सिम्पोजियम तकनीकी/विचारगोष्ठी तकनीकी क्या है ? इसकी प्रक्रिया स्पष्ट कीजिए ।
सिम्पोजियम तकनीकी/विचारगोष्ठी तकनीकी क्या है ? इसकी प्रक्रिया स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर— विचारगोष्ठी तकनीकी (Symposium)—शिक्षण में विचारगोष्ठी का नवीन प्रविधि के रूप में विशेष महत्त्व है। इसमें किसी भौगोलिक समस्या या प्रकरण का गहन अध्ययन किया जाता है। इसमें भाग लेने वाले प्रत्येक छात्र सदस्य से यह आशा की जाती है कि वह विचारगोष्ठी में विवेचनार्थ समस्या या प्रकरण पर अपने तर्कसंगत विचार प्रस्तुत करेगा। इसमें विचार लेख या प्रपत्र पढ़कर अथवा व्याख्यान द्वारा व्यक्त किये जाते हैं ।
थ्योडोर स्ट्रक के अनुसार, “मेरे विचार से विचारगोष्ठी या तो कथित अथवा लिखित समीक्षाओं का समूह है, जो विषम अथवा कमसे-कम विभिन्न दृष्टिकोणों का चित्रण होता है। “
विचारगोष्ठी तकनीकी की प्रक्रिया (Process of Symposium technology)—इसके अन्तर्गत किसी भौगोलिक समस्या या प्रकरण को गहन अध्ययन हेतु शिक्षक छात्रों के परामर्श से चुनता है । तत्पश्चात् निर्धारित प्रकरणः या समस्या पर व्याख्यान या प्रपत्र तैयार करने के लिए तीन या चार छात्र सदस्यों को निर्देश देता है अन्य छात्र सदस्यों को भी निर्धारित प्रकरण यह समस्या पर पूर्ण तैयारी करने को कहा जाता है। विचारगोष्ठी के आयोजन पर पूर्व निर्धारित छात्र सदस्य ही अपने लेख या प्रपत्र पढ़कर अथवा व्याख्यान देकर विचार प्रस्तुत करते हैं। प्रपत्र पठन अथवा व्याख्यान के अन्त में श्रोताओं को प्रश्न पूछने, अपनी शंकाओं का समाधान करने अथवा प्रकरण/समस्या के सम्बन्ध में अपने विचार प्रस्तुत करने का अवसर नहीं दिया जाता है । अध्यक्ष एक-एक करके सभी वक्ताओं के प्रपत्र पठन/व्याख्यान के अन्त में उसकी समीक्षा भी करता है। अन्त में अध्यक्ष प्रकरण या समस्या से सम्बन्धित अपनी समीक्षा प्रस्तुत करता है।
विचारगोष्ठी तकनीकी के गुण—इसके प्रमुख गुण निम्नलिखित हैं—
(i) यह किसी समस्यसा या प्रकरण के सम्बन्ध में पूर्ण जानकारी प्रदान करती है।
(ii) इसमें छात्र स्वेच्छा से किसी समस्या या प्रकरण का चुनाव करते हैं। इससे वे उसके अध्ययन में रुचि लेते हैं।
(iii) इससे छात्रों की मानसिक शक्ति का विकास होता है।
(iv) इससे छात्रों को स्वाध्याय हेतु प्रेरणा मिलती है।
(v) इससे छात्रों में लेखन एवं व्याख्यान देने की कला में दक्षता प्राप्त होती है।
विचारगोष्ठी तकनीकी की सीमायें—इस तकनीकी की निम्नलिखित सीमायें हैं—
(i) इसके लिए किसी भौगोलिक समस्या या प्रकरण की समुचित तैयारी हेतु छात्रों को आवश्यक एवं उपयोगी सन्दर्भ पुस्तकें प्राप्त नहीं हो पाती हैं ।
(ii) इसमें समय अधिक लगता है।
(iii) इसमें कम छात्रों को प्रतिनिधित्व मिलता है और अन्य छात्रों को विशेष लाभ नहीं होता है।
(iv) इसमें प्रश्न पूछने अथवा शंका समाधान अथवा अपने विचार प्रस्तुत करने का अवसर न दिए जाने से श्रोतागण अधिक सक्रियता से भाग नहीं लेते हैं वे केवल मूक श्रोता बने बैठे रहते हैं ।
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