व्यक्तित्व के सम्बन्ध में ऑलपोर्ट के दृष्टिकोण की व्याख्या कीजिये ।
व्यक्तित्व के सम्बन्ध में ऑलपोर्ट के दृष्टिकोण की व्याख्या कीजिये ।
उत्तर— ऑलपोर्ट का शीलगुण सिद्धान्त (Traits Theory of Allport) — जी. डब्ल्यू. ऑलपोर्ट एक श्रेष्ठ मनोवैज्ञानिक थे। इन्होंने अपने शीलगुण सिद्धान्त को निम्न भागों में बाँटा—
(1) सामान्य शीलगुण (Common Trait)— इन शीलगुणों से तात्पर्य ऐसे गुणों से होता है जो किसी समाज या संस्कृति के अधिकतर व्यक्तियों में पाए जाते हैं तथा किसी आधार पर उन व्यक्तियों की आपस में तुलना की जा सकती हो ।
(2) व्यक्तिगत शीलगुण (Personal Trait) — यह एक महत्त्वपूर्ण गुण है जिसे व्यक्तिगत प्रवृत्ति भी कहा जाता है। ये प्रवृत्तियाँ अधिक स्पष्ट होती हैं। इनमें भ्रांति नहीं होती है। यह कई व्यक्तियों में न होकर किसी एक व्यक्ति विशेष में पायी जाती हैं तथा इन प्रवृत्तियों के आधार पर व्यक्तियों की आपस में तुलना नहीं की जा सकती है। ये तीन प्रकार की होती हैं—
(i) आधारभूत प्रवृत्ति (Cardinal Disposition ) – इस प्रवृत्ति को छिपाया नहीं जा सकता। प्रत्येक व्यक्ति यह प्रवृत्ति नहीं होती है लेकिन जिनमें होती है वह उस प्रवृत्ति के कारण चर्चित होता है। जैसे- सत्य व अहिंसा महात्मा गाँधी की आधारभूत प्रवृत्ति का उदाहरण है।
(ii) केन्द्रीय प्रवृत्ति (Central Disposition)–केन्द्रीय प्रवृत्ति । सभी व्यक्तियों में पायी जाती है। यह केन्द्रीय प्रवृत्ति 5-10 के स्तर पर प्रत्येक व्यक्ति में पायी जाती है। यह वह गुण है जिसके कारण व्यक्ति अधिक सक्रिय रहता है।
(iii) गौण अथवा द्वितीयक प्रवृत्ति (Secondary Disposition)— गौण अथवा द्वितीयक प्रवृत्ति ऐसे गुणों
को कहा जाता है जो व्यक्ति के लिए कम महत्त्वपूर्ण, कम संगत, कम अर्थपूर्ण तथा कम स्पष्ट होते हैं, जैसे—खाने की आदत, केश- सज्जा, पहनावा। ऑलपोर्ट ने बताया कि, एक गुण एक व्यक्ति के लिए गौण व दूसरे के लिए केन्द्रीय हो सकता है। उदाहरणार्थ बहिर्मुखी के लिए सामाजिकता केन्द्रीय प्रवृत्ति वस्तु तथा अंतर्मुखी के लिए गौण हैं ।
ऑलपोर्ट ने अपने सिद्धान्त में यह सम्पूर्ण रूप से स्पष्ट किया कि किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व सम्बन्धी गुण ही उसके व्यक्तित्व की आधारभूत इकाई होते हैं। ये आधारभूत इकाइयाँ व्यक्ति की व्यावहारिक क्रियाओं में परिलक्षित होती हैं। व्यक्तित्व भेद को समझने एवं उसे शिक्षणअधिगम के क्षेत्र में प्रयोग में लाने का कार्य भी व्यक्तित्व विशेषकों एवं गुणों के ज्ञान एवं मापन द्वारा ही संभव हो पाया है। व्यक्तित्व गुण सम्बन्धी सिद्धान्तों के उपयोग द्वारा ही शिक्षक तथा शिक्षा विशेषक, व्यक्तित्व के गुण एवं अवगुणों को चिन्हित कर विद्यार्थी के समुचित और वांछित सर्वांगीण विकास करने में समर्थ होते हैं।
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