‘आंसू’ का कला पक्ष

‘आंसू’ का कला पक्ष

 ‘आंसू’ का कला पक्ष
कला की दृष्टि से ‘आंसू’ एक श्रेष्ठ गीतिकाव्य है। इसमें एक और यदि भावनाओं की तीव्रता, आत्मपरकता, दार्शनिकता तथा उदात्त कल्पना वैभव है तो दूसरी ओर चारू उपमान योजना, विलक्षण प्रतीक विधान तथा उक्ति वैचित्र्य भी स्पष्ट है। छायावादी कलापक्ष का प्रौढ़ एवं परिष्कृत रूप ‘आंसू’ काव्य का वैशिष्ट्य है। प्रसाद ने अपने निबंध संग्रह ‘काव्य-कला तथा अन्य निबंध’ में छायावादी कविता के कलापक्ष पर गंभीरतापूर्वक विचार किया है, उसे देखने पर आप आंसू के कला-पक्ष को सरलता से समझ सकते हैं, “जब वेदना के आधार पर स्वानुभूतिमय अभिव्यक्ति होने लगी तब हिंदी में उसे छायावाद के नाम से अभिहित किया गया। रीतिकालीन प्रचलित परंपरा से जिसमें वाह्य-वर्ण की प्रधानता थी, इस ढंग से अभिव्यक्ति हुई। ये नवीन भाव आंतरिक स्पर्श से पुलकित थे। आभ्यंतर सूक्ष्म भावों की प्रेरणा वाह्य स्थूल आकार में भी कुछ विचित्रता उत्पन्न करती है। सूक्ष्म आभ्यंतर भावों के व्यवहार में प्रचलित पद योजना असफल रही है। उनके लिए नवीन शैली नया वाक्य विन्यास आवश्यक था।”
भाषा भावाभिव्यक्ति का सशक्त साधन है। भाषा द्वारा ही कवि अपने भावों को सहदयों तक संप्रेषित करता है। भाषा की सफलता इसी में है कि वह व्यर्थ के आडंबरों से रहित हो, भाव के अनुरूप तथा स्पष्ट हो। ‘आंसू’ की भाषा में कोमलता और लाक्षणिकता के दर्शन एक साथ होते हैं। लाक्षणिकता के कारण ‘आंसू’ की भाषा विशेष समृद्ध हुई है,
इस करुण कलित हृदय में
अब विकल रागिनी बजती
क्यों हा-हाकार स्वरों में
वंदना असीम गरजती?
प्रतीकात्मक भाषा ‘आंसू’ का वैशिष्ट्य है। कवि ने ‘आंसू’ के अधिकांश प्रतीकों का चयन प्रकृति जगत से किया है,
झंझा झकोर गर्जन था,
बिजली थी नीरद माला
पाकर इस शून्य हृदय को
सबने आ डेरा डाला।
.
यहाँ ‘झंझा झकोर गर्जन’ मानसिक क्षोभ एवं द्वंद्व का प्रतीक है, ‘नीरद माला’ विविध प्रकार की भावनाओं की प्रतीक है, ‘बिजली’
से रह-रहकर पीड़ा व्यजित होती है और ‘शून्य-हृदय’ अंतरिक्ष की व्यंजना करता है। छायावादी काव्य-भाषा की एक अनुपम विशेषता उसकी चित्रमयता है। ‘आंसू’ में ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जिन्हें पढ़ते ही पाठक के समक्ष एक चित्र-सा उभर आता है, वस्तुत: चित्रात्मक भाषा द्वारा ही काव्य में बिंब ग्राहिता का गुण आता है। इन पंक्तियों में भाषा की चित्रात्मकता की सहज छटा देखी जा सकती है –
सूखी सरिता की शैय्या
वसुधा की करुण कहानी
कूलों में लीन न देखी
क्या तुमने मेरी रानी।
विभिन्न अलंकारों के सुंदर उपयोग ने प्रसाद की भाषा को सजाया-संवारा है। उनकी काव्य भाषा में यत्र-तत्र अनुप्रास, उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक आदि अलंकारों का सुंदर उपयोग मिलता है। उपमा अलंकार का सुंदर प्रयोग यहाँ आप देख सकते हैं,
मादकता से आये तुम
संज्ञा से चले गए थे
हम व्याकुल पड़े बिलखते
थे, उतरे हुए नशे से।
प्रसाद ने ‘आंसू’ की रचना आनन्द छंद में की है, जिसका निर्णय कवि ने वर्ण्य-विषय तथा भावों का ध्यान रखकर ही किया है।
इस छंद की गति अत्यंत सुंदर है। यह प्रसाद जी का अत्यंत प्रिय छंद है। यह मात्रिक छंद है। इसमें चार पद और 28 मात्राएं होती है। कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि ‘आंसू’ भाव-पक्ष एवं कला-पक्ष दोनों दृष्टियों से एक सफल कृति है।

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