शिक्षण प्रतिमान का अर्थ बताइये।

शिक्षण प्रतिमान का अर्थ बताइये।

                              अथवा
शिक्षण मॉडल का अर्थ तथा मूलभूत तत्त्वों को लिखिये ।
                             अथवा
शिक्षण प्रतिमानों के आधारभूत तत्त्व पर टिप्पणी लिखिये |
                             अथवा
शिक्षण प्रतिमान के तत्त्वों का उल्लेख कीजिये ।
                            अथवा
शिक्षण प्रतिमानों के आधारभूत तत्त्व कौनसे है ?
                           अथवा
शिक्षण प्रतिमान के तत्त्वों को स्पष्ट कीजिये ।
                            अथवा
अथवा शिक्षण प्रतिमान से आप क्या समझते हैं ? इसके प्रमुख घटकों का उल्लेख कीजिये ।
उत्तर— शिक्षण प्रतिमान के आधारभूत तत्त्व — शिक्षण प्रतिमान किन्हीं विशिष्ट उद्देश्यों की पूर्ति हेतु शिक्षण कार्य के क्रियान्वयन के लिए कुछ बहुमूल्य मार्गदर्शन तथा कार्य योजना प्रस्तुत करने का प्रयत्न करता है । यदि कोई शिक्षक किसी प्रतिमान का अपने शिक्षण में प्रयोग करना चाहता है तो यह आवश्यक हो जाता है कि वह उसके सैद्धान्तिक तथा व्यावहारात्मक पहलुओं से भली-भाँति अवगत हो । प्रतिमान के आधारभूत तत्त्व क्या हो सकते हैं, निम्न विवरण द्वारा इसकी उचित जानकारी मिल सकती है—
(1) केन्द्रबिन्दु– प्रतिमान का केन्द्र बिन्दु अपने नाम के अनुसार ही प्रतिमान में अपनी केन्द्रीय भूमिका निभाता है। अधिगमकर्त्ता एवं अधिगम वातावरण के सन्दर्भ में किस प्रकार के शिक्षण उद्देश्यों की पूर्ति प्रतिमान के प्रयोग से की जानी चाहिए। इस बात को स्पष्ट करना ही केन्द्र बिन्दु का लक्ष्य होता है।
(2) सामाजिक प्रणाली – शिक्षण प्रतिमान के इस तत्त्व से निम्नलिखित प्रकार विवरण प्राप्त होता है—
(a) विद्यार्थी एवं अध्यापक के मध्य किस प्रकार की क्रिया का संचालन होगा एवं सम्बन्ध किस प्रकार के रहेंगे।
(b) प्रतिमान के प्रयोग के समय किस प्रकार की व्यवस्था बनाई रखी जाएगी एवं किस प्रकार के छात्र व्यवहार को पुनर्बलित किया जायेगा ।
उपर्युक्त दोनों बातों के आधार पर प्रतिमानों में पर्याप्त भिन्नताएँ देखने को मिल सकती हैं। किसी परिस्थिति में शिक्षक ही सभी गतिविधियों का केन्द्र बिन्दु होता है, किसी में गतिविधियाँ शिक्षक एवं विद्यार्थियों के बीच बराबर रूप में बँटी होती हैं तो कुछ में कुछ विद्यार्थी या सारे विद्यार्थी ही केन्द्रीय भूमिका निभाते हैं।
(3) संरचना– संरचना प्रतिमान के उस मूल तत्त्व का प्रतिनिधित्व करती है जिससे प्रतिमान के प्रयोग सम्बन्धी प्रक्रिया का स्पष्टीकरण किया जाता है। प्रत्येक प्रतिमान में यह स्पष्ट करने का प्रयास किया जाता है कि प्रतिमान के उपयोग हेतु किन क्रमबद्ध अवस्थाओं अथवा सोपानों का अनुसरण किया जायेगा एवं इन अवस्थाओं में किस प्रकार की क्रियाएँ सम्पन्न होंगी।
(4) अवलम्ब प्रणाली– प्रतिमान के इस तत्त्व में इस बात का उल्लेख होता है कि एक अध्यापक को अपनी सामान्य क्षमताओं, कौशलों एवं सामान्य रूप से कक्षा-कक्ष में उपलब्ध सभी साधन एवं उनके अतिरिक्त किसी शिक्षण प्रतिमान विशेष का प्रयोग करने हेतु क्या करना चाहिए । इस प्रकार की विशेष सहायता कुछ विशेष शिक्षण सामग्री, जैसे—स्लाइड, फिल्म, स्व-अनुदेशन सामग्री, मॉडल, ग्राफिक्स, लचीली समय-सारणी, अध्यापकों से विशेष प्रकार की शिक्षण कुशलताओं एवं शिक्षक व्यवहार की अपेक्षा आदि के रूप में हो सकती है।
(5) प्रतिक्रिया प्रनियम– इसके माध्यम से शिक्षक को यह जानकारी प्राप्त होती है कि प्रतिमान का प्रयोग करते समय विद्यार्थियों के द्वारा की जाने वाली विभिन्न प्रक्रियाओं के प्रति किस तरह की अनुक्रियाएँ या प्रतिक्रियाएँ व्यक्त करनी हैं ।
(6) प्रतिमान का उपयोग– प्रतिमान का यह तत्त्व शिक्षण में कहाँ एवं किस रूप में प्रतिमान का प्रयोग किया जा सकता है, इस पर प्रकाश डालता है। कुछ प्रतिमान छोटे पाठों के शिक्षण हेतु अधिक उपयोगी सिद्ध होते हैं तो कुछ बड़े पाठों के लिए। अतः यह दोनों तरह के पाठों के शिक्षण में उपयोग में लाए जाते हैं ।
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