समाज के निर्माण में शिक्षा की भूमिका को स्पष्ट कीजिए ।

समाज के निर्माण में शिक्षा की भूमिका को स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर— समाज के निर्माण में शिक्षा की भूमिका–समाज के निर्माण में शिक्षा महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। विद्यालय समाज के द्वारा स्थापित किये जाते हैं। समाज विद्यालयों की स्थापना इसलिए करता है जिससे कि विद्यालय के लिए उपयोगी नागरिक तैयार कर सके, विद्यालय बालकों का चारित्रिक एवं नैतिक विकास करके उन्हें सुसंस्कृत बनाता है जिससे वे भविष्य में एक अच्छे एवं सभ्य सामाजिक नागरिक बनते हैं। ।
विद्यालय समाज की संस्कृति को सुधारते हैं, समाज की कुरीतियों को दूर करते हैं, समाज के पथ-प्रदर्शक बनते हैं तथा समाज को एक नया उन्नत रूप प्रदान करते हैं ।
विद्यालय समाज को आर्थिक रूप से सम्पन्न बनाने के प्रमुख स्रोत हैं, क्योंकि विद्यालय ही वह स्थान है जहाँ बालक शिक्षा प्राप्त करके अच्छा उत्पादक, अच्छा व्यवसायी तथा अच्छा उपभोक्ता बन पाता है । विश्व में अनेक ऐसे समाज हैं जिन्होंने आर्थिक उन्नति केवल विद्यालय से प्राप्त शिक्षा के आधार पर ही की है। उदाहरण के लिए, जापान के विद्यालय अपने छात्रों को आर्थिक रूप से स्वावलम्बी बना देते हैं। वे राज्य से किसी भी प्रकार का आर्थिक अनुदान प्राप्त नहीं करते, वे केवल छात्रों की आर्थिक क्रियाओं से प्राप्त लाभांश से ही अपना व्यय चलाते हैं। भारत में महात्मा गाँधी ने भी कहा था कि विद्यालयों को आर्थिक रूप से स्वावलम्बी होना चाहिए। उन्हें राज्य सरकार से प्राप्त अनुदान पर आश्रित नहीं रहना चाहिये । इसी दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर महात्मा गाँधी तथा डॉ. जाकिर हुसैन ने बेसिक शिक्षा का विकास किया ।
माध्यमिक शिक्षा आयोग का भी मानना है कि विद्यालय ही वह स्थान है जो समाज के स्वरूप का निर्धारण करता है। तभी तो कहा गया है—” भारत के भाग्य का निर्माण भारत के विद्यालयों के प्रांगणों में हो रहा है। “
विद्यालय ही वे स्थान हैं जो बालकों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास करते हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास होने पर बालक सत्यअसत्य करने लगता है, पूर्वाग्रहों से हट जाता है, तथ्यों का विश्लेषण करके निर्णय लेता है, अन्धविश्वासों, आडम्बरों तथा कुरीतियों के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण का विकास करता है तथा सकारात्मक सोच का विकास करता है। उसमें धार्मिक सहिष्णुता, अस्थिरता, उदारवादिता, परस्पर सहयोग, सहानुभूति तथा पक्षपातहीनता की भावना का विकास होता है। इन भारतीय गुणों के विकास पर ही समाज की उन्नति निर्भर करती है।
विद्यालय बालक का समाजीकरण बड़ी श्रद्धा से कर सकते हैं। उनमें सामाजिक गुणों का विकास करने के लिए पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाएँ, खेलकूद, वाद-विवाद, पर्यटन जैसे कार्यक्रमों का आयोजन कर बालकों का समाजीकरण किया जा सकता है। वास्तव में, सामाजिक गुणों का विकास करना ही समाजीकरण है। समाजीकरण की प्रक्रिया के द्वारा बालक समाज में व्यवहार करना सीखता है, समाज के मूल्य एवं मान्यताओं को समझता है तथा उनके अनुरूप कार्य करता है और वह समाज को आवश्यकता पड़ने पर आवश्यक नेतृत्व प्रदान करता है। इस प्रकार हम पाते हैं कि समाज के निर्माण व उन्नति के क्षेत्र में विद्यालय की महान भूमिका होती है।
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *