मौलिक कर्त्तव्यों के प्रति जागरूकता पैदा करने में शिक्षा की भूमिका बताइये ।

मौलिक कर्त्तव्यों के प्रति जागरूकता पैदा करने में शिक्षा की भूमिका बताइये ।

उत्तर— मौलिक कर्त्तव्यों के प्रति जागरूकता पैदा करने में शिक्षा की भूमिका – शिक्षा कर्त्तव्यों को व्यवहार में परिणत करने के लिए सर्वप्रथम ज्ञान (तथ्यात्मक) प्रदान करती है। ज्ञान के आधार पर जागरूकता उत्पन्न होती है। परिणामस्वरूप व्यवहार परिवर्तन की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है। व्यवहार परिवर्तन का परिणाम कर्त्तव्य पालन के रूप में दिखाई देता है जिससे मूल कर्त्तव्यों की व्यवहार परिणति सशक्त होती है। इस सन्दर्भ में शिक्षा की निम्नलिखित भूमिका हो सकती है—
(1) मौलिक कर्त्तव्यों की जानकारी देना – नागरिक अपने कर्त्तव्यों का पालन तभी कर पाएँगे जब उन्हें यह जानकारी हो कि भारतीय संविधान के अनुसार उनके क्या-क्या मौलिक कर्त्तव्य है। शिक्षा के द्वारा उन्हें उनके इन कर्त्तव्यों से अवगत कराया जा सकता है। इसके लिए निम्न प्रयास किए जा सकते हैं—
(i) विभिन्न भाषाओं की पुस्तकों में मौलिक कर्त्तव्यों से सम्बन्धित पाठों को स्थान देना।
(ii) नागरिकशास्त्र (Civics) के अन्तर्गत ‘मौलिक कर्त्तव्य’ नामक पाठ शामिल करना ।
(iii) ‘मौलिक कर्त्तव्य’ विषय पर विशिष्ट व्यक्तियों के व्याख्यान का आयोजन करना आदि।
(2) प्रजातांत्रिक नागरिकता का विकास करना – प्रजातांत्रिक नागरिकता का अर्थ है— प्रजातन्त्र के योग्य नागरिक के रूप में व्यक्ति को तैयार करना । प्रजातन्त्र के योग्य नागरिक से यह भी उम्मीद की जाती है कि वह अपने मौलिक कर्त्तव्यों का पालन करें। शिक्षा द्वारा व्यक्ति में प्रजातांत्रिक नागरिकता के गुणों का विकास करके उसे कर्त्तव्यों के प्रति सचेत किया जा सकता है।
(3) राष्ट्रीय प्रतीक व उनके महत्त्व से परिचित कराना – शिक्षा द्वारा विद्यार्थियों को राष्ट्रीय प्रतीकों की जानकारी देना उनका महत्त्व भी बताया जा सकता है इससे उनमें इन प्रतीकों के प्रति आदर-भाव का विकास करने में मदद मिलेगी।
(4) राष्ट्रीय सेवा की भावना का विकास करना- प्रत्येक नागरिक से यह अपेक्षा की जाती है कि उसमें राष्ट्रीय सेवा एवं राष्ट्रीय हित के लिए सर्वस्व बलिदान करने की भावना हो। शिक्षा विद्यार्थियों को देश के स्वतन्त्रता संग्राम एवं उसमें देशवासियों द्वारा किए गए बलिदानों से अवगत कराती है। इससे प्रेरित होकर वे भी राष्ट्रीय हितों के लिए अपने स्वार्थों को छोड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं ।
(5) अध्यापक आदर्श के रूप में अध्यापक विद्यार्थी के लिए आदर्श होता है। शिक्षा द्वारा विद्यार्थियो को अपने मौलिक कर्त्तव्यों का पालन करने के लिए प्रेरित करने की दृष्टि से यह आवश्यक है कि अध्यापक भी इन संवैधानिक कर्त्तव्यों का पालन करके बच्चों के समक्ष आदर्श प्रस्तुत करें।
(6) सहगामी गतिविधियों का आयोजन—विद्यालयों में भाषण, वाद-विवाद, अभिनय, निबन्ध लेखन तथा कविता-पाठ आदि का आयोजन भी उपयोगी सिद्ध हो सकता है। इनके लिए चुने गए विषय मौलिक कर्त्तव्यों से सम्बन्धित होने चाहिए।
(7) सांस्कृतिक धरोहर से परिचित कराना – भारत की संस्कृति विश्व की महानतम संस्कृति है। भारतीय होने के नाते विद्यार्थी का इससे परिचित होना आवश्यक है। शिक्षा ही वह साधन है जो ऐसा कर सकती है । भारतीय संस्कृति की विशेषताओं को जानने के बाद विद्यार्थी स्वयं ही उसका सम्मान करने लगेंगे। दूसरे शब्दों में अपने मौलिक कर्त्तव्य का पालन करने लगेंगे।
(8) पर्यावरण प्रदूषण के प्रति सचेत करना – पर्यावरण में होने वाले प्रदूषण को रोकना भी प्रत्येक नागरिक का मौलिक कर्त्तव्य है। इस सन्दर्भ में शिक्षा की महत्त्वपूर्ण भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता ।
(9) राष्ट्रीय एकता एवं विश्व परिवार की भावना का विकास करना – प्रत्येक नागरिक का यह कर्त्तव्य भी है कि वह आपसी मतभेदों व विभिन्नताओं को भुलाकर राष्ट्रीय एकता को बनाए रखें। यही नहीं, मानव होने के नाते पूरी मानवता की भलाई के लिए कार्य करें। शिक्षा विभिन्न विषयों व सहगामी गतिविधियों द्वारा विद्यार्थियों में इस सोच का विकास कर सकती है ।
(10) महिलाओं के प्रति आदर-भाव का विकास करना – नारी शक्ति का सम्मान करना भी प्रत्येक भारतीय नागरिक का संवैधानिक कर्त्तव्य है और उसे उसके कर्त्तव्य का पालन करने योग्य बनाने का कार्य शिक्षा ही करती है। शिक्षा द्वारा उसे समाज में महिलाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका से अवगत कराया जा सकता है। इससे उसके मन में उनके प्रति स्वतः ही सम्मान की भावना का विकास हो जाएगा।
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