व्यावसायिक नैतिकता एवं इसके विकास से आप क्या समझते हैं ? अध्यापक शिक्षा में इसके महत्त्व को विस्तार से समझाइये ।

व्यावसायिक नैतिकता एवं इसके विकास से आप क्या समझते हैं ? अध्यापक शिक्षा में इसके महत्त्व को विस्तार से समझाइये । 

                               अथवा
अध्यापक व्यवसाय वृद्धि पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये |
                              अथवा
शिक्षण के व्यवसाय उन्नयन की आवश्यकता क्या है ?
उत्तर— वृत्तिक नैतिकता और उसका विकास–प्रत्येक वृत्ति की अपनी वृत्तिक नैतिकता होती है। वृत्तिक नैतिकता आचरण के नियमों का संकेत देती है जो कि उन व्यक्तियों द्वारा अपनाने चाहिये जो उस वृत्ति को अंगीकृत करते हैं । वृत्तिक नैतिकता विस्तृत नियमों के रूप में प्रकट होती है जिनका अनुसरण करना व्यक्तियों के कल्याण के लिये, सेवा प्रदान करने के लिये होता है। ये नियम उन मानव मूल्यों से निकले होते हैं जो कि शताब्दियों के गहन चिन्तन तथा वास्तविक जीवन की घटनाओं के आधार पर मानव जाति के लिये लाभप्रद पाये गये हैं।
शिक्षण की वृत्ति शिक्षक से आशा करती है कि वह अपने विचारों में आदर्शवादी होगा। उसमें वृत्तिक नैतिकता होगी और उसके व्यवहार का ऊँचा स्तर होगा। शिक्षक को अपना समस्त ज्ञान विद्यार्थियों को संक्रमित कर देना चाहिये। उसे लालची या बहुत महत्त्वाकांक्षी नहीं होना चाहिये । वृत्तिक नैतिकता उससे यह माँग करती है कि वह अपने ज्ञान के अनुपात में अपना वेतन या अनुदान नहीं माँगें । कोई भी उसकी विद्वता के बराबर उसे धन नहीं दे सकता है।
शिक्षक को अकादमी स्वतंत्रता होनी चाहिये । उसको संस्कृति के भावार्थ को स्पष्ट करने की स्वतंत्रता होनी चाहिये। की खोज में उस पर किसी शक्ति या सत्ता का अंकुश नहीं होना चाहिये। उसे अपने मत को बिना भय या रंजिश के प्रकट करना चाहिये। उसे विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करना चाहिये कि वे सत्य की खोज में बिना किसी रोक-टोक के लगे रहें।
शिक्षक का सुसंस्कृत वृत्तिक व्यक्तित्व होना चाहिये। उसके जीवन का ढंग उसके उत्तरदायित्व और प्रतिष्ठा के अनुरूप होना चाहिये ताकि वह विद्यार्थियों को प्रेरणा दे सके कि वह अपने जीवन में मानव मूल्यों को अपना लें।
शिक्षक को विनम्र होना चाहिये। एक ज्ञानी शिक्षक जानता है कि ज्ञान की कोई सीमा नहीं है। जो कुछ उसने सीखा है उससे कहीं अधिक ज्ञान बाकी है जिसके बारे में वह कुछ नहीं जानता। अतएव उसे आत्मपरीक्षण और आत्मनिर्धारण करना चाहिये ।
शिक्षक की भूमिका का वर्णन करते हुए भगवद्गीता कहती है, “एक सच्चा शिक्षक एक विद्यार्थी को सहायता देता है अपना निजी व्यक्तिगत दर्शन अथवा अपने में छुपा हुआ अदृश्य सूर्य को खोजने में।”
किरीट जोशी की रिपोर्ट के अनुसार, “किन्तु शिक्षक शब्द उनका संकेत नहीं देता जो विद्यार्थियों को प्रशिक्षण केवल अपने जीवनयापन के लिये देते हैं न ही जैसा कभी-कभी कहा जाता है मशीन के लिये गुलामों की तैयारी अथवा एक कार्यालय के लिये या एक अकेला धन कमाने वाले कौशल के लिये।” यह सत्य है कि यह शिक्षक जिसमें दूरदृष्टि है वह किसी भी विशिष्ट कौशल या व्यवसाय को एक उदार रूप दे सकता है। शब्द शिक्षक उनकी ओर संकेत देता है जो ऐसी शिक्षा देते हैं जो कि स्वतंत्र मानव के लिये उपयुक्त है। स्वतंत्र मानव वह है जो अपने जीवन को अच्छी प्रकार से चिन्तन किये हुए जीवन दर्शन के अनुरूप बनाने के लिये स्वतंत्र है। ऐसा मानव उन सब सामाजिक और दूसरे दबावों से मुक्त है जो मानव के ऊपर रुकावटें लगाते हैं या उसे बाध्य करते हैं ।
वर्तमान समय में शिक्षण वृत्तिक अपने ऊँचे आदर्शों और नैतिक मूल्यों से गिर गया है नौकरी पेशे के स्तर तक । यह भी एक व्यवसाय हो गया है अनेक ऐसे व्यवसायों की भाँति जैसे मिस्त्री, व्यापारी, मैकेनिक इत्यादि । अतएव अब इस बात की बहुत आवश्यकता है कि शिक्षक को उसकी वृत्तिक नैतिकता के बारे में शिक्षित किया जाये । इसमें तो कुछ गलत नहीं है कि वह भी एक अभाव रहित जीवन की कामना करता है किन्तु उसका आचरण और व्यवहार ऐसा आदर्शमय होना चाहिये कि जिसका अनुकरण दूसरे करें। उसकी वृत्ति उससे माँग करती है कि वह अपने कर्त्तव्य एवं उत्तरदायित्व बुद्धिमानी, मेहनत, ईमानदारी से तथा बिना शिकायत करे निभाये। यह समुदाय का उत्तरदायित्व है कि वह देखे कि उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति हो रही है, उसको पर्याप्त वेतन मिल रहा है, समाज में उसके कार्य और भूमिका के अनुरूप उसे प्रतिष्ठा और सम्मान मिल रहा है।
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