तनाव से आप क्या समझते हैं ? तनाव को कम करने की प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष विधियों का उल्लेख कीजिए ।

तनाव से आप क्या समझते हैं ? तनाव को कम करने की प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष विधियों का उल्लेख कीजिए ।

उत्तर— तनाव का अर्थ (Meaning of Stress)– प्रत्येक व्यक्ति की स्व-इच्छाएँ, आकांक्षाएँ, आवश्यकताएँ और रुचियाँ होती हैं और वह व्यक्ति इन सभी को पूरा करने के लिए प्रयासरत भी रहता है लेकिन यह कदापि आवश्यक नहीं है कि उसकी सभी आवश्यकताओं एवं इच्छाओं की पूर्ति हो ही जाये। अतः जब उसकी इच्छाओं एवं आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं होती है या इन्हें पूरा करने हेतु उसे विभिन्न प्रकार की विरोधी शक्तियों का सामना करना पड़ता है तो उसके अन्दर (मन में) एक प्रकार का संघर्ष या हलचल उत्पन्न हो जाती है। इसी हलचल या संघर्ष को हम तनाव की संज्ञा देते हैं।
क्रो एवं क्रो के अनुसार, ” तनाव या संघर्ष उस समय उत्पन्न होते हैं जब एक व्यक्ति को पर्यावरण की उन शक्तियों का सामना करना पड़ता है जो उसकी स्वयं की रुचियों और इच्छाओं के विपरीत कार्य करती हैं । “
अतः हम कह सकते हैं कि व्यक्ति में तनाव तब उत्पन्न होता है जब उसके सामने कोई समस्या आती है और वह व्यक्ति तब तक तनाव की स्थिति में रहता है जब तक वह उस समस्या को सुलझा नहीं लेता।
(I) तनाव कम करने की प्रत्यक्ष विधियाँ (Direct Methods of Stress Reduction) तनाव कम करने की प्रत्यक्ष विधियाँ निम्नलिखित हैं—
(1) बाधाओं को नष्ट या दूर करना (Destroying or Removing the Barriers)– व्यक्ति की आवश्यता पूर्ति में जो बाधाएँ (अवरोध) उसके मार्ग में उत्पन्न होती हैं, उन्हें वह पूर्ण रूप से समाप्त करने का प्रयास करता है। जब व्यक्ति अपने इस उद्देश्य में पूर्णतया सफलता प्राप्त कर लेता है तो उसका तनाव समाप्त हो जाता है। यदि व्यक्ति के दैनिक जीवन का भली-भाँति निरीक्षण किया जाए तो यह स्पष्ट दिखाई देता है कि इस विधि का प्रयोग वह बहुत अधिक करता है।
(2) कार्य विधि में परिवर्तन (Seeking Another Path)– जब व्यक्ति अपने उद्देश्यपूर्ति के मार्ग में आई हुई बाधा को नष्ट नहीं कर पाता है तो वह दूसरा मार्ग खोजकर समस्या को हल कर अपने उद्देश्य की पूर्ति कर लेता है और व्यक्ति तनाव मुक्त हो जाता है।
(3) अन्य लक्ष्यों का प्रतिस्थापन (Substitution of Another Goals)– व्यक्ति अपने उपाय और हर सम्भव प्रयास करने पर भी अपने मूल लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाता है तो वह उस लक्ष्य को त्यागकर दूसरा लक्ष्य निर्धारित करता है और उसे प्राप्त भी करता है । इसे ही लक्ष्य का प्रतिस्थापन कहते हैं। जैसे—यदि कोई लड़की गणित विषय में कम अंक लाती है अथवा अनुत्तीर्ण हो जाती है तो वह गणित विषय को छोड़कर अन्य विषय (गृह विज्ञान आदि) ले लेती है और उसमें अच्छे अंक प्राप्त करती है तो उसका तनाव कम हो जाता है तो इसे ही प्रतिस्थापन कहा जाता है।
(4) विश्लेषण तथा निर्णय (Analysis and Decision )– जब व्यक्ति के समक्ष दो या दो से अधिक लक्ष्य होते हैं तो उसके अन्तर्मन में तनाव उत्पन्न हो जाता है और वह यह निर्णय नहीं ले पाता कि वह किस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रयास करे तथा किसे छोड़ दे | ऐसी स्थिति उत्पन्न होने पर व्यक्ति सर्वप्रथम दोनों लक्ष्यों के प्रत्येक पहलू का भली-भाँति विश्लेषण करता है और जो उसे अधिक उचित लगता है उसी के पक्ष में निर्णय लेता है।
(5) अवधान प्राप्ति की युक्ति (Attention Getting Mechanism)– इस विधि का प्रयोग बालक जन्म से ही करने लगता है। जब कोई व्यक्ति स्वयं को उपेक्षित अनुभव करता है तब वह इस युक्ति का प्रयोग दूसरे व्यक्तियों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने हेतु करता है। इस युक्ति द्वारा वह चाहता है कि दूसरे उसकी ओर ध्यान दें। प्राय: जिन बालकों को अपने अभिभावकों से समुचित प्रेम और स्नेह नहीं प्राप्त होता है वे ही इस युक्ति का प्रयोग करते हैं। यह विधि व्यवहार सम्बन्धी समस्याओं या दोषों में दिखाई देती है जिससे सामाजिक समायोजन में कठिनाई होती है। अतः यह विधि दोषपूर्ण है।
(II) तनाव कम करने की अप्रत्यक्ष विधियाँ (Indirect Methods of Stress Reduction) तनाव कम करने की अप्रत्यक्ष विधियाँ निम्नलिखित हैं—
(1) शोधन (Purification)– इस विधि में व्यक्ति सर्वप्रथम अपनी समस्या के विषय में शोधन करता है तत्पश्चात् उसे हल करता है और अपने तनाव को कम करता है ।
(2) पृथक्कीकरण (Withdrawal)– इस विधि में व्यक्ति स्वयं को उस समस्या से पृथक कर लेता है जो उसमें तनाव की स्थिति को जन्म देने वाली होती है।
(3) प्रतिगमन (Regression)– प्रतिगमन (Regression) का अर्थ है – पूर्व व्यवहार को अपनाना। जब कोई व्यक्ति असफल होने पर शिशु के समान रोने लगता है तो इसे प्रतिगमन कहते हैं।
(4) निर्भरता (Dependence)– इस विधि में व्यक्ति अपनी समस्या को दूसरों के समक्ष प्रस्तुत करता है तथा उसी समस्या का समाधान भी कराता है अर्थात् वह अपनी समस्या का हल दूसरों पर छोड़ देता है तथा दूसरों के सुझावों व निर्देशों का पालन कर समस्या को हल करता है और अपना तनाव कम करता है।
(5) दमन (Repression)– जब किसी व्यक्ति के समक्ष इच्छाओं की पूर्ति करने के मार्ग में बाधा आने पर तनाव बढ़ता है तो ऐसी स्थिति में वह स्व-इच्छा का ही दमन कर लेता है और अपने तनाव को कम कर लेता है ।
(6) दिवा स्वप्न (Day Dreaming)– इस विधि में व्यक्ति जब अपनी समस्या को यथार्थ में हल नहीं कर पाता है तो उसे स्वप्न में हल करके अपने तनाव को कम करता है ।
(7) तादात्म्य स्थापित करना (Identification)– इस विधि में असफल व्यक्ति अपने से सम्बन्धित व्यक्ति की सफलता को अपनी सफलता समझकर अपने तनाव को कम करता है ।
(8) औचित्यस्थापन (Rationalisation)– इस विधि में व्यक्ति के अपने (स्व) व्यवहार के कारण कोई समस्या उत्पन्न होती है तो वह उसका औचित्य सिद्ध कर समस्या का समाधान करता है और तनाव को कम करता है।
(9) प्रक्षेपण (Projection)– इस विधि में व्यक्ति अपनी स्वयं की असफलता का कारण स्वयं को न मानकर दूसरों को इसका कारण मानता है और अपनी असफलता से उत्पन्न तनाव को कम करता है।
(10) क्षतिपूर्ति (Compensation)– इस विधि में व्यक्ति एक क्षेत्र में प्राप्त असफलता को किसी दूसरे क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर अपने तनाव को समाप्त करता है ।
इस प्रकार इन विधियों का प्रयोग कर व्यक्ति अत्यधिक सीमा तक अपने तनाव को कम कर सकता है।
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