भीष्म का पश्चाताप : समीक्षा

भीष्म का पश्चाताप : समीक्षा

आधुनिक हिंदी कविता में दिनकर रचित ‘कुरूक्षेत्र’ की सार्थकता रेखांकन योग्य है। यह आशा और उत्साह, दुख और पश्चाताप, ग्लानि और क्षोभ, वीरता और बलिदान आदि नाना भावों को व्यक्त करने वाला काव्य है। यह उस प्रकार का काव्य है, जिससे पराधीन जाति को स्वतंत्रता-संघर्ष से जूझने की शक्ति प्राप्त होती है, क्रांति के मार्ग पर आरूढ़ समाज को अपने गंतव्य तक जाने की प्रेरणा मिलती है। हिंसा र अहिंसा के बीच द्वंद्व के जो मकड़ी के जाले युग की चेतना पर छाये हुए थे। कुरूक्षेत्र काव्य ने उन्हें फाड़ डाला। कुरूक्षेत्र का कवि अहिंसा को परम धर्म और हिंसा को आपद्धर्म (जरूरत पड़ने पर) मानता है, किंतु उसका विश्वास है कि जिसका आपद्धर्म नष्ट हो गया, उसका परम धर्म भी जीवित नहीं रहेगा। युद्ध का समर्थक भीष्म को भी अंत में पश्चाताप से गुजरना पड़ता है। ‘भीष्म का पश्चाताप’ इसी ‘कुरूक्षेत्र’ के चौथे सर्ग का अंतिम अंश है। इस अंश में भीष्म अपनी अति नीतिवादिता पर पश्चाताप करते हैं।
 भीष्म को पश्चाताप इस बात की है कि वे सुयोधन को रोक क्यों नहीं पाते थे? उन्होंने स्वीकार किया है कि सुयोधन के कर्मो से वे खिन्न रहते किंतु नीति के आगे (राजा के आगे) वे कुछ कर नहीं पाते थे। उन्होंने अनुशासन का दामन नीति के हाथों छोड़कर अपने ही घर में पराधीन (सुयोधन के) हो गए। उन्होंने स्वीकार किया है कि वे हमेशा बुद्धि और नीति की आवाज सुनते रहे, दिल की आवाज नहीं सुनी। उनका हृदय उनकी बुद्धि से डरता था, कदाचित इसलिए उनका हृदय उनकी बुद्धि को यह नहीं कह पाया कि न्याय दंड पकड़कर भी तुम अन्याय सहते चले जा रहे हो।
 भीष्म की कठिनाई यह थी कि भीष्म का शरीर और बुद्धि कौरवों की ओर था तो हृदय पाण्डवों की ओर। इस द्वैधपूर्ण जिंदगी के शिकार हो गये। भीष्म कहते हैं कि पाण्डव और दुर्योधन के बीच वैर भाव के पनपते ही, उन्हें उसका सफाया कर देना चाहिए था, किंतु मैं इस कार्य में असफल हो गया। वे अंत तक यह फैसला नहीं कर पाये कि उन्हें पूर्णत: किसका साथ देना चाहिए। जिसकी नमक खाते हैं उसकी या जो सच के साथ है उसकी।
 भीष्म सोचते हैं कि यदि उन्होंने बुद्धि की न मानी होती तो पवित्र और प्रेमपूर्ण न्याय की पहचान कर पाते, स्नेह-जल से राजनीति की गंदगी को साफ कर पाते, पवित्र करूण भाव से दंड-नीति को साध पाते, सुयोधन से अपनी बातें मनवा पाते, बुद्धि को नियंत्रण से स्वयं को मुक्ति कर पाते, अन्याय पीड़ितों का पक्ष ले पाते या न्याय का साथ लेकर सुयोधन को चुनौती दे पाते। तब कदाचित यह देश कल्पांत का कारण बना महाभारत युद्ध से बच पाता। अंत में भीष्म कहते हैं कि जो हो गया उसे भूल कर नये युग का स्वागत करना चाहिए पर सब कुछ हो चुका, नहीं कुछ शेष, कथा जाने दो, भूलो बीती बात, नये युग को जग में आने दो।

Sujeet Jha

Editor-in-Chief at Jaankari Rakho Web Portal

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *