भारत में ‘खाद्य सुरक्षा की आवश्यकता का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।

भारत में ‘खाद्य सुरक्षा की आवश्यकता का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।

अथवा

खाद्य सुरक्षा की अवधारणा को स्पष्ट करें। 
अथवा
बढ़ती जनसंख्या एवं खाद्य सुरक्षा के बीच सम्बंध की व्याख्या करें। 
अथवा
खाद्य सुरक्षा हेतु सरकार द्वारा संचालित विभिन्न योजनाओं का संक्षेप में समालोचनापूर्वक उल्लेख करें।
उत्तर- खाद्य सुरक्षा, का अर्थ है कि सभी लोग पर्याप्त, सुरक्षित और पौष्टिक भोजन तक आर्थिक पहुंच रखते हैं, जो उनकी खाद्य वरीयताओं एवं आहार संबंधी जरूरतों को पूरा करता है। यह एक सक्रिय एवं स्वस्थ जीवन के लिए अनिवार्य है। देश की खाद्य एवं पोषण सुरक्षा को लम्बे समय तक बनाये रखना एक कठिन चुनौती है, क्योंकि आबादी में लगातार वृद्धि हो रही है, शहरीकरण बढ़ता जा रहा है एवं नागरिकों की आय बढ़ने से भोजन की मांग एवं विविधता में भी वृद्धि दर्ज की जा रही है। यदि इस भावी परिदृश्य को 2050 के नजरिये से देखा जाए तो भारत की आबादी लगभग 1.65 अरब तक पहुंचने की संभावना है। ध्यान देने योग्य बात यह है कि इस समय देश की 50% आबादी शहरी क्षेत्रों में बसी होगी, जिससे खाद्यान्न असुरक्षा बढ़ने की सम्भावना जताई जा रही है। कुछ महत्वपूर्ण अध्ययनों से पता चला है कि यदि देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) मे सात प्रतिशत की वृद्धि दर मानी जाय तो वर्ष 2050 में अनाज की मांग 50% तक बढ़ सकती है। जबकि फलों, सब्जियों एवं पशु उत्पादों में 100 से 300% तक की वृद्धि हो सकती है। इसका एक अर्थ यह भी है कि प्रति व्यक्ति कैलोरी मांग 3000 किलो कैलोरी से अधिक हो सकती है।
उपर्युक्त के आधार पर अनुमान लगाया गया है कि देश में खाद्यान्नों की मांग 45 करोड़ टन तक पहुंच सकती है। इसी तरह से दालों, खाद्य तेलों, दूध, मांस, अण्डा, फलों, सब्जियों, चीनी एवं अन्य कृषि उत्पदकों की मांग भी इसी अनुपात में बढ़ सकती है।
खाद्य सुरक्षा तीन तत्वों का संयोजन है जिसमें, भोजन की उपलब्धता, भोजन की पहुंच, खाद्य उपयोग शामिल है।
•  भोजन की उपलब्धता
भोजन की उपलब्धता अर्थात भोजन पर्याप्त मात्रा में और सुसंगत आधार पर सबको उपलब्ध होना चाहिए। यह किसी दिये गये क्षेत्र में स्टॉक और उत्पादन और व्यापार या सहायता के माध्यम से कही और से भोजन लाने की क्षमता पर विचार करता है।
•  भोजन की पहुंच
सभी व्यक्तियों को भोजन तक पहुंच अर्थात् नियमित रूप से खाद्यान्न खरीद तथा खाद्य सहायता के माध्यम से भोजन की पर्याप्त मात्रा प्राप्त करने में सक्षम होना चाहिए ।
•  खाद्य उपयोग
उपयोग किय गये भोजन का नागरिकों पर पोषण का सकारात्मक प्रभाव होना चाहिए। यह खाना पकाने, भण्डारण और स्वच्छता प्रथाओं तथा व्यक्तियों के स्वास्थ्य को सही रखने में सहायता करता है ।
उल्लेखनीय है कि खाद्य सुरक्षा घरेलू संसाधनों, डिस्पोजेबल आय और सामाजिक आर्थिक स्थिति से निकटता से सम्बंधित है। यह अन्य मुद्दों जैसे खाद्य मूल्य, जलवायु परिवर्तन, जल, ऊर्जा और कृषि विकास के साथ दृढ़ता से जुड़ा हुआ है।
•.  खाद्य सुरक्षा भारत के लिए महत्वपूर्ण क्यों?
इसे निम्नलिखित बिन्दुओं के माध्यम से समझा जा सकता है।
> कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने लिए ।
> खाद्य कीमतों पर नियंत्रण रखने के लिए।
> आर्थिक विकास एवं रोजगार सृजन के लिए गरीबी में कमी लाने के लिए।
>  व्यापार अवसरों में वृद्धि के लिए ।
> बढ़ी हुई वैश्विक सुरक्षा और स्थिरता के लिए |
> बेहतर स्वास्थ्य एवं स्वास्थ्य सेवा के लिए।
• भारत में खाद्य सुरक्षा की चिन्ताएं
> भारत में वर्तमान में दुनिया में कुपोषित लोगों की सबसे बड़ी संख्या (लगभग 195 मिलियन) निवास करती है।
> भारत में लगभग 10 करोड़ बच्चों में 4.7 करोड़ अविकसित या स्टंटिंग के कारण अपनी पूरी मानव क्षमता को पूरा नहीं कर पाते हैं।
भारत में कृषि उत्पादकता बहुत कम है। विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार भारत में अनाज की पैदावार 2992 किग्रा/हेक्टेयर है, जबकि यही उत्तरी अमेरिका में 7318.4 किग्रा / हेक्टेयर है।
> मछली, अण्डे, दूध एवं मांस की उपलब्धता काफी कम है।
> ग्लोबल हंगर इण्डेक्स 2019 के अनुसार भारत 119 देशों में से 102वें स्थान पर था ।
उपरोक्त आंकड़ों के आधार पर भारत में खाद्य सुरक्षा को लेकर चिन्ताएं उजागर हो जाती है, क्योंकि उक्त आंकड़ों में इसके सभी पड़ोसी देशों की स्थिति भारत से अच्छी है।
उचित खाद्यान्न की आपूर्ति न हो पाने के कारण भारत में खाद्य सुरक्षा पर प्रश्नचिह्न लग रहे हैं। क्योंकि भारत 15 से 49 वर्ष की प्रजनन आयु की 51.4% महिलाएं एनीमिक (रक्त अल्पता) की शिकार हैं, वहीं भारत में 5 वर्ष से कम आयु के 38.4% बच्चों का वजन कम है। ये आंकड़े भारत के लिए बहुत चिंता का विषय है।
 > आदिवासी समुदायों के लिए, दूरदराज के कठिन इलाकों में रहने वाले एवं जीवन निर्वाह करने वाले लोगों तक खाद्य सुरक्षा की पहुंच अपने आप में चुनौतीपूर्ण है।
> अनौपचारिक कार्यबल का बड़ा हिस्सा गांव से शहरों की ओर पलायन कर रहा है, जिसके परिणामस्वरूप शहरी क्षेत्रों में मलिन बस्तियों का अनियोजित विकास हुआ है तथा बुनियादी स्वास्थ्य और स्वच्छता सुविधाओं की कमी, अर्पाप्त आवास और खाद्य असुरक्षा में वृद्धि हुई है ।
> ग्लोबल वार्मिंग अथवा गर्म होती धरती की वैश्विक विपदा को खाद्य सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा माना जा रहा है। वैज्ञानिक अनुमान बताते हैं कि यदि हम औसत तापमान बढ़ोतरी पर कोई सार्थक रोक नहीं लगाते तो सन् 2050 तक औसत तापमान में 2.2 से 2.9°C तक की वृद्धि हो सकती है। इससे रबी एवं खरीफ की फसलों के साथ फलों, सब्जियों, दूध उत्पादन तथा मछली उत्पादन पर भी अधिकाधिक प्रभाव पड़ने की सम्भावना जताई जा रही है। अनुमान है कि तापमान बढ़ोत्तरी के वर्तमान रुख के अनुसार वर्ष 2050 तक गेहूं के कुल उत्पादन में 01 करोड़ 17 लाख टन तक की कमी आ सकती है। आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु एवं कर्नाटक में बरानी चावल के उत्पादन में 10-15% तक बढ़ोत्तरी हो सकती है, किन्तु पंजाब, हरियाणा में इसमें 15-17% की कमी आ सकती है। यहीं तक नहीं देश के अन्य क्षेत्रों में भी चावल की पैदावार में 6-8% की गिरावट देखी जा सकती है। सन् 2050 तक दूध उत्पादन में डेढ़ करोड़ की गिरावट की अशंका जताई जा रही है। तापमान बढ़ने से हमारे देश के शीतोष्ण क्षेत्रों में उगने वाले फलों के क्षेत्र एवं उत्पादन के लिहाज से प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की आशंका जताई जा रही है। इसी भाँति सागरों एवं नदियों का औसत तापमान बढ़ने से मछली उत्पादन पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
भारत जैसे विशाल और आर्थिक विषमताओं वाले देश में दूर-दराज के दुर्गम इलाकों तक और समाज के सबसे कमजोर वर्ग तक अनाज की भौतिक और आर्थिक पहुंच सुनिश्चित कर पाना एक बहुत ही चुनौतीपूर्ण कार्य है। यह कार्य अनुकूल नीतियों, कारगर योजनाओं और प्रभावी क्रियान्वयन के बिना असंभव सा लगता है।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) 2013 अंतर्गत कानूनी रूप से लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत सब्सिडी वाले अनाज को भारत की 67% आबादी को पहुंचाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इसके अतिरिक्त सरकार राष्ट्रीय पोषण मिशन, काम के बदले अनाज कार्यक्रम, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन आदि का संचालन खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु कर रही है। इस अधिनियम के अन्तर्गत राशन कार्ड जारी करने का उद्देश्य 18 वर्ष या उससे अधिक आयु के घर की सबसे बड़ी महिला को घर की मुखिया होना अनिवार्य है।
खाद्य सुरक्षा मिशन-2007- भारत सरकार द्वारा उपरोक्त समस्याओं के समाधान हेतु क्षेत्र विस्तार एवं उत्पादकता में वृद्धि के माध्यम से चावल गेहूं, दालों, मोटे अनाजों एवं नगदी फसलों के उत्पादन में संधारणीय रूप से वृद्धि करना है, किन्तु इस दिशा में और अधिक इच्छाशक्ति दिखाने एवं कृषकों को सब्सिडी पर, प्रौद्योगिकी मुहैया करानी होगी।
• सरकार के द्वारा चलाये गये / जा रही अन्य योजनाएं
> 1960 के दशक में हरित क्रान्ति का सूत्रपात किया गया, किन्तु यह भारत के सभी क्षेत्रों तक नहीं पहुंच पाया।
> 1960 के दशक में ही सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) की शुभारम्भ किया गया। इसके तहत उचित कीमत पर अनाज सुलभ कराना था।
> 1997 में बीपीएल कार्ड जारी कर कम कीमत पर अन्न मुहैया कराया गया।
> सन 2000 में अन्त्योदय अन्न योजना प्रारम्भ की गई।
निष्कर्ष : उपर्युक्त अनेक चिन्ताओं के बावजूद खाद्य सुरक्षा के भविष्य को लेकर सरकार, योजनाकार और अन्य संबंधित संस्थाएं लगातार गहन-विचार-विमर्श करते हुए नई पहल कर रहे हैं। इसलिए आशा के साथ विश्वास भी किया जाना चाहिए कि भारत खाद्य सुरक्षा निरन्तर एवं सतत् बनी रहेगी।
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