाषा-शिक्षण के लिए उपयुक्त वातावरण का निर्माण सम्भव ।
(ii) भाषा की ध्वनि, शब्द तथा वाक्य व्यवस्था का अभ्यास ।
(iii) छात्र अपनी गति से अभ्यास कर सकता है।
(iv) सुनी हुई पाठ्य सामग्री दुहराने के लिए अवसर प्राप्त होता है।
(v) कम-तेज बुद्धि वाले छात्रों पर प्रारम्भ से ही नियंत्रण रखा जा सकता है।
(vi) शिक्षक प्रत्येक छात्र पर व्यक्तिगत ध्यान दे सकता है तथा उनकी अशुद्धियों को वहीं पर शुद्ध कर सकता है।
(vii) शिक्षक की अशुद्धियों को भी रोका जा सकता है तथा वह अपने को ठीक कर सकता है ।
शिक्षक प्रशिक्षण के लिए भाषा प्रयोगशाला का उपयोग एवं लाभ—
शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाषा विषय के छात्राध्यापक/ छात्राध्यापिकाओं को भाषा के प्रभावी शिक्षण का प्रशिक्षण देते समय प्रशिक्षणार्थियों में भाषा सम्बन्धी व्यावहारिक दक्षताओं का विकास करने एवं उनकी समझ पैदा करने में भाषा प्रयोगशालाओं का उपयोग अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होता है। अतः शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम के प्रशिक्षणार्थियों को भाषा प्रयोगशाला के उपकरण व प्रक्रिया के सम्बन्ध में सैद्धान्तिक व व्यावहारिक जानकारी प्राप्त होती है ।
प्रयोगशाला में उपकरण, प्रक्रिया एवं साज-सज्जा–
भाषा प्रयोगशाला के निम्नलिखित तीन अनुभाग होते हैं—
(1) श्रवण कोष्ठ (Hearing Booths )
(2) परामर्शदाता के कोष्ठ (Adviser Booths )
(3) नियंत्रण कक्ष (Control Room)
(1) श्रवण कोष्ठ (Hearing Booths)– प्रायः प्रयोगशाला में 16 अथवा 20 प्रकोष्ठ होते हैं। प्रत्येक कोष्ठ में एक तथा कुर्सी होती है, जिस पर बैठकर छात्र कार्य कर सकता है। कोष्ठ सामग्री इस प्रकार होती है—
(i) दूरभाषा – परामर्शदाता से वार्तालाप हेतु
(ii) श्रवणेन्द्रिय दूरभाष- ईयर फोन
(iii) स्विच
(iv) टेप रिकार्डर
इन यंत्रों से छात्रों का नियंत्रण कक्ष से सम्पर्क स्थापित होता है । अपनी आवाज को रिकार्ड करने तथा फिर सुनने का प्रबन्ध होता है ।
(2) परामर्शदाता के कोष्ठ (Adviser Booths)– इस कोष्ठ में कई टेप तथा मास्टर टेप रहते हैं तथा इस प्रकार की व्यवस्था रहती है, जिससे परामर्शदाता छात्र से सम्पर्क स्थापित कर सके। परामर्शदाता के कोष्ठ में निम्नलिखित सामग्री होती है—
(i) डिस्ट्रीब्यूशन स्विच्स- इनके माध्यम से छात्रों के लिए रिकार्ड किया गया प्रोग्राम नियंत्रित किया जाता है।
(ii) ग्रुप कॉल स्विच– इसको कुछ छात्रों के लिए घोषणाएँ करने के लिए प्रयुक्त किया जाता है।
(iii) ऑल कॉल स्विच– यह सभी छात्रों के लिए घोषणाएँ करने के लिए प्रयुक्त किया जाता है
(iv) मॉनीटरिंग स्विच्स– इनके माध्यम से छात्रों के लिए रिकार्ड किया गया प्रोग्राम नियंत्रित किया जाता है।
(v) इण्टरकॉम स्विच्स– इनके द्वारा छात्रों से दो-तरफा सम्प्रेषण किया जाता है ।
(3) नियंत्रण कक्ष (Control Room)– इस कक्ष में सभी प्रकार के टेप रिकार्ड तथा उपकरण होते हैं। उनके आवश्यकतानुसार छात्रों को उपलब्ध कराये जा सकें ।
(i) अध्यापक अथवा परामर्शदाता मास्टर टेप का प्रयोग करता है। प्रत्येक कोष्ठ में विद्यमान टेप में आवाजों को रिकार्ड कर लिया जाता है ।
(ii) छात्र अपने टेप को सुनता है तथा मौखिक अनुक्रिया करता है। ये अनुक्रियाएँ छात्र के बूथ में रखे गये उपकरण द्वारा रिकार्ड की जाती है। छात्र अपने टेप का अनेक बार प्रयोग कर सकता है। वह स्वयं जान जाता है कि उसकी उपब्धियाँ सन्तोषजनक हैं अथवा नहीं ।
भाषा-कक्ष की साज-सज्जा—
भाषा-कक्ष के लिए बड़े आकार का कमरा होना चाहिए। दरवाजे, खिड़की तथा रोशनी का उचित प्रबन्ध होना चाहिए। उसका फर्श पक्का होना चाहिए तथा बच्चों के बैठने के लिए पर्याप्त मेज तथा कुर्सी आदि होनी चाहिए। भाषा-कक्ष का लाभ उसी समय उठाया जा सकता हैं, जब उसकी साज-सज्जा भी ठीक हो । भाषा-कक्ष में निम्नलिखित सामग्री होनी चाहिए—
(1) भाषा की पाठ्यपुस्तक तथा अन्य पुस्तकें– भाषा-कक्ष के समीप एक भाषा पुस्तकालय होना चाहिए। इस कक्ष में अनेक अलमारियाँ होनी चाहिए। जिनमें भाषा सम्बन्धी अनेक पुस्तकें रखी जा सकें । ऐसी पुस्तकें जो सत्य, शिवं तथा सुन्दरम् की कसौटी पर खरी न उतरती हों, उन्हें पुस्तकालय में स्थान नहीं मिलना चाहिए |
(2) श्यामपट्ट– भाषा-कक्ष में एक या दो श्यामपट्ट होने चाहिए । ये साफ-सुथरे तथा चौरस होने चाहिए ताकि उन पर सुड़ौल व सुन्दर अक्षर, चित्र व रेखाचित्र बनाये जा सकें। श्यामपट्टों का आकार 1.25 × 2.50 वर्ग मीटर होना चाहिए। इन पर पाठों के सारांश तथा रचना की पूरी-पूरी रूपरेखा तैयार की जा सकती है ।
(3) शब्दकोश– भाषा-कक्षा में प्रत्येक छात्र के लिए संक्षिप्त शब्दकोश भी होने चाहिए। पारिभाषिक शब्दकोश, अंग्रेजी-हिन्दी शब्दकोश, हिन्दी-अंग्रेजी शब्दकोश तथा वृहद् हिन्दी शब्दकोश अवश्य होने चाहिए। इन शब्दकोशों से छात्र अनेक नये शब्दों को देखकर अपने शब्दकोश में वृद्धि कर सकते हैं।
(4) अन्य शिक्षण उपकरण– भाषा शिक्षण की सहायता सामग्री में चित्र, वस्तु, रेखाचित्र, मानचित्र, चार्ट, ग्रामोफोन, टेपरिकार्डर, रेडियो, टेलीविजन तथा प्रोजेक्ट आदि भाषा-कक्ष से लगे स्टोर-कक्ष में रहने चाहिए।
(5) सजावट– एक आकर्षण का केन्द्र होना चाहिए। इसका कलापूर्ण होना आवश्यक है। इसमें साहित्यकारों व कवियों के सुन्दरसुन्दर चित्र टंगे होने चाहिए। इसके साथ ही साथ हिन्दी साहित्य का काल विभाजन, रस, अलंकार तथा अन्य साहित्यिक चित्र टंगे होने चाहिए। इन चित्रों, चार्टों आदि को देखकर बालकों का मन भाषा सीखने को प्रेरित होता है। भाषा-कक्षा को फूल-पत्ती, बेल-बूटे आदि से नहीं सजाना चाहिए ।
भाषा-प्रयोगशाला में भाषा शिक्षण—
भाषा-प्रयोगशाला में मौखिक भाषा की शिक्षा सफलतापूर्वक दी जा सकती है। मौखिक पठन के लिए यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। साधारण कक्षा में एक समय में सभी छात्र एक साथ मौखिक पठन कर सकते हैं। भाषा प्रयोगशाला में पढ़ने वाला अपने द्वारा किए गये मौखिक पठन को टेप करता है और फिर उसे स्वयं सुनता है। छात्र के मौखिक पठन में हुई गलतियों को समझ लेता है तथा छात्रों को उचित निर्देश देकर उनका सुधार करता है ।
शिक्षण प्रशिक्षण कार्यक्रम के प्रशिक्षणार्थियों हेतु भाषा प्रयोगशाला से लाभ—
(i) छात्र अपनी गति से सीखता है।
(ii) छात्र को अभिप्रेरणा मिल जाती है ।
(iii) शब्दों के उच्चारण में सहायता मिलती है ।
(vi) बार-बार शुद्ध विषय-वस्तु को सुनने से शुद्ध उच्चारण अधिगम में सहायता प्राप्त होती है ।
(v) साधारण कक्षा अध्ययन में भाषा अभ्यास के लिए जितना समय चाहिए वह नहीं मिलता, परन्तु भाषा प्रयोगशाला में यह सुविधा विद्यमान है।
(vi) छात्र में क्रियाशीलता बढ़ती है ।
(vii) छात्र अभ्यास द्वारा अपनी गलतियों को ठीक कर सकता है।
(viii) छात्र पाठ को बार-बार दोहरा सकता है।
(ix) चूँकि छात्र का उच्चारण किसी दूसरे छात्र को सुनायी नहीं देता, परन्तु भाषा प्रयोगशाला में यह सुविधा विद्यमान है।
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