बिरसा आंदोलन के स्वरूप की व्याख्या करते हुए जनजाति शासन पर इसके प्रभावों की चर्चा करें।

बिरसा आंदोलन के स्वरूप की व्याख्या करते हुए जनजाति शासन पर इसके प्रभावों की चर्चा करें।

 ( 42वीं BPSC/1999 )
अथवा
आंदोलन के स्वरूप का वर्णन करते हुए आंदोलन के बाद के प्रभाव की चर्चा करें ।
उत्तर- बिरसा मुंडा के नेतृत्व में मुंडा जनजाति ने एक तीव्र विद्रोह 1899-1900 में किया। अन्य जनजातीय विद्रोहों की तरह ही यह पूर्णतः हिंसक आंदोलन था । बिरसा के 1899 में क्रिसमस की पूर्व संध्या पर मुंडा जाति का शासन स्थापित करने के लिए विद्रोह का ऐलान किया एवं उसने ठेकेदारों, जागीरदारों, राजाओं, हाकिमों और ईसाइयों को कत्ल करने का भी आह्वान किया। उसने घोषणा की कि “दिकुओं (गैर आदिवासी) से अब हमारी लड़ाई होगी और उनके खून से जमीन इस तरह लाल होगी जैसे लाल झंडा । ” जमींदारों, अधिकारियों, व्यापारियों की हत्याएं की गईं उनके परिवार के बच्चों एवं महिलाओं को भी निशाना बनाया गया।
इस आंदोलन की एक और विशेषता थी कि बिरसा मुंडा ने आंदोलन की सफलता के लिए लोगों की धार्मिक भावनाओं का सहारा लिया था। उसने अपने आप को भगवान का दूत कहा एवं भगवान से प्राप्त गजब की शक्ति की चर्चा की। हजारों आदिवासी उसे देखने-सुनने आने लगे और उसके अनुयायी बन गए। उसके औषधिक योग्यताओं के कारण भी लोगों का उसके प्रति विश्वास एवं सम्मान बढ़ गया । बिरसा ने महाप्रलय एवं नवयुग की भविष्यवाणियां की। ईसाई धर्म अपना चुके आदिवासी अपने मूल धर्म में वापस लौटने लगे। धार्मिक नेतृत्व के कारण उनका विश्वास एवं साहस बढ़ा और वे अपूर्व साहस के साथ अंग्रेजों से लड़े। लेकिन सिर्फ आस्था एवं साहस से ऐसे दुश्मन से ज्यादा दिनों तक लड़ना संभव नहीं था विद्रोह कुचल दिया गया एवं फरवरी 1900 ई. में बिरसा गिरफ्तार कर लिया गया जहां जेल में ही उसकी मृत्यु हो गयी। इस आंदोलन का सकारात्मक प्रभाव यह रहा कि 1908 में ‘छोटानागपुर रैयतवाड़ी कानून’ पास हुआ जिससे जनजातियों को कुछ छूट एवं भूमि संबंधी अधिकार प्राप्त हुए । संयुक्त काश्तकारी व्यवस्था मान्य हो गई एवं बंधुआ मजदूरी प्रतिबंधित। यह ध्यान रखा गया कि जनजातियों का शोषण न हो। ये लोग भी काफी प्रबुद्ध एवं अपने अधिकारों को लेकर सचेत हो गए। जनजातीय क्षेत्रों में आज भी बिरसा एक वीर योद्धा, देशभक्त एवं भगवान के रूप में जाना जाता है जो आदिवासियों का प्रेरणास्रोत है।
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