अधिगमकर्त्ता के मध्य विविधताएँ व अधिगम आवश्यकता क्या है ? विशेष आवश्यकता वाले बालकों के सन्दर्भ में स्पष्ट कीजिए।

अधिगमकर्त्ता के मध्य विविधताएँ व अधिगम आवश्यकता क्या है ? विशेष आवश्यकता वाले बालकों के सन्दर्भ में स्पष्ट कीजिए। 

उत्तर— अधिगमकर्त्ताओं के मध्य विविधताएँ – पिछड़े, अल्पसंख्यक एवं अल्प आय वर्ग के विद्यार्थी सामान्यतः अपनी शैक्षणिक परीक्षाओं में कमजोर प्रदर्शन करते हैं। किन्तु इसके पीछे एक तथ्य यह भी है कि हम उनसे इसी कमजोर प्रदर्शन की अपेक्षा भी रखते हैं। अधिकांश व्यक्तियों का मानना है कि इन बच्चों के कमजोर प्रदर्शन का कारण वे स्वयं अथवा उनकी पारिवारिक परिस्थितियाँ हैं। ये बच्चे समुचित प्रयत्न नहीं करते, ‘उनके पास अध्ययन हेतु समुचित स्थान नहीं है’, ‘उनके अभिभावक ध्यान नहीं देते’, ‘उनकी संस्कृति में शिक्षा को महत्त्वपूर्ण नहीं मन जाता है’। ऐसे अनेक तर्क इन बच्चों के शैक्षणिक पिछड़ेपन के कारक के रूप में दिए जाते हैं, किन्तु ये सभी तर्क वास्तव में तार्किक नहीं है। तथ्य यह है कि हमें ज्ञात है कि गरीब, अल्प-संख्यक एवं अन्य कारणों से भिन्न बच्चों को किस प्रकार से शिक्षित किया जाना चाहिए ये विभिन्नता अनेक प्रकार की हो सकती है। धर्म, संस्कृति, भाषा अथवा आर्थिक स्तर के आधार पर सामान्यतः विभिन्नताएँ देखी जाती है। कुछ अध्यापक एवं कुछ विद्यालय वर्ष दर वर्ष इन्हें समुचित शिक्षा प्रदान करने हेतु प्रयत्नशील रहते हैं और सफल भी होते हैं । किन्तु राष्ट्र के रूप में अभी तक इस दिशा में महत्त्वपूर्ण प्रयास नहीं हुए हैं।
अधिगमकर्त्ताओं में विविधता—
भारत विविधताओं का देश है। विविधता में एकता सदा से इसकी संस्कृति रही है। विद्यालय में इन्हीं विविधताओं से परिपूर्ण समाज के बच्चे शिक्षा ग्रहण करने आते हैं। ये विविधताएँ अनेक प्रकार की हो सकती हैं। प्रमुख विविधताएँ-निम्नांकित हैं—
(1) त्वचा का रंग
(2) धर्म
(3) जाति
(4) संस्कृति
(5) उपासना पद्धति
(6) भाषा
(7) खान-पान
(8) रहन-सहन
(9) वेश-भूषा
(10) आर्थिक स्थिति
(11) शारीरिक गठन
(12) लिंग
(13) राजनैतिक स्थिति
(14) आयु
(15) मानसिक स्वास्थ्य
 (16) बौद्धिक स्थिति
(17) तार्किक क्षमता
(18) अधिगम क्षमता
(19) सृजनशीलता
(20) व्यक्तित्व
(21) संवेगात्मक स्थिति
(22) क्षेत्रीयता
इन सभी विविधताओं से युक्त विद्यार्थी कक्षा में एक साथ अध्ययन करने हेतु उपस्थित रहते हैं। शिक्षक का दायित्व है कि वह इन सभी विद्यार्थियों को अधिगम के समान एवं आवश्यकतानुसार समुचित अवसर प्रदान करें। सभी विद्यार्थियों हेतु सफल शिक्षण कार्य करने हेतु एक शिक्षक के लिए आवश्यक है कि वह कक्षा-कक्ष में ऐसा वातावरण निर्मित करें कि कोई भी विद्यार्थी स्वयं को उपेक्षित महसूस ना करें।
कक्षा-कक्ष में विविधता से तात्पर्य अधिगम-शैली में भिन्नता, शैक्षणिक पृष्ठभूमि, भाषागत भिन्नता तथा विद्यार्थी को घर पर मिलने वाले प्रोत्साहन का स्तर है। अधिगमकर्त्ताओं में अनेक प्रकार के भिन्नता होने के कारण शिक्षक का दायित्व है कि यह विभिन्न अनुदेशन पद्धतियों का प्रयोग करें एवं प्रत्येक विद्यार्थी की गतिविधि का सतत रूप से मूल्यांकन करें, ताकि प्रत्येक विद्यार्थी सफलता के सामान स्तर को प्राप्त कर सकें।
अधिगम आवश्यकता—
प्रत्येक विद्यार्थी की अधिगम आवश्यकता भिन्न होती है। यह भिन्नता उसकी व्यक्तिगत भिन्नता पर आधारित होती है। अधिगम आवश्यकता से तात्पर्य प्रत्येक विद्यार्थी की अधिगम से सम्बन्धित उन विशिष्ट आवश्यकताओं से है जिनकी पूर्ति वह शिक्षा ग्रहण करके कर सकता है शिक्षा के माध्यम से विद्यार्थी की विशिष्ट आवश्यकताओं को पहचान कर उनके अनुसार शिक्षण व्यूह रचना का निर्माण किया जाता है। विद्यार्थी को अधिगम के आवश्यकतानुसार अवसर प्रदान किये जाते हैं। इन अवसरों का लाभ विद्यार्थी अपने व्यक्तित्व अन्य प्रकार के विकास में कर सकता है।
अधिगम आवश्यकता की पहचान—
जिश्नर (1992) ने विद्यार्थियों की अधिगम आवश्यकताओं को पहचानने हेतु निम्नांकित उपायों का उल्लेख किया है—
(1) शिक्षक को राष्ट्र एवं समाज की भौगोलिक, जातीय एवं सांस्कृतिक पहचान की स्पष्ट समझ होनी चाहिए । इसका उपयोग वह विद्यार्थियों की सांस्कृतिक एवं सामाजिक पृष्ठभूमि को पहचानने में कर सकता है ।
(2) शिक्षक को विद्यार्थियों के साथ स्पष्ट एवं प्रभावकारी संवाद स्थापित करना चाहिए जिससे कि वह अपनी पक्षों को विद्यार्थियों तक पहुँच सके एवं समाज एवं विद्यार्थी की अपेक्षाओं को समझ सकें ।
(3) शिक्षक को अभिभावकों एवं समाज के सदस्यों से मिलकर विद्यार्थियों की विशिष्ट आवश्यकताओं को समझना चाहिए ।
(4) कक्षा-कक्ष में प्रत्येक विद्यार्थी को समान शैक्षणिक अवसर प्रदान कर विद्यार्थियों की शैक्षणिक एवं अधिगम सम्बन्धी विविधताओं को समझा जा सकता है।
(5) शिक्षक द्वारा विद्यालय में होने वाली सह-शैक्षणिक गतिविधियों में प्रत्येक विद्यार्थी को समान अवसर प्रदान कर व्यक्तित्व एवं सृजनात्मकता सम्बन्धी विविधताओं की पहचान करनी चाहिए।
विशिष्ट अधिगम आवश्यकता—
विशिष्ट अधिगम आवश्यकता से तात्पर्य उन विद्यार्थियों की अधिगम आवश्यकता से है जिनमें अधिगम सम्बन्धी समस्याएँ होती हैं। ये अधिगम गति, शारीरिक दोष अथवा अन्य कारणों से हो सकती हैं। सामान्य शब्दों में कहा जाये तो सामान आयु वर्ग का होने के उपरान्त भी जिन विद्यार्थियों को अधिगम हेतु विशिष्ट प्रयत्नों एवं सुविधाओं की आवश्यकता होती है उनकी अधिगम सम्बन्धी आवश्यकतायें विशिष्ट अधिगम आवश्यकतायें कहलाती हैं। ये आवश्यकतायें निम्नांकित हो सकती हैं—
(1) विशेष कक्षाओं की आवश्यकता
(2) विशिष्ट शिक्षण विधियों की आवश्यकता
(3) विशिष्ट पाठ्यक्रम की आवश्यकता
(4) अतिरिक्त समय की आवश्यकता
(5) विशिष्ट व्यवहार प्रशिक्षण की आवश्यकता
शिक्षक को इन आवश्यकताओं को पहचान कर विद्यार्थियों की अधिगम सम्बन्धी समस्याओं का समाधान करना चाहिए।
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