तकनीकी एवं सामाजिक परिवर्तन के परिप्रेक्ष्य में नवाचारों की आवश्यकता को स्पष्ट कीजिए। नवाचारों के मार्ग में आने वाली बाधाओं को बताते हुए समझाइये कि किस प्रकार शिक्षा नवाचार लाने में सहायक है ?

तकनीकी एवं सामाजिक परिवर्तन के परिप्रेक्ष्य में नवाचारों की आवश्यकता को स्पष्ट कीजिए। नवाचारों के मार्ग में आने वाली बाधाओं को बताते हुए समझाइये कि किस प्रकार शिक्षा नवाचार लाने में सहायक है ? 

उत्तर— शैक्षिक तकनीकी एवं सामाजिक परिवर्तन हेतु नवाचार की आवश्यकता– हमें नवाचार की आवश्यकता शिक्षा के क्षेत्र में क्यों हैं ? यह प्रश्न सीधी तरह से प्रत्येक व्यक्ति के मस्तिष्क को एक बार तो झंझावात कर देता है। ज्यादातर स्कूलों में आज व्हाइट बोर्ड (WhiteBoard) कक्षाओं में उपलब्ध है। यह बिन्दु साधारणतया इस बात को इंगित करता है कि कक्षा में तकनीकी साधन उपलब्ध है इसके द्वारा शिक्षण कार्य व अधिगम में प्रगति हो रही है तथा इसके द्वारा किसी भी प्रत्यय को बहुत अधिक मेहनत किए बिना सुचारू रूप से प्रत्यय की तह (Heart) में जाया जा सकता है।
बिल गेट्स के अनुसार– “शिक्षा के क्षेत्र में, मैं दो चीजों का ध्यान रखता हूँ पहला बराबर तथा दूसरा कम्प्यूटर।”
तकनीकी के द्वारा शैक्षिक परिवर्तन वैयक्तिकरण द्वारा सम्भव है तथा ये नवाचार एक शिक्षक की इतनी सहायता कर सकते हैं कि शिक्षक एक साथ 30 छात्रों की कक्षा को वैयक्तिकरण द्वारा शिक्षित कर सकता है। यह कार्य आसान नहीं लेकिन तकनीकी द्वारा ऐसा सम्भव है। ऑनलाइन बहुत सारा डाटा उपलब्ध है, आवश्यकता है उस ज्ञान को बटोरने वाले की। शिक्षा के क्षेत्र में ऐसी कौनसी प्रभावशाली शिक्षण प्रविधि है जिसके द्वारा शिक्षण को सरल बनाया जा सके तथा एक साथ कई विद्यार्थी उसका लाभ कैसे उठा सकें। ये नवाचार के द्वारा जाना जा सकता है। इसकी आवश्यकता होने के निम्न कारण हैं—
(1) बहु-माध्यम उपागम– बहु- माध्यम उपागम एक ऐसा नवाचार है जिसमें विभिन्न माध्यमों में अनेक सॉफ्टवेयर्स (Software) के समूहों अथवा उनका एकत्रीकरण सम्मिलित होता है। यह एक ऐसा सामूहिक प्रस्तुतीकरण है जिसमें विषय वस्तु, ग्राफिक्स, चित्र, आवाज, संगीत प्रतिकृति तथा वीडियो इमेज आदि का प्रयोग कम्प्यूटर के द्वारा किया जाता है तथा इसके द्वारा पढ़ाए गए पाठों को रटने की आवश्यकता नहीं होती है क्योंकि इसके द्वारा पढ़ाए गए पाठ छात्रों को अधिक स्पष्ट तथा बोधगम्य होते हैं तथा छात्रों द्वारा प्राप्त ज्ञान को इसके द्वारा अधिक स्थायी बनाया जा सकता है ।
(2) भूमिका निर्वाह– यह एक ऐसी नवीन नवाचार तकनीक है जिसमें व्यक्ति को अपने दैनिक जीवन की भूमिका से हटकर किसी दूसरे व्यक्ति की भूमिका निभानी पड़ती है। इसमें व्यक्ति को अपनी जीवन शैली के व्यवहारों को छोड़कर अन्य व्यक्तियों की जीवन-शैली की नकल करनी पड़ती है। यह कक्षा में शिक्षक-शिक्षार्थी सम्बन्धों में निकटता लाने का साधन है। यह विधि छोटी कक्षाओं हेतु बहुत उपयोगी है। इसमें सम्प्रेषण एवं अधिगम को समग्र रूप में प्रस्तुत किया जाता है। इसके द्वारा मानव जीवन सम्बन्धी आर्थिक, नैतिक, सांस्कृतिक एवं सौन्दर्यात्मक तत्त्वों का ज्ञान छात्रों को होता है।
(3) नवाचार की आवश्यकता सामाजिक परिवर्तन में भी है। इसके द्वारा छात्र एवं शिक्षक के मध्य की दूरी दूर करना तथा उनमें व्यक्तित्व साहचर्य विकसित करना तथा इसके द्वारा छात्रों को उनको शैक्षिक प्रगति व उपलब्धि के आधार पर प्रतिपुष्टि (Feedback) देकर उनकी गलती सुधारने का अवसर मिलता है।
(4) शैक्षिक तकनीकी में नवाचार के रूप में आधुनिक युग में कम्प्यूटर का प्रयोग तीव्र गति से हो रहा है। इसके द्वारा दी जाने वाली शिक्षा में छात्र सीधे सक्रिय होते हैं व सारी शैक्षिक सामग्री कम्प्यूटर पद्धति से एकत्रित की जाती है। इसके द्वारा अन्तः क्रिया ट्यूटोरियल के माध्यम से छात्रों को सरलता से शिक्षा दी जाती है इसमें तीन महत्त्वपूर्ण बाते हैं–
(i) छात्रों को व्यक्तिगत परामर्श तथा निर्देशन ।
(ii) छात्रों को उनकी गति तथा समय के अनुसार स्वयं सीखने के अवसर ।
(iii) छात्रों के लिए विशिष्ट तथा वस्तुनिष्ठ पृष्ठ-पोषण ।
(5) सैटेलाइट अनुदेशन टेलीविजन एक्सपैरिमेण्ट (SITE) – यह शैक्षिक तकनीकी के क्षेत्र में उभरता हुआ नवाचार है। वास्तव में यह अन्तः वैज्ञानिक उपागम (Inter Disciplinary System) की एक अपूर्व परियोजना थी जिसका उद्देश्य राष्ट्रीय विकास तथा शिक्षा के क्षेत्र में दूरदर्शन का प्रयोग करना है। इसके अन्तर्गत तीन प्रकार के लोगों के लिए शैक्षिक कार्यक्रम तैयार किए गए—
(i) प्राथमिक तथा पूर्व स्तर के बालकों के लिए।
(ii) प्राथमिक स्कूलों के शिक्षक के लिए |
(iii) आम जनता के लिए ।
(6) शैक्षिक दृष्टि से वाद-विवाद की उपयोगिता भी कम नहीं है क्योंकि वाद-विवाद उभयपक्षीय मानसिक प्रक्रिया है। इसमें दो या दो से अधिक छात्र किसी सामान्य प्रकरण या घटना का समुचित हल निकालने का प्रयास करते हैं। शिक्षा शब्दकोश में वाद-विवाद को इस प्रकार स्पष्ट किया गया है।
‘वाद-विवाद अन्तर विद्यालय छात्र क्रिया अथवा कथान्तर्गत, तुलनात्मकता और सार्वजनिक भाषण (बातचीत) में औपचारिक प्रशिक्षण के रूप में मानकीकृत प्रक्रिया के अनुरूप श्रोता के समक्ष एक प्रश्न के उभय पक्षों पर तर्कों का औपचारिक प्रस्तुतीकरण है । “
नवाचार की बाधाएँ — आज हम एक तकनीकी रूप में विकसित हाईटैक संसार में रह रहे हैं । इलेक्ट्रॉनिक संचार माध्यम से सूचना की कम से कम समय में उपलब्धि के कारण संसार दिन-प्रतिदिन सिकुड़ता जा रहा है। संसार भर में शैक्षिक रुझान बदल रहे हैं। शैक्षिक कार्यक्रमों तथा गतिविधियों में प्रौद्योगिकी का प्रयोग महत्त्वपूर्ण सुधार कर दिखाने की क्षमता रखता है लेकिन देखा गया कि बहुत सारी औद्योगिक फर्म के पास अच्छे संसाधन होने के बावजूद भी वह फेल हो जाती है जबकि उनके पास अच्छे कार्यकर्त्ता, सृजनात्मकता से परिपूर्ण लोग तथा वास्तविकता के धरातल से सम्बन्ध रखने वाले लोग होते हैं लेकिन फिर भी वहाँ नवाचार पर आधारित भवन ( Building a Culture of Innovation) की कमी पाई गई अर्थात् इन नवीन नवाचारों का प्रयोग करने में बहुत सारी बाधाएँ पाई जाती हैं जो निम्न हैं—
(1) उचित संसाधनों की कमी– नए नवाचारों का क्रियान्वयन करने के लिए शिक्षा पर अधिक व्यय की आवश्यकता है जो कि पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं है। संविधान की धारा 45 के अन्तर्गत अनिवार्य तथा निःशुल्क प्रारम्भिक शिक्षा का लक्ष्य अभी भी अधूरा है। हजारों स्कूलों में साधारण शिक्षण अधिगम सामग्री का अभाव है। बच्चों के बैठने की उचित व्यवस्था नहीं है। फर्नीचर आदि की कमी है। उचित  संसाधनों का अभाव है। इन सब कारणों से आम स्कूलों में (गिने-चुने पब्लिक स्कूलों को छोड़कर) शिक्षण अधिगम में नवाचारों का उपयोग केवल ‘कागजी कार्यवाही’ ही रह गया है। कथनी तथा करनी में बहुत अन्तर है। अतः विद्यालयों की आधारभूत आवश्यकताओं को पूरा किए बिना सुधारों का बड़े पैमाने पर क्रियान्वयन करना सम्भव नहीं प्रतीत होता है।
(2) परिवर्तन का भय–हम असफल होने से डरते हैं। हमारे पुराने नवाचार सफल नहीं हुए साथ ही हमें बहुत-सी आर्थिक हानियों से भी दो-चार होना पड़ा जबकि नवाचार का दूसरा नाम परिवर्तन है । जब हम कुछ बड़ा करना चाहते हैं तो शुरुआत में हमें कुछ परेशानियों का सामना करना पड़ता है जब प्रत्येक व्यक्ति (विशेषकर किसी संस्थान के कार्यकर्त्ता) परिवर्तन के लिए तैयार हो जाते हैं तो व्यक्तिगत रूप से प्रत्येक व्यक्ति को अपनी आदतों तथा कार्यशैली में परिवर्तन लाना होगा।
(3) प्रक्रिया एवं संरचना का अभाव– नवाचार प्रक्रिया का असंगठित होना भी इसके मार्ग की बाधा है जिसके कारण सही तरीके से कोई इसके लक्ष्य (Goal) तक पहुँच नहीं पाता है जिसके कारण व्यक्ति के विचार रूक जाते हैं क्योंकि उन्हें कोई साधन नहीं मिलता न इसके लिए व्यक्ति को कोई समय मिलता है। इस तरह उपर्युक्त विवरण से निष्कर्ष निकलता है कि नवाचार के रास्ते में बहुत सारी बाधाएँ हैं जिन्हें पार कर व्यक्ति उन्नति की ओर अग्रसर हो सकता है। आवश्यक है प्रक्रिया का संगठित रूप व उसका उचित प्रकार से प्रयोग करना ।
(4) दूसरों की नकल करना– कोई भी संस्था बहुत अच्छे से काम कर रही है लेकिन उसी संस्थान में काम करने वाले बहुत से लोग आलसी हैं तथा दूसरे के काम की नकल करना पसन्द करते हैं। लोगों में जिज्ञासा की भी कमी पाई जाती है जिसके कारण वे नए तरीके से सोच नहीं पाते हैं।
(5) विचार, उद्देश्य, (व्यूहरचना ) के आदान-प्रदान की कमी– किसी भी नवाचार (Innovation) के अनुप्रयोग (Implements) को करने से पूर्व आवश्यक है कि उसके प्रयोग से होने वाले लाभ-हानि, सम्बन्धित विचार उससे जुड़े प्रत्येक व्यक्ति को ज्ञात हों तथा उसके प्रयोग से किन-किन लक्ष्यों की प्राप्ति होगी तथा उद्देश्यों को प्राप्त करने हेतु किस व्यूहरचना (Strategy) का वह प्रयोग करेंगे यह उससे जुड़े व्यक्तियों को आपस में पता होना चाहिए। ऐसा नहीं होने पर नवाचार का प्रयोग होने पर भी वह अपने उद्देश्यों को प्राप्त नहीं कर पाते हैं । इस प्रकार साझेदारी के अभाव में उद्देश्य प्राप्ति में यह एक बहुत बड़ी बाधा है ।
(6) कुशल नेतृत्व की कमी– किसी संस्थान या व्यक्तिगत रूप से भी बिना किसी कुशल नेतृत्व के कोई भी कार्य सफल नहीं होता है। ऐसा आवश्यक नहीं हैं कि नवाचार किसी नेता के विचारों में ही पाया जाता है। कई बार इस तरह का नवीन विचार एक साधारण से दिखने वाले कर्मचारी के दिमाग की उपज भी हो सकती है लेकिन जरूरत है उसे किसी नेतृत्व की जो उसे सही स्थान पर पहुँचा सके इसलिए आज अच्छे से अच्छे औद्योगिक संस्थान में CEO को रखने की परम्परा है जो किसी भी व्यक्ति के अन्दर के कौशल को पहचान सके तथा उसकी सृजनात्मकता की पहचान कर उसे उचित रूप प्रदान कर सके।
(7) मस्तिष्क उद्वेलन की कमी– मस्तिष्क उद्वेलन एक ऐसी विधि है जो ज्ञान प्राप्ति व चिन्तन के प्रति हलचल मचा देती है। इसका प्रमुख उद्देश्य कल्पना शक्ति व सृजनात्मकता का विकास करने से है। इसमें समस्या इस प्रकार प्रस्तुत की जाती है जिससे व्यक्ति स्वतन्त्र रूप से सोचता है, वाद-विवाद करता है । सोचते व वाद-विवाद करते हुए एक ऐसी स्थिति आ जाती है जब व्यक्ति समस्या को एकदम हल कर देते हैं लेकिन व्यक्तियों में इसकी कमी पाई जाती हैं जो नवाचार के रास्ते की बहुत बड़ी बाधा है ।
(8) भविष्य की चुनौती की अवहेलना कर भूत की सफलता पर ध्यान– नवाचार का अर्थ है नवीन विचार का उत्पन्न होना, नए तरीके से सोचना नई विधि-प्रविधि को अपनाना । सामान्यतः लोग नई तकनीकी को अपनाते समय उसके द्वारा हुई सफलता का ध्यान तो रखते हैं लेकिन नई चुनौतियों की अवहेलना करते हुए आगे बढ़ना चाहते हैं। नवाचार के रास्ते की यह सबसे बड़ी बाधा है। जबकि किसी भी संस्थान या कहीं भी हमें सामने आने वाली चुनौतियों को ध्यान में रखना होगा तथा नए रास्ते चुन कर या सृजनात्मकता को अपनाकर आगे बढ़ना होगा । नहीं तो यह सफलता की जगह असफलता के रास्ते पर ले जाएगी तथा अधूरा ज्ञान होने के कारण यही कहा जाएगा, “अधजल गगरी छलकत जाए”।
(9) असफलता के लिए दण्ड– कई बार लोग कुछ नया करने से घबराते हैं क्योंकि कई जगह असफल होने पर उन्हें दण्ड का भुगतान करना पड़ता है जबकि कुछ नया करने पर सफल व असफल दोनों की सम्भावना 50-50% होती है । यदि उसे असफल होने पर दण्ड मिलता है तो व्यक्ति कुछ भी नया करने से डरेगा तथा इससे औद्योगिक संस्थान को भी नुकसान होगा क्योंकि यदि सफल हुआ तो लाभ उसके साथ-साथ संस्थान को भी मिलता है। अतः इस प्रकार के दण्ड को बन्द करना चाहिए।
नवाचारों को लाने में शिक्षा की भूमिका – यदि इस प्रश्न का उत्तर खोजा जावे कि क्या शिक्षा नवाचार लाने का माध्यम है ? तो हमें सरलता से पता लगेगा कि एक मात्र शिक्षा ही नवाचारों को लाने की प्रक्रिया का प्रारम्भ है। पूर्व में उल्लेख किया है कि नवाचारों के साथ परिवर्तन, विकास, नवीनता एवं उन्नयन जैसे शब्दों को भी प्रयोग में लाया जाता है। नये को लागू कर स्थापित में परिवर्तन लाना ही नवाचार है। यहाँ ध्यान रखने की बात यह है कि यह ‘नया’ क्या हो ? क्या नया
केवल इसलिए के पुरातन को नकारना है, या ‘नया’ इसलिए कि ‘नया’ विकास का मार्ग प्रशस्त कर रहा है ।
समाज, राष्ट्र एवं विश्व की आवश्यकता है- नवाचार के संदर्भ में शिक्षा की भूमिका इसी पक्ष पर महत्त्वपूर्ण हो जाती है कि नवीन कितना हो ? क्या हो ? कैसा हो ? कैसे हो ? पुरातन में से क्या ग्रहण करना है? क्या छोड़ना है ? किस स्वरूप बदलकर ग्रहण करना है ?
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