हिन्दुत्व अवधारणा का परीक्षण कीजिए। क्या यह धर्मनिरपेक्षवाद का विरोधी है?

हिन्दुत्व अवधारणा का परीक्षण कीजिए। क्या यह धर्मनिरपेक्षवाद का विरोधी है?

उत्तर – हिन्दुत्व एक पंथ, एक पहचान और सिर्फ अवधारणा पर आधारित एक विचार है । हिन्दुत्व हिन्दू धर्म के राजनीतिक अनुयायियों की दृष्टि में भारत को सिर्फ हिन्दू राष्ट्र के रूप में देखने की एक नवीन अवधारणा है। हिन्दुवादियों के अनुसार हिन्दुत्व कोई उपासना पद्धति नहीं, बल्कि एक जीवन-शैली है। वीर सावरकर कहते हैं कि हिन्दुवाद एक वाद के तौर पर धर्मशास्त्र है, और हिन्दुत्व मात्र एक शब्द नहीं, बल्कि अपने में एक सम्पूर्ण इतिहास है। हिन्दू एक जाति है, जिसका सामुदायिक नाम ही हिन्दू राष्ट्र है। जबकि स्वामी विवेकानन्द के अनुसार हिन्दुत्व का मूलमंत्र है- ‘जियो और जीने दो’ तथा ‘बसुधैव कुटुम्बकम्’। उनके लिए हिन्दुत्व एक सागर है, जिसमें विविध मार्गों से बहने वाली हजारों नदियां आकर एकाकार हो जाती हैं ।
हिन्दुत्व आन्दोलन के प्रमुख विचार
> हिन्दुत्ववादी कहते हैं कि ‘हिन्दू’ शब्द के साथ जितनी भी भावनाएं और पद्धतियां, ऐतिहासिक तथ्य, सामाजिक आचार-विचार वैज्ञानिक व आध्यात्मिक अन्वेषण जुड़े हैं, वे सभी हिन्दुत्व में समाहित हैं।
>  हिन्दूवादियों के अनुसार, हिन्दुत्व किसी भी धर्म व उपासना पद्धति के खिलाफ नहीं है।
>  वे भारत में सुदृढ़ राष्ट्रवाद और नवजागरण लाना चाहते हैं। उसके लिए हिन्दू संस्कृति लाना जरूरी है। हिन्दुत्व का बढ़ना जरूरी है।
>  अगर समृद्ध हिन्दू संस्कृति का संरक्षण न किया गया तो विश्व से ये धरोहरें मिट जाएंगी। आज भोगवादी पश्चिमी संस्कृति से हिन्दू संस्कृति को बचाने की आवश्यकता है।
> हिन्दुत्व गाय पशु का संरक्षण करता है । वह ईसाई एवं इस्लामिक संस्कृति को इनके संरक्षण के खिलाफ मानता है।
> स्वामी विवेकानन्द के अनुसार, हिन्दुत्व कोई धर्म नहीं है। यह एक ऐसा सिद्धान्त है जो सभी धर्मों को समभाव से देखता है।
> अम्बेडकर के अनुसार, कोई भी देवता दलितों के कारण भ्रष्ट नहीं होता है, अछूतों के लिए अलग से मंदिर की कोई आवश्यकता नहीं है। हिन्दुत्व की परिभाषा जो सवर्णों के लिए है, वही दलितों के लिए भी है । दलित, हिन्दू धर्म का एक अभिन्न हिस्सा है। लेकिन छद्म हिन्दूवादी देश और दलित दोनों के लिए खतरा है।
हिन्दुत्व के बारे में अन्य धर्म / पन्थों के विचार
> मुसलमानों के अनुसार, हिन्दुत्व एक ऐसी कट्टर विचारधारा है, जिसके मूल में मुसलमानों का विरोधी होना ही उसकी पहचान है।
>  ईसाइयों के अनुसार हिन्दुत्व एक ऐसी विचारधारा है जो दूसरे पंथ के लोगों को हिन्दू धर्म में धर्मान्तरित करने का प्रयास करता है।
> हिन्दुत्व एक फांसीवादी विचार है जो यहूदियों के विचारों पर आधारित है और जर्मनी के नाजीवाद का समर्थन करता है।
संक्षेप में हिन्दुत्व सिर्फ एक राजनीतिक विचारधारा है जो भारत के आधुनिक लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के खिलाफ है। आधुनिक भारत भी पुरातन धर्मनिरपेक्ष भारत का ही सनातनीय रूप है और इस पर विवाद वही लोग कर सकते हैं जो भारत को एक लोकतांत्रिक देश के रूप में विकसित नहीं होने देना चाहते हैं। यह भी स्पष्ट होना चाहिए कि आज जो हिन्दुत्व की ताकतें बढ़ी हैं उसकी वजह हिन्दुस्तान में धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा को यहां वास्तविक अर्थ में लागू न करना है। धर्म और धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा भिन्न-भिन्न हैं, और उसे आपस में मिलाया नहीं जाना चाहिए । धर्मनिरपेक्षता का मतलब सिर्फ और सिर्फ धर्म का राज्य से पूर्ण अलगाव है। नैतिक आध्यात्मिक मूल्यों के लिए धर्मनिरपेक्ष राजनीति को धर्म पर निर्भर नहीं होना पड़ता है।
धर्मनिरपेक्ष राज्य अतीत के सभी सकारात्मक मूल्यों को समेटे रहते हैं और वह जनता की भौतिक, सांस्कृतिक, नैतिक, आध्यात्मिक जरूरतों को पूरा करता है। जनता की प्रगति और विकास के लिए यह जरूरी है कि धर्मनिरपेक्ष, लोकतान्त्रिक मूल्यों की दृढ़ता से रक्षा की जाए। जहां तक धर्म की बात है वह लोगों का व्यक्तिगत मामला है, उसमें राज्य द्वारा अनावश्यक हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए। लोगों को अपने विश्वास के हिसाब से धार्मिक व्यवहार करने की छूट होनी चाहिए। किसी भी पंथ या सम्प्रदाय को दूसरे पंथ या सम्प्रदाय पर अपने विश्वास नहीं थोपना चाहिए । हिन्दू धर्म में भी इसी प्रकार की चर्चा की गई है जो कि आधुनिक हिन्दुत्व की राजनीति में कहीं नहीं शामिल है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि हिन्दुत्व की अवधारणा धर्मनिरपेक्षवाद नहीं है ।
उच्चतम न्यायालय ने 1995 में अपने एक निर्णय में कहा था कि ‘हिन्दुत्व धर्म नहीं है, वो जीने का एक तरीका है।’ अर्थात् उच्चतम न्यायालय ने हिन्दुत्व के धर्मनिरपेक्षवाद की अवधारणा के पक्ष में मुहर लगाया है। लेकिन वर्तमान समय में हिन्दुत्व को लेकर जो नकारात्मक राजनीति और छवि बन रही है, जगह-जगह हिन्दुत्व के नाम पर लोगों की हत्या, गाय की रक्षा के नाम पर भीड़ तंत्र द्वारा इन्सानों की हत्या तथा राजनीतिक लाभ के लिए धार्मिक हिन्दू-अधार्मिक हिन्दू में विभाजन जैसे विघटनकारी विचारों में वृद्धि को देखते हुए उच्चतम न्यायालय ने हाल ही में कहा था कि ‘हिन्दुत्व’ शब्द पर एक बार पुनः पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।
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Sujeet Jha

Editor-in-Chief at Jaankari Rakho Web Portal

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