शिक्षकों के व्यावसायिक विकास हेतु साधनों का उल्लेख कीजिए ।
शिक्षकों के व्यावसायिक विकास हेतु साधनों का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर— शिक्षकों की व्यावसायिक उन्नति के साधन—शिक्षकों के वृत्तिक विकास के साधन को निम्नलिखित रूप से बाँट सकते हैं—
(1) आत्म निर्देशित कार्यकलाप
(2) सहभागिता पर आधारित
(1) आत्म निर्देशित कार्यकलाप पर आधारित–व्यावसायिक विकास में शिक्षक में स्वयं सजग तथा संकल्पित होना चाहिए। उसे संकल्प का क्रमबद्ध रूप में रूपान्तरण भी आवश्यक है, जो उसके व्यावसायिक विकास को उन्नत कर सकता है। शिक्षक अपनी वृत्यात्मक वृद्धि में निम्नलिखित तरीके अपना सकता है—
(1) निरन्तर अध्ययन एवं अधिगम – शिक्षक को अपने विषय क्षेत्र से सम्बन्धित किये तथ्यों और नवाचारों से अवगत रहना आवश्यक है, क्योंकि आज ज्ञान का क्षेत्र द्रुत गति से विस्तृत हो रहा है। शिक्षक के लिये अपने ज्ञान को जागृत रखना आवश्यक है। स्वयं को विषय में आधुनिक बनाये रखने के लिए इनमें साधन सम्बन्धित शोध-पत्रिकाएँ व पत्र हो सकते हैं। अतः शिक्षक को अपने शोध पत्रिकाओं का नियमित ग्राहक मानना होगा।
(2) आत्म-निरीक्षण व आत्म-आंकलन – शिक्षक को अपने कार्यों आधुनिक तथा शिक्षण तथा शिक्षण कुशलता का स्वयं आंकलन करते रहना चाहियें।
2. सामूहिक सहभागिता पर आधारित साधन–वृत्तिक विकास के ऐसे तरीके भी हैं जो सामूहिक सहभागिता पर आधारित हैं। इसके प्रमुख तरीके इस प्रकार हैं—
(1) अभिविन्यास पाठ्यक्रम – आज शिक्षा विभाग कार्यरत शिक्षकों के लिए विशिष्ट अभिविन्यास पाठ्यक्रमों (Orientation courses) का गठन करने लगे हैं। यह कार्यक्रम प्राथमिक शिक्षा के स्तर से उच्च शिक्षा के स्तर तक चलाया जा रहा है। अधिकाधिक शिक्षकों को ऐसे पाठ्यक्रमों में उत्साह से सहभागिता करनी चाहिए क्योंकि इनमें उभरती हुई शैक्षिक समस्याओं और नवोदित शिक्षण तकनीकियों से अवगत होने का अवसर मिलता है।
(2) पुनश्चर्या पाठ्यक्रम – इसी भाँति सम्बन्धी विभाग या विश्वविद्यालय शिक्षकों के लिए पुनश्चर्या पाठ्यक्रमों (Refresher courses) का भी गठन करते हैं। अधिकतर ऐसे पाठ्यक्रम विशिष्ट विषय केन्द्रित होते हैं और शिक्षक को उसके विषय क्षेत्र में आधुनिक ज्ञान और कौशल प्रदान करते हैं। शिक्षकों को इन अवसरों का लाभ उठाना चाहिये ।
(3) सामुदायिक सहभागिता – शिक्षक को अपने समुदाय के सामाजिक जीवन में सहभागिता भी करनी चाहिए। तभी शिक्षक समुदाय की समस्याओं से न केवल परिचित होगा, वरन् उन समस्याओं के समाधान हेतु प्रयासरत भी होगा। समाज शिक्षकों से अगुवाई करने की और राह दिखाने की अपेक्षा करता है अतः वो दिन गये जब शिक्षक अपने स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों की परिधियों तक ही सीमित रहकर जिन्दगी गुजार सकता था । सामुदायिक सहभागिता शिक्षकों की सामाजिक जागरूकता को विकसित करेगी और वे अधिक से अधिक योग्य शिक्षक होने के साथ-साथ सामाजिक प्रतिष्ठा के भी अधिकारी बनेंगे।
(4) विश्वसनीय मार्गदर्शक – शिक्षक अपने विश्वविद्यालय के ही किसी वरिष्ठ और प्रभावी शिक्षक को अपने आदर्श के रूप में चुन सकता है और अपनी शैक्षिक समस्याओं के समाधान के लिये मार्गदर्शन प्राप्त कर सकता है। सच्चे अनुभवी शिक्षकों को अपने युवा साथियों के वृत्तिक विकास में सहायता प्रदान करने में आनन्द ही प्राप्त होता है।
(5) वृत्तिक संघों की सक्रिय सदस्यता – शिक्षकों के वृत्तिक विकास में वृत्यात्मक संघों में सहभागिता बहुत सहायक होती है। ये संघ दो प्रकार के होते हैं एक तो, विषय-क्षेत्र का वृत्यात्मक संघ जैसे अखिल भारतीय प्रशिक्षक संघ अथवा शैक्षिक अनुसंधान संघ आदि। दूसरे, शिक्षकों के हितों की रक्षा और उनकी कार्यदशाओं के उन्नयन के लिये गठित संघ जैसे राजस्थान माध्यमिक शिक्षक संघ आदि ।
प्रत्येक शिक्षक को दोनों ही प्रकार के वृत्यात्मक संघों की सदस्यता ग्रहण कर लेनी चाहिए। ऐसे संघों के नियमित सम्मेलनों में सक्रिय सहभागिता उन्हें शैक्षिक जगत की हलचलों से परिचित रखती हैं। शिक्षक संघों को अपने सदस्यों के वृत्तिक विकास हेतु गोष्ठियों का आयोजन करते रहना चाहिये। उन्हें शिक्षण व्यवसाय के नियमन और उन्नयन के लिये प्रयासरत रहना चाहिये। उन्हें शिक्षकों के लिये एक आदर्श आचररण संहिता का भी निर्माण करना चाहिये और उसके प्रभावी क्रियान्वयन की जिम्मेदारी भी लेनी चाहिये ।
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