“इस निष्कर्ष का निवारण कठिन है कि 1857 का तथाकथित प्रथम राष्ट्रीय संग्राम न तो प्रथम है, न राष्ट्रीय और न स्वतंत्रता संग्राम ही । ” समीक्षा करें।
“इस निष्कर्ष का निवारण कठिन है कि 1857 का तथाकथित प्रथम राष्ट्रीय संग्राम न तो प्रथम है, न राष्ट्रीय और न स्वतंत्रता संग्राम ही । ” समीक्षा करें।
(41वीं BPSC/1997)
अथवा
1857 के ‘प्रथम राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम’ होने के पक्ष में तर्क दें एवं प्रश्न में प्रयुक्त वाक्य के आधार पर निष्कर्ष लिखें।
उत्तर– 1857 का विद्रोह अंग्रेजों के खिलाफ भारतीयों के आंदोलन विद्रोह का एक महत्वपूर्ण मोड़ था जिसके बाद काफी कुछ परिवर्तित हुआ। 1757 के बाद से क्षेत्रीय या जातीय स्तर पर विदेशी प्रभुत्व का विरोध होता रहा। जैसे- पूर्वी भारत एवं बंगाल में संन्यासियों, कोलों, संथालों एवं अहोमों का विद्रोह । पश्चिमी भारत में भीलों का विद्रोह, कच्छ का विद्रोह, बघेरों एवं रमोसियों का विद्रोह, दक्षिण भारत में विजयनगर के राजा एवं ट्रावनकोर के दीवान वेलु थम्पी का विद्रोह । मुसलमानों ने भी वहाबी आंदोलन के माध्यम से विद्रोह किया, तो छोटे-मोटे सैनिक विद्रोह भी होते रहे। लेकिन 1857 का विद्रोह इन विद्रोहों से अलग एवं व्यापक प्रभाव वाला था। इसलिए इसे अपने तरह का पहला आंदोलन कहा जा सकता है।
इस विद्रोह का स्वरूप काफी विस्तृत था, भौगोलिक दृष्टिकोण से भी एवं विद्रोहियों/नेताओं की संख्या के दृष्टिकोण से भी। इस विद्रोह ने ऐसे लोगों को एक साथ ला खड़ा किया जो कभी एक-दूसरे को जानते तक नहीं थे। समान दुश्मन ने उनमें राष्ट्रवाद का भाव पैदा किया और बहादुरशाह जफर को विद्रोहियों ने एक स्वर में अपना नेता मान लिया एवं उन्हें भारत का सम्राट घोषित किया।
राष्ट्रवाद की भावना समय के अनुसार अलग-अलग होती है एवं उस समय के परिप्रेक्ष्य में विद्रोहियों की ऐसी एकजुटता रूपी प्रदर्शन, राष्ट्रीय भावना को प्रदर्शित करता है। बेन्जामिन डिजरेली ने इसे राष्ट्रीय विद्रोह कहा है। अशोक मेहता ने भी अपनी पुस्तक The Great Rebellian में सिद्ध करने का प्रयास किया है कि 1857 के विद्रोह का स्वरूप राष्ट्रीय था।
1857 के विद्रोह में जिस प्रकार से अलग-अलग क्षेत्र के नेताओं/राजाओं/जमींदारों ने भाग लिया, उसका उद्देश्य अंग्रेजी शासन को उखाड़ना ही था। भले अंग्रेजों को यहां से भगाने में उनका स्वार्थ था लेकिन वे शासन अधिकार को खोना नहीं चाहते थे जिसे अंग्रेज हड़पे जा रहे थे। अतः यह विद्रोह अंग्रेजों से स्वतंत्रता के लिए उस समय के शासकों द्वारा लड़ा गया।
1857 के विद्रोह की शुरुआत सिपाहियों ने की लेकिन शीघ्र ही यह काफी बड़े क्षेत्र में नवाबों, जमींदारों, राजाओं एवं अन्य नेताओं द्वारा आगे बढ़ाया गया। अंग्रेजों ने इस विद्रोह को काफी कठिनाई से दबाया। लेकिन इस आंदोलन का काफी व्यापक प्रभाव वर्तमान एवं भविष्य में दिखा। भारत की सत्ता भी कंपनी के हाथों से निकलकर ‘क्राउन’ के हाथों चली गई एवं कई सुधार किए गए।
अतः प्रख्यात इतिहासकार R.C. Majumdar द्वारा कहा गया यह कथन कि “तथाकथित 1857 का राष्ट्रीय स्वतंत्रता का प्रथम संग्राम न तो यह प्रथम, न राष्ट्रीय और न ही स्वतंत्रता संग्राम था | पूर्णतः सत्य प्रतीत नहीं होता।
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
- Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
- Facebook पर फॉलो करे – Click Here
- Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
- Google News ज्वाइन करे – Click Here