“इस समय उसकी आँखों के आगे न तो अँधेरा था और न ही उसे धरती और आकाश के बीच घुटन हुई।’ सप्रसंग व्याख्या करें।

“इस समय उसकी आँखों के आगे न तो अँधेरा था और न ही उसे धरती और आकाश के बीच घुटन हुई।’ सप्रसंग व्याख्या करें।

उत्तर – प्रस्तुत पंक्तियाँ सिद्धहस्त कथाकार सांवर दइया की लेखनी से स्यूत ‘धरती कब तक घूमेगी’ कहानी से उद्धत हैं।  बेटे और बहुओं के विषाक्त वातावरण में रहते सीता प्रायः अर्द्धविक्षुब्ध हो चुकी थी। उसे धरती और आकाश संकुचित दीख पड़ रहे थे क्योंकि मन का भाव ही मनुष्य बाह्य प्रकृति में देखता है। घर के घुटन ने उसे मानसिक अस्वस्थ बना दिया था। महीने-महीने पाली बदलकर तो उसने पाँच वर्षों की लम्बी अवधि काट दी पर 50 रु० प्रतिव्यक्ति प्रतिमाह देने की बात से वह तिलमिला उठी और कठोर निर्णय न लेते हुए अपने कुछ फटे-पुराने कपड़े लेकर उस घुटन भरे घर से तडके निकल पडी। इस समय मन शान्त और हृदय उद्वेग राहत था। उसकी आँखों के आगे। ग अभी न तो अँधेरा था और न धरती-आकाश के बीच घुटन । उसका मन जैसे शांत और निर्मल हो गया प्रकृति भी वैसी ही दीख रही थी।

हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *