सामाजिक विज्ञान विषय के शिक्षण में व्याख्यान विधि के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए |
सामाजिक विज्ञान विषय के शिक्षण में व्याख्यान विधि के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए |
उत्तर— सामाजिक विज्ञान विषय के शिक्षण में व्याख्यान विधि के महत्त्व को निम्नलिखित आधार पर स्पष्ट किया जा सकता —
(1) यह शिक्षक तथा विद्यार्थी के सम्पर्क को सुविधाजनक बनाता है–शिक्षण को प्रभावशाली बनाने के लिये शिक्षक विद्यार्थी में सम्पर्क स्थापित होना आवश्यक है। भाषण विधि इस सम्पर्क को सुविधाजनक बनाती है। वाणी में सम्पर्क स्थापन की अद्भुत शक्ति होती है। अध्यापक जब विद्यार्थियों के सामने बोलना आरम्भ करता है तो उसके वाणी के उतार-चढ़ाव से उसके शारीरिक संचालन से तथा उसकी प्रभावशाली भाषा से उससे तत्काल प्रभावित हो उठते हैं। इसी प्रभाव से उनमें अपने आप सम्पर्क स्थापित हो जाता है।
(2) यह विधि प्रतिभाशाली विद्यार्थियों के लिये अधिक उपयोगी है–भाषण विधि से जहाँ सामान्य विधियों को सामाजिकअध्ययन के कई प्रकरण स्पष्ट रूप से समझने में सहायता प्रदान करती है वहाँ प्रतिभाशाली विद्यार्थियों को ज्ञान-अभिवृद्धि के लिये प्रेरित करती है। अपने व्याख्यान को तैयार करने के लिये अध्यापक को बहुत सी पुस्तकें, पत्र-पत्रिकाएँ तथा अन्य साधनों से सहायता प्राप्त करनी होती है। जब अध्यापक व्याख्यान देता है तो वह उनका उल्लेख भी करता है । विद्यार्थियों को उन पुस्तकों को पढ़ने में रुचि जागृत हो जायेगी और ज्ञान अभिवृद्धि के लिए उनका मार्ग प्रशस्त हो जाता है । इसलिये प्रतिभाशाली विद्यार्थियों के लिये यह विधि अधिक उपयोगी सिद्ध होती है।
(3) विद्यार्थियों को प्रेरित करती है–विद्यार्थियों को सीखने के लिए प्रोत्साहित करने का एक अच्छा तरीका व्याख्या है क्योंकि अध्यापकों की रुचि, उत्साह से अधिक ज्ञान हण करने की इच्छा उत्पन्न होती है। नागरिक शास्त्र के बहुत से ऐसे प्रकरण हैं जो ऐतिहासिक घटनाओं, विभिन्न आन्दोलनों, महान पुरुषों की उपलब्धियों, भौगोलिक तथ्यों एवं परिवर्तन आदि का सरल एवं सुबोध शब्दों में वर्णन करने से विद्यार्थी अवश्य प्रेरित हो उठते हैं।
(4) इससे समय तथा शक्ति में बचत होती है–नागरिक शास्त्र की कई बातें स्पष्ट रूप से समझ नहीं आतीं। यदि विद्यार्थियों को उन्हें अपने आप समझने के लिए कहा जाये तो वह अन्य कई साधनों से उन्हें समझने का प्रयास करेंगे अथवा गाईड या कुंजियाँ देखेंगे जो बहुत हानिकारक सिद्ध होंगी। इससे विद्यार्थियों के समय तथा शक्ति की बचत होती है वे इधर-उधर भटकते नहीं तथा अध्यापक के व्याख्यान को सुनकर आसानी से विषय को समझ लेते हैं।
(5) इससे विद्यार्थियों में श्रवण-कौशल का विकास होता है– काम सीखने के लिये यह एक महत्त्वपूर्ण इन्द्रिय है यदि इसका शिक्षा में प्रयोग किया जाए तो यह अधिक महत्त्वपूर्ण है। अध्यापक के विचारों को सुनने में मदद करते हैं । श्रवण कौशल विकसित होने से बच्चों में मन की एकाग्रता बढ़ती है यदि भाषण सार गर्भित और रोचक हैं तो श्रोताओं की एकाग्रता बढ़ जाती है । तात्पर्य यह है कि भाषण विधि मन को एकाग्र रखने में अपेक्षाकृत अधिक सहायक होती है।
(6) यह स्पष्टीकरण का महत्त्वपूर्ण साधन है–यदि विद्यार्थी केवल पाठ्य पुस्तकों पर निर्भर करता है तो उस सामाजिक धारणाओं को समझने में कठिनाई पेश आती है। वह पुस्तकीय ज्ञान को केवल रट लेता है और कई भ्रामक धारणाएँ उसके मन में बैठ जाती हैं। यदि हम विद्यार्थी को विभिन्न धारणाओं को स्पष्टीकरण करना चाहते हैं तो व्याख्यान प्रणाली सर्वोच्च साधन है।
(7) यह अन्य विधियों के क्रियान्वयन में सहायक होती है– आजकल विद्यार्थियों में समस्या समाधान योजना पद्धति, इकाई पद्धति, दत्त कार्य पर अधिक जोर दिया जाता है।
यदि हम इन विधियों का सफल क्रियान्वयन करना चाहते हैं तो उसके लिए व्याख्यान विधि को आधार बनाना होगा। अध्यापक विद्यार्थियों को इन विधियों के माध्यम से लक्ष्य की प्राप्ति कैसे होगी किन-किन साधनों का प्रयोग किया जाएगा। कार्य कैसे संगठित किया जाएगा यह जानकारी अध्यापक के निर्देशन से दी जाती है।
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