भारत में भूमंडलीकरण ( ग्लोबलाइजेशन) के सकारात्मक तथा नकारात्मक प्रभावों की गंभीरतापूर्वक विवेचना कीजिए । विज्ञान तथा तकनीकी नकारात्मक प्रभावों को कैसे कम कर सकते हैं ? व्याख्या कीजिए |

भारत में भूमंडलीकरण ( ग्लोबलाइजेशन) के सकारात्मक तथा नकारात्मक प्रभावों की गंभीरतापूर्वक विवेचना कीजिए । विज्ञान तथा तकनीकी नकारात्मक प्रभावों को कैसे कम कर सकते हैं ? व्याख्या कीजिए |

अथवा
भूमण्डलीकरण के सकरात्मक एवं नकरात्मक पहलू को लिखें। उन वैज्ञानिक एवं तकनीकी पहलुओं की चर्चा कीजिए जिनसे भूमण्डलीकरण के प्रभाव को कम किया जा सके।
उत्तर – वैश्वीकरण का उद्देश्य अपनी राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को संसार की अर्थव्यवस्था के साथ जोड़ना है। यह स्वतंत्र एवं मुक्त अंतर्राष्ट्रीय व्यापार दर्शन पर आधारित है। वैश्वीकरण ने अब संसार के अनेक देशों को आपसी व्यापारिक समझौते कराने की प्रक्रिया से मुक्त कर दिया है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि तुलनात्मक मूल्य पर उच्चकोटि की वस्तुएं ही टिक सकती हैं। ये ऐसे दो कारक हैं जिनके लिए विकसित प्रौद्योगिकी तथा भारी मात्रा में पूंजी की आवश्यकता होती है, किन्तु भारत में दोनों की कमी है। इसके सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों ही प्रभाव पड़े हैं।
• सकारात्मक प्रभाव
1. एक जीवंत अर्थव्यवस्था – इस नीति के आने के बाद सभी आर्थिक गतिविधियों के स्तर में वृद्धि हुई है। इसके परिणामस्वरूप स्पष्ट रूप से GDP की संवृद्धि दर में वृद्धि दर्ज की गई है।
2. निजी विदेशी निवेश का प्रवाह – भूमण्डलीकरण को अपनाने के बाद निजी विदेशी निवेश को बढ़ने का अधिक अवसर मिला है। इसके फलस्वरूप देश में न केवल पूंजी प्रवाहित होती है, बल्कि प्रौद्योगिकी या टेक्नॉलॉजी भी प्रभावित होती है।
 3. उपभोक्ता की प्रमुखता – वैश्विक बाजारों से अनेकों वस्तुएं एवं सेवाएं उपभोक्ता को आसानी से उपलब्ध हैं। उत्पादन भी उपभोक्ता के चयन एवं पसंद के अनुरूप वस्तु उत्पादन को ढाल रहे हैं। इसका परिणाम यह हुआ कि उपभोक्ताओं के व्यय स्तर में वृद्धि हुई।
4. मुद्रास्फीति पर रोक- देश में वस्तुओं व सेवाओं के अधिक प्रवाह के फलस्वरूप कीमत वृद्धि की दर में रोक लगी है। कीमतों पर नियंत्रण मुद्रा की क्रय-शक्ति अथवा लोगों की वास्तविक आय को क्षीण नहीं करता है। हालांकि 2007-08 से वैश्विक मंदी के कारण यह दर बढ़ता – घटता रहा है।
5. राजकोषीय घाटे पर रोक – 1991 से पूर्व यह 8.5% था । वैश्वीकरण की नीतियों के फलस्वरूप सरकारी राजस्व में वृद्धि हुई है। इसके परिणामस्वरूप 12वीं पंचवर्षीय योजना में राजकोषीय घाटे को GDP के 3.2% के आस-पास बनाए रखा गया है। साथ ही राजस्व घाटे को शून्य स्तर पर लाने का प्रयास किया जा रहा है।
6. विदेशी विनिमय कोषों में वृद्धि – विदेशी कोषों की कमी के कारण भी सरकार को इसे मजबूरन अपनाना पड़ा। इस नीति के फलस्वरूप आज विदेशी विनिमय कोष एक सुखद अवस्था में है। वर्तमान में भारत में विदेशी मुद्रा का भण्डार लगभ 365 अरब डॉलर तक पहुंच गया है।
• नकारात्मक प्रभाव
1. उपभोक्तावाद का प्रसार- उपभोक्तावादी प्रवृत्ति के फैलाव के कारण भारतीय समाज पर ऋण का भार अधिकाधिक बढ़ गया है।
2. कृषि की अवनति – इस नीति के परिणामस्वरूप कृषि विकास गति में अवरोध उत्पन्न हो गया है, जो भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है।
3. विकास प्रक्रिया का शहरीकरण – इस नीति से शहरों के विकास में तीव्रता आयी है, जबकि गांव की स्थिति सामान्य ही रही है, इससे गांव और शहर की दूरी बढ़ने लगी है।
4. सांस्कृतिक ह्रास – इस नीति के कारण आर्थिक संपन्नता जीवन के अन्य सभी पैरामीटर पर हावी हो चुकी है। आज प्रत्येक व्यक्ति आर्थिक रूप से स्वतंत्र एवं धनी होना चाहता है । वह इस बात को भूलता जा रहा है कि परिवार/समाज के लिए भी कोई जिम्मेदारी या दायित्व है। फलतः भारतीय संस्कृति का ह्रास हो रहा है।
5. आर्थिक उपनिवेशवाद – इस नीति के कारण भारतीय बाजार शोषित हो रहे हैं। इस प्रक्रिया में घरेलू उत्पादक अपनी कमजोर प्रतियोगी शक्ति के कारण सीमान्त हो रहे हैं अर्थात् पीछे की ओर जा रहे हैं।
यद्यपि विज्ञान एवं तकनीकी के आगमन से आर्थिक संवृद्धि में उछाल आया है परन्तु इसके नकारात्मक पक्ष को भी छोड़ा नहीं जा सकता। विज्ञान एवं तकनीकी से इसके उस पक्ष को सुधारना मुश्किल है जो मानसिकता से है। उपभोक्तावादी मानसिकता से संस्कृति का ह्रास उन पहलुओं में है जिन्हें तकनीकी नहीं सुधार सकती। परन्तु ऐसे तनकीकों का आगमन भी संभव नहीं है, जिनसे संस्कृति का पश्चिमीकरण न हो । शिक्षा एवं जन-जागरूकता ही इस पक्ष के लिए कारगर कदम हो सकते हैं। फिर भी जरूरी है कि नकारात्मक पक्ष की अवहेलना किए बिना आर्थिक संवृद्धि दर भी बढ़े। इस पर विचार होने जरूरी हैं।
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