‘यहाँ एक तैं दसरौ औंक नहीं की व्याख्या करें।
‘यहाँ एक तैं दसरौ औंक नहीं की व्याख्या करें।
उत्तर :- प्रस्तुत पक्ति हिन्दी साहित्य की पाठय-पस्तक के कवि घनानंद द्वारा राचत आत सूधी सनेह को मारग है” पाठ से उद्धत है। इसके माध्यम से कवि प्रमा आर प्रयों का एकाकार करते हुए कहते हैं कि प्रेम में दो का पह अलग-अलग नहीं रहती, बल्कि दोनों मिलकर एक रूप में स्थित हो जाते हैं। प्रेमी निश्छल भाव से सर्वस्व समर्पण की भावना रखता है और तुलनात्मक अपक्षा नही करता है। मात्र देता है, बदले में कुछ लेने की आशा नहीं करता है।
प्रस्तुत पंक्ति में कवि घनानंद अपनी प्रेमिका सुजान को संबोधित करत हक ह सुजान, सुनो ! यहाँ अर्थात् मेरे प्रेम में तुम्हारे सिवा कोई दसरा चिह्न नहीं है। मेरे हृदय में मात्र तुम्हारा ही चित्र अंकित है।
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