प्रायद्वीपीय भारत की संरचना तथा विकास ( Evolution ) की विवेचना कीजिए।

प्रायद्वीपीय भारत की संरचना तथा विकास ( Evolution ) की विवेचना कीजिए।

( 40वीं BPSC/1995)
उत्तर – गंगा के विशाल मैदान के दक्षिण से ले कर कन्याकुमारी तक त्रिभुजाकार आकृति में लगभग 16 लाख वर्ग किमी. क्षेत्र पर प्रायद्वीपीय पठारी भाग फैला है। यह देश का सर्वाधिक क्षेत्रफल वाला तथा प्राचीन भौतिक प्रदेश है। इस पर प्रवाहित होने वाली नदियों ने इसको कई छोटे-छोटे पठारों में विभक्त कर दिया है। उत्तर-पश्चिम दिल्ली कटक (अरावली का विस्तार), पूर्व में राजमहल की पहाड़ियां, पश्चिम में गिर की पहाड़ियां और दक्षिण में इलायची (कर्डेमम) की पहाड़ियां प्रायद्वीपीय पठार की सीमाएं निर्धारित करती हैं। उत्तर- -पूर्व में शिलांग तथा कार्बी-ऐगलोंग पठार भी इसी भू-भाग का विस्तार हैं। प्रायद्वीपीय भारत अनेक पठारों से मिलकर बना है, जैसे- हजारीबाग का पठार, पलामू का पठार, रांची का पठार, मालवा का पठार, कोयम्बटूर का पठार और कर्नाटक का पठार। यह भारत के प्राचीनतम और स्थिर भू-भागों में से एक है। सामान्य तौर पर प्रायद्वीप की ऊंचाई पश्चिम से पूर्व की ओर कम होती चली जाती है, जिसका प्रमाण यहां की नदियों के बहाव की दिशा से भी मिलता है। इस पठार के पश्चिमी और उत्तर-पश्चिमी भाग में मुख्य रूप से काली मिट्टी पाई जाती है।
प्रायद्वीपीय पठार के अनेक हिस्से भू-उत्थान व निमज्जन, भ्रंश तथा विभंग निर्माण प्रक्रिया के अनेक पुनरावृत्ति दौर से गुजरे हैं। अपनी पुनरावृत्ति भूकंपीय क्रियाओं की क्षेत्रीय विभिन्नता के कारण ही प्रायद्वीपीय पठार पर धरातलीय विविधताएं पाई जाती हैं। इस पठार के उत्तरी-पश्चिमी भाग में नदी खड्ड और महाखड्ड इसके धरातल को जटिल बनाते हैं। चंबल, भिन्ड और मुरैना खड्ड इसके उदाहरण हैं।
मुख्य उच्चावच लक्षणों के अनुसार प्रायद्वीपीय पठार को तीन भागों में बांटा गया है- (1) दक्कन का पठार, (2) मध्य उच्च भूभाग, (3) उत्तरी-पूर्वी पठार |
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