रक्त समूह (Blood Groups) पर टिप्पणी लिखें ।
रक्त समूह (Blood Groups) पर टिप्पणी लिखें ।
(40वीं BPSC/1995)
उत्तर – सभी मनुष्यों के रक्त समान नहीं होते हैं, अतः रक्तदान करते समय रक्तदाता एवं प्राप्तकर्ता के रक्त समूह (Blood Group) की जानकारी आवश्यक है। मनुष्यों के रक्त में अंतर का मूल कारण लाल रक्त कण (RBC) में पाई जाने वाली एक विशेष प्रकार की प्रोटीन ग्लाइको प्रोटीन है, जिसे एन्टीजन (Antigen) कहते हैं। रक्त समूह की खोज का श्रेय का लैण्डस्टीनर को दिया जाता है, जिन्होंने 1900 में रक्त समूह की खोज की। इस खोज के लिए इन्हें 1930 में नोबेल पुरस्कार भी मिला।
लाल रक्त कण (RBC) में पाये जाने वाले ग्लाइको प्रोटीन या एन्टीजन (Antigen) के आधार पर रक्त को चार वर्गों में बांटा गया है, जिसे रक्त समूह (Blood Group) कहते हैं ।
(i) समूह A ( group A) – इसमें A एन्टीजन होता है।
(ii) समूह B ( group B)- इसमें B एन्टीजन होता है।
(iii) समूह AB (group AB ) – A तथा B एन्टीजन होता है।
(iv) समूह O (group O) – कोई एन्टीजन नहीं होता है।
कार्ल लैण्डस्टीनर ने यह भी बताया कि रक्त प्लाजमा में उपस्थित प्रोटीन पदार्थ को प्रतिरक्षी या एन्टीबॉडी (Antibodies) कहते हैं। यह दो प्रकार के होते हैं- a, bA जिस लाल रूधिर कण की कोशिका (RBC) में एन्टीजन A होता है उसमें एन्टीबॉडी a नहीं होता। इसी प्रकार B एन्टीजन वाली RBC में एन्टीबॉडी b नहीं होता। इसे निम्न तालिका से समझा जा सकता है
किसी भी व्यक्ति को रक्त चढ़ाते समय यह ध्यान रखना होता है कि दाता के रक्त में ऐसे एन्टीजन न हों कि प्राप्तकर्ता के रक्त प्लाज्मा में उपस्थित एन्टीबॉडी से मिलकर रक्त का थक्का बना ले |
अतः रक्तदाता का रक्त समूह एवं रक्त प्राप्तकर्ता का रक्त समूह निम्न तालिका के अनुसार होना चाहिए –
> रक्त समूह AB को समान्य प्राप्तकर्ता (Universal Recepient) तथा
> रक्त समूह O को सामान्य दाता (Universal Donor) कहा जाता है।
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