विकास की संपूर्ण संभावनाओं के होते हुए भी बिहार भारत का एक पिछड़ा राज्य माना जाता है। स्पष्ट कीजिए।
विकास की संपूर्ण संभावनाओं के होते हुए भी बिहार भारत का एक पिछड़ा राज्य माना जाता है। स्पष्ट कीजिए।
अथवा
विकास की संभावना होते हुए भी बिहार पिछड़ा राज्य है। इसके पक्ष में तर्क एवं कारण दें।
उत्तर- भारत के पिछड़े राज्यों की गिनती में बिहार का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। बिहार लगभग हर दृष्टिकोण से अन्य राज्यों की अपेक्षा पिछड़ गया है। आर्थिक समृद्धि, सामाजिक विकास एवं समरूपता, शैक्षणिक स्थिति आदि दृष्टिकोण से बिहार की हालत दयनीय है। दूसरे राज्यों एवं महानगरों में बिहार एवं बिहारियों की छवि बहुत अच्छी नहीं मानी जाती। वास्तव में इनका कारण क्या है ? क्या विकास के लिए हमारे पास संभावनाओं की कमी है? नहीं, वास्तव में समृद्ध प्राकृतिक साधनों एवं मेहनती तथा योग्य मानव संसाधनों के कारण हमारे पास विकास की अपार संभावनाएं हैं, लेकिन कुछ सामाजिक समस्याओं एवं राज्य सरकार की दृढ़ इच्छाशक्ति के अभाव में इनका समुचित उपयोग नहीं हो सका है।
बिहार में अनेक सामाजिक बुराइयां हैं, जिनमें जातिवाद प्रमुख है जो विकास को प्रभावित करती है। बिहार की राजनीति में जातिवाद निर्णायक है। यद्यपि पिछले दो विधानसभा चुनावों में जनता ने जाति की तुलना में विकास को चुना है, स्थानीय स्तर पर जाति का अभी भी स्पष्ट प्रभाव है।
बिहार विभाजन के बाद शेष बिहार में खनिज संसाधनों का लगभग अभाव हो गया है परन्तु हमारे हिस्से एक उपजाऊ मैदानी भाग है जो कृषि-क्षेत्र में उत्कृष्टता प्रदर्शित कर सकती है। हमारे पास मानव संसाधनों की प्रचुरता है। राज्य के मजदूरों ने अन्य राज्यों के विकास में योगदान दिया है। ये मजदूर अपने राज्य में ही काम मिलने से ज्यादा मेहनत से कार्य करेंगे। इससे इनकी भी समृद्धि एवं खुशहाली बढ़ेगी। उच्च शिक्षित लोगों ने भी बिहार की शान भारत के अन्य शहरों, महानगरों एवं विदेशों में बढ़ाई है। इनका उपयोग बिहार के विकास में किया जा सकता है। राज्यों में ज्ञान आधारित उद्योग का भी विकास किया जा सकता है जिसमें अन्य उद्योगों की तरह वृहद संसाधनों की आवश्यकता नहीं है।
बिहार उत्तर भारत के मैदानी भाग का एक उपजाऊ प्रदेश है तथा यहां की अर्थव्यवस्था लगभग कृषि आधारित है। परन्तु प्राकृतिक एवं गैर-प्राकृतिक समस्याओं के कारण कृषि का समुचित विकास नहीं हो सका है। बाढ़, सूखा, जल-जमाव जैसी प्राकृतिक समस्याओं का स्थायी समाधान हम नहीं कर सके हैं। उसी प्रकार भू-सुधार संबंधी कानूनों को अभी तक ठीक से नहीं लागू किया गया है। इसमें अनेक सामाजिक एवं राजनीतिक बाधाएं हैं जिन्हें दूर करना होगा। भूमि हदबंदी कानून एवं काश्तकारी कानून को संशोधित कर लागू करने की आवश्यकता है, तभी कृषि का विकास संभव है एवं कृषि के विकास पर बिहार का विकास निर्भर है।
पर्याप्त खनिज संसाधनों के अभाव के बावजूद उद्योग लगाने के लिए आवश्यक अन्य तत्व बिहार में उपलब्ध हैं। यदि सरकारी स्तर पर सक्रियता दिखाई जाए तो बिहार में निवेश की भरपूर संभावना है। उद्योग के लिए आवश्यक भूमि, जल संसाधन, मेहनती एवं उच्च स्तरीय मानव संसाधन आदि उपलब्ध हैं। संतोष की बात है कि वर्तमान सरकार विकास के प्रति गंभीर है एवं सरकार द्वारा किए गए प्रयास सकारात्मक प्रभाव उत्पन्न कर रहे हैं।
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