मिली-जुली राजनीति भारतीय संदर्भ का प्रमुख लक्षण हो गया है। परंतु यह व्यवस्था अभी एक स्थायी सरकार प्रदान करने में असफल रही है। अपनी राय लिखें।

मिली-जुली राजनीति भारतीय संदर्भ का प्रमुख लक्षण हो गया है। परंतु यह व्यवस्था अभी एक स्थायी सरकार प्रदान करने में असफल रही है। अपनी राय लिखें।

उत्तर – आजादी के बाद सर्वप्रथम केन्द्र में 1977 ई. में मिली-जुली सरकार बनी जो 1974 ई. के जे. पी. आंदोलन और उसके बाद 1975 ई. के आपातकाल तथा उसके पहले के कांग्रेस के तानाशाही रवैये के खिलाफ जनता के तीव्र प्रतिक्रिया का स्वाभाविक परिणाम थी। परंतु केन्द्र की यह पहली मिली-जुली सरकार ज्यादा समय तक टिक न सकी एवं पुनः कांग्रेस ने सत्ता प्राप्त की। इसके बाद गठबंधन राजनीति का एक दौर प्रारंभ हो गया जो भारतीय राजनीति का प्रमुख गुण हो गया।
लेकिन प्रारंभिक दौर में गठबंधन की राजनीति के अनेक नकारात्मक बिन्दुओं के कारण यह ज्यादा सफल न दिखी। परंतु धीरे-धीरे गठबंधन ज्यादा परिपक्व हो रहे हैं एवं चुनाव पूर्व ही अधिकतर पार्टियां एनडीए एवं यूपीए दो बड़े गठबंधनों में बंट जाती हैं एवं ये गठबंधन लगभग स्थायी रूप में परिवर्तित हो चुके हैं। इन बड़े गठबंधनों की अपनी नीति है तथा चुनाव बाद सरकार बनाने के बाद ये उन नीतियों एवं योजनाओं को लागू करते हैं। एनडीए ने गठबंधन सरकार बनाकर अपना कार्यकाल पूरा किया। उसके बाद यूपीए-1 ने भी गठबंधन सरकार का कार्यकाल पूरा किया। यूपीए-2 भी सुचारू रूप से चल रही है। बिहार में भी एनडीए की सरकार है जिसमें भाजपा – जद (यू) का गठबंधन है जो प्रथम कार्यकाल सफलतापूर्वक पूरा करने के बाद दूसरे कार्यकाल में हैं। अतः गठबंधन की राजनीति भारतीय राजनीति का एक आवश्यक अंग बन गया है क्योंकि, विविधतापूर्ण इस देश में अनेक छोटी क्षेत्रीय पार्टियों का उदय हो चुका है जो विभिन्न वर्गों या क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करती हैं |
यद्यपि भारत में कई साझा सरकारों ने अपने कार्यकाल पूरे किए हैं, फिर भी इन साझा सरकारों की अपनी सीमाएं हैं। सरकार का मुखिया ऐसे कठोर निर्णय नहीं ले सकता जो उसके सहयोगी दलों के हितों के अनुरूप न हो। ऐसा करने पर ये दल अपना समर्थन सरकार से वापस ले सकते हैं जिससे सरकार के गिरने की संभावना हो सकती है। इस स्थिति में इन छोटे दलों के द्वारा सरकार में रहकर व्यापाक भ्रष्टाचार को अंजाम दिया जाता है। नेतृत्वकर्ता दल द्वारा भ्रष्टाचार की खबर रहने पर भी मजबूरी में कार्रवाई नहीं की जाती। यूपीए-2 में ऐसे उदाहरण व्यापक पैमाने पर देखने को मिले हैं। इसकी सहयोगी पार्टी द्रमुक के कई नेता बड़े भ्रष्टाचार में लिप्त थे लेकिन प्रधानमंत्री तक को जानकारी होने के बावजूद वे आंखें बंद किए रहे और दबाव में आने के बाद उनके खिलाफ कार्यवाही हुई। यूपीए-1 में भी वामदलों के समर्थन वापसी से एकबारगी सरकार संकट में आ गई थी।
अतः गठबंधन की राजनीति को भारत में और अधिक परिपक्व होने की आवश्यकता है।
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *