वाचन की विशेषताएँ बताते हुए मौन वाचन की उपयोगिता एवं महत्त्व का प्रतिपादन कीजिए।
वाचन की विशेषताएँ बताते हुए मौन वाचन की उपयोगिता एवं महत्त्व का प्रतिपादन कीजिए।
उत्तर— वाचन के बिना व्यक्ति अपनी अनुभूतियों को अभिव्यक्त नहीं कर सकता। व्यक्ति का सबसे बड़ा आभूषण उसकी सुसंस्कृत एवं मधुर वाणी है। विकास वाचन पर ही आधारित है। वाचन एक कला है। यहाँ वाचन की मुख्य विशेषताएँ दी जा रही हैं, जो व्यक्ति के व्यक्तित्व विकास में महत्त्वपूर्ण है—
(1) वाचन व्यक्तित्व के विकास का श्रेष्ठतम साधन है— वाचन के द्वारा ही व्यक्ति के आत्म प्रकाशन का सुअवसर प्राप्त होता है । मनुष्य अपने भावों, विचारों और अनुभूतियों को वाचन द्वारा ही प्रकट करता है। इस प्रकटीकरण से उसे सन्तुष्टि भी मिलती है। अभिव्यक्ति के बिना व्यक्ति अनेक ग्रन्थियों एवं मानसिक कुंठाओं से पीड़ित हो जाता है।
(2) वाचन शिक्षा की प्रक्रिया के संचालन का साधन है—शिक्षा की प्रक्रिया का संचालन सभी शिक्षण स्तरों (पूर्व प्राथमिक, प्राथमिक, उच्च प्राथमिक, माध्यमिक एवं उच्च माध्यमिक) पर वाचन के माध्यम से ही किया जाता है। बिना वाचन के शिक्षा प्रक्रिया का संचालन सम्भव नहीं है।
(3) वाचन शरीर के अवयवों के व्यायाम का साधन है—वाचन करते समय शरीर के अवयवों का संचालन होता रहता है जिसमें हाथों की गतिविधियों, नेत्रों की गति, मुख की मुद्राओं का विशेष महत्त्व है। वाचन में हाव-भावों, स्वरों, आरोह-अवरोह वाणी की मधुरता व शब्दों के शुद्ध उच्चारण का विशेष महत्त्व है जिससे उच्चारण अवयवों का व्यायाम भी होता रहता है। इनसे अभिव्यक्ति के सम्प्रेषण में एक अद्भुत शक्ति, सजीवता और हृदय स्पर्शिता प्राप्त होती है।
(4) वाचन शक्ति के संचार का साधन है—शब्दों के व्यक्त करने की शैली से शक्ति का संचार होता है। शब्दों की शक्ति से सामाजिक कुरीतियों तथा व्यक्तियों में परिवर्तन सम्भव है।
(5) वाचन ही भाषा को पूर्णता प्रदान करता है—लिखित भाषा को सीखने के लिए वाचन की आवश्यकता होती है। अक्षरों को सिखाने के लिए अक्षर की ध्वनि के उच्चारण की सहायता ली जाती है। वाचन के अभाव में भाषा का ज्ञान अधूरा माना जाता है। गूंगा तथा बधिर व्यक्ति लिखना सीख लेता है परन्तु वह बोल नहीं सकता है। उसके लिए भाषा का ज्ञान बिना वाचन के अधूरा ही रहता है वह सुन भी नहीं सकता है।
(6) वाचन की मधुरता व्यक्ति को समाज में स्थान दिलाती है—दिन-प्रतिदिन के जीवन निर्वाह में, व्यवहार में वाचन का विशेष महत्त्व है। मधुर वाचन में व्यक्ति सामाजिक क्षेत्र में स्थान बना लेता है । पं. मदनमोहन मालवीय जी की वाणी में यही गुण थे जिससे उनका वाचन जादू के समान कार्य करता था।
(7) वाचन भावों एवं विचारों के सम्प्रेषण का साधन है—वाचन द्वारा ही व्यक्ति अपने भावों, विचारों और अनुभूतियों को दूसरों को सम्प्रेषित करता है ।
(8) वाचन से शिष्टाचार की अनुभूति होती है—वाचन के समय उचित स्थिति में आसन से खड़े होना, सावधान खड़े होकर वाचन करते रहना, आँख व मुँह को इधर-उधर न फेरना एवं एकाग्रचित्त होकर अपने वाचन में लगे रहना, शिष्टाचार की श्रेणी में आता है जिसका छात्रों में धीरे-धीरे विकास होता रहता है। साथ ही वाचन में मौलिकता, मर्मस्पर्शिता, मधुरता और शीतलता का समावेश होना चाहिए।
(9) वाचन शुद्ध भाषा के प्रयोग की दक्षता का विकास करता है—वाचन में शब्दों के शुद्ध उच्चारण के साथ स्वर का उतारचढ़ाव, पदबंध और वाक्य का शुद्ध रूप में प्रयोग करना अपेक्षित है तथा व्याकरणीय पदक्रम की व्यवस्था का पालन करना भी आवश्यक है जिससे शुद्ध भाषा के प्रयोग की दक्षता का विकास होता है।
(10) वाचन व्यक्ति में आत्म-विश्वास पैदा करता—अक्सर बहुत से छात्र कक्षा में वाचन अथवा बोलने में झिझकते हैं, मगर धीरेधीरे छात्र नियमित वाचन द्वारा इसमें दक्षता प्राप्त कर लेते हैं जिससे उनका आत्मविश्वास बढ़ता जाता है।
(11) वाचन सामाजिक दक्षता का आधार है—सामाजिक दक्षता बहुत कुछ भावों एवं विचारों के मौखिक प्रकाशन पर निर्भर है। सामाजिक स्तर पर व्यक्ति विचारों के आदान-प्रदान में जितना कुशल होगा उसमें उतनी ही सामाजिक दक्षता मानी जाती है।
(12) वाचन शिक्षा का माध्यम है—आज के तकनीकी युग में शिक्षा के सभी क्षेत्रों में प्रचार-प्रसार की महती आवश्यकता है। दूरवर्ती शिक्षा में माध्यमों की सहायता से व्यक्ति कहीं भी पहुँचकर शिक्षा प्रदान कर सकता है जिसमें अच्छे वक्ता या शिक्षक के वाचन का सभी को लाभ प्रदान किया जा सकता है ।
मौन वाचन का महत्त्व एवं उपयोगिता—वाचन मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है मौखिक (सस्वर) एवं मौन वाचन मौन वाचन का महत्त्व निम्न प्रकार से है—
(i) मौन वाचन में एकाग्रचित्त होकर पढ़ने से स्वाध्याय की आदत डाली जा सकती है। दिन-रात पढ़ते रहने के बजाय एकाग्रचित्त होकर थोड़ी देर पढ़ना ही अधिक लाभदायक है।
(ii) मौन वाचन विद्यार्थी को अर्थबोध व संक्षेपीकरण की कला में दक्ष बनाता है।
(iii) मौन वाचन में सस्वर वाचन की अपेक्षा कम समय में अधिक अध्ययन किया जा सकता है जिससे समय की बचत होती है।
(iv) मौन वाचन का अभ्यास हो जाने पर छात्रों को गृह कार्य देने में सरलता हो जाती है ।
(v) मौन पाठ के सतत् अभ्यास से पढ़ते-पढ़ते बालक विचार शक्ति का प्रयोग करना तथा सार ग्रहण करना सीख जाता है।
(vi) मौन वाचन से अध्ययन की लालसा बढ़ती है। सस्वर वाचन की अपेक्षा मौन वाचन की गति दुगुनी होती है। धीरे-धीरे इतनी गति बढ़ जाती है कि कुछ लोग 300 पृष्ठ का उपन्यास एक दिन में पूरा पढ़ लेते हैं ।
(vii) मौन वाचन में सस्वर वाचन की अपेक्षा थकान कम होती है क्योंकि बोलने व उच्चारण करने में शक्ति नहीं लगती है।
(viii) सार्वजनिक स्थानों तथा रेल एवं बस में यात्रा करते वक्त मौन वाचन ही किया जाता है, नहीं तो सस्वर वाचन करने से एक प्रकार की अव्यवस्था उत्पन्न हो जायेगी।
मौन वाचन की उपयोगिता—जीवन के कुछ स्थलों को छोड़कर; जैसे—अभिभाषण पढ़ना, अभिनन्दन पढ़ना, प्रतिवेदन पढ़ना आदि हमारे जीवन का अधिकांश क्रिया-कलापों का सम्बन्ध मौन वाचन से ही है । हम प्रत्येक अवस्था में सबके सामने सस्वर वाचन नहीं कर सकते । साथ ही साथ वाचन द्वारा अर्थ के ग्रहण करने में तथा पढ़ने की गति में व्यवधान पहुँचता है । मौन वाचन में अर्थ का ग्रहण जल्दी होता है । वाचनालय में हम पत्र-पत्रिकाओं का चाहकर भी सस्वर वाचन नहीं कर सकते, क्योंकि यह शिष्टाचार के विरुद्ध है। इसी तरह सार्वजनिक स्थान पर रेल, यात्रा में, बस यात्रा में तथा घर-परिवार में भी सस्वर वाचन नहीं कर सकते ।
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