‘शेफालिका’ : विषय-वस्तु एवं काव्य-सौंदर्य

‘शेफालिका’ : विषय-वस्तु एवं काव्य-सौंदर्य

‘शेफालिका’ : विषय-वस्तु एवं काव्य-सौंदर्य
प्रकृति के अकूत सौंदर्य का उद्घाटन छायावादी कविता का मुख्य आकर्षण है। छायावादी कवियों ने पहली बार व्यापक रूप से अपनी कविताओं में प्रकृति का मानवीकरण किया है। निराला के काव्य में प्रकृति अपने अन्तर्मन की गांठे खोलती हैं और हृदय की समग्र अनुभूतियों की अभिव्यक्ति का माध्यम बनती है। मानवीकरण की दृष्टि से निराला काव्य की उत्कृष्ट रचना है – ‘शेफालिका’ जिसमें शेफालिका के माध्यम से कवि ने एक नवयौवना का अत्यंत उदात्त चित्र प्रस्तुत किया है। यहाँ प्रकृति के उपादानों के माध्यम से शृंगार का मनोरम चित्र प्रस्तुत हुआ है।
जूही की कली, संध्या सुंदरी और शेफालिका जैसी निराला की आरंभिक कविताएं प्रकृति के शृंगारी रूप की व्यंजना
करती है।
                                “बंद कंचुकी के सब खोल दिये प्यार से
                                 यौवर-उभार ने
                                 पल्लव-पर्यक सोती शेफालिके।”
सौंदर्य, शृंगार, कल्पना और अभिव्यक्ति की नवीनता के कारण ‘शेफालिका’ एक नये रूप में यहाँ उपस्थित होती है।
शेफालिका यहाँ एक मुग्धा नवर्यावना के रूप में चित्रित हुई है जिसको यौवनाकांक्षा उभार पर है। कवि अपनी रूमानी चेतना के साथ तटस्थ भाव से पल्लवों पर निद्रामग्न शेफालिका का सौंदर्य निहार रहा है जिसके लाल कपोलों पर शिशिर ऋतु में ओस कण झर रहे हैं। निराला ने शेफालिका के कपोलों में प्रेम के मूक आह्वान की व्याकुलता देखी है। शेफालिका की अंतरात्मा की प्रणयाकांक्षा निरंतर जागृत है। कवि ने शेफालिका को तारा से भरे नभ रूपी कक्ष में पल्लव पर अपनी अनंत आकांक्षाओं के साथ चित्रित कर यह दिखाने का प्रयास किया है कि उसके वक्ष पर संपूर्ण आकाश विचरण कर रहा है। यह आकाश उसकी निस्सीमता का प्रतीक है जो सुरभिमय समीर लोक की सीमाओं को पाटकर शोकाकुल नश्वर संसार की परिधि से बाहर जाना चाहता है जहाँ उसे उसका चिर आकांक्षित प्रणय प्राप्त हो सके मगर
शेफालिका की प्रयण आशा की अनंत प्यास बस रात भर में समाप्त हो जाती है। यह नश्वर संसार अपनी क्षुद्र सीमा में बांधकर उसे समाप्त कर देता है।
प्रस्तुत कविता में पल्लव की नोक पर सोती हुई शेफालिका के प्रेमपूर्ण आकांक्षा तथा उससे उत्पन्न बेचैनी और व्याकुलता को कवि ने अत्यंत सुंदर ढंग से व्यक्त किया है। शेफालिका की संपूर्ण आकांक्षा जैसे एक ही रात में अपनी अनंतता को पार कर जाती है और अतृप्ति लिये सुबह की खिली शेफाली का जीवन रात तक ही रह पाता है। सुबह में वह डाली से झरकर समाप्त हो जाती है।
महाकवि निराला की आलोच्य कविता में प्रकृति के मानवीकरण के माध्यम से प्रेम के उदात्त रूप का चित्रण हुआ है जिसे शेफालिका के उद्याम यौवन की प्रणयाकांक्षा का आवेग अपने तीव्रतम स्वरूप में भी अपनी मर्यादा की सीमाओं का अतिक्रमण नहीं करती उसे शोक, और दुख से भरे इस नश्वर संसार की क्षुद्र सीमा ही उसकी नियति है।
परिमाण में संकलित प्रस्तुत कविता की विशेषता है कि इसमें एक फूल के माध्यम से कवि ने शृंगार रस की अद्भुत उद्भावना की है। भावानुकूल तथा विषयानुकूल भाषा का प्रयोग आकर्षित करता है। यत्र-तत्र अनुप्रास और उपमा अलंकार का चमत्कारिक प्रयोग देखने को मिलता है।

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