ऊर्जा की बढ़ती हुई जरूरतों के परिप्रेक्ष्य में क्या भारत को अपने नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रमों का विस्तार जारी रखना चाहिए। नाभिकीय ऊर्जा से संबंधित तथ्य एवं भय की विवेचना कीजिए।
ऊर्जा की बढ़ती हुई जरूरतों के परिप्रेक्ष्य में क्या भारत को अपने नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रमों का विस्तार जारी रखना चाहिए। नाभिकीय ऊर्जा से संबंधित तथ्य एवं भय की विवेचना कीजिए।
अथवा
नाभिकीय ऊर्जा के बारे में अंतर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य से उदाहरण लेते हुए नकारात्मक व सकारात्मक भूमिका का वर्णन करें। भारत में इसके भविष्य पर चर्चा करें। नाभिकीय ऊर्जा के बारे में बताते हुए इससे उत्पन्न खतरों का वर्णन करें।
उत्तर – देश में बढ़ती आबादी के उपयोग एवं विकास को गति देने के लिए हमारी ऊर्जा की मांग दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। लेकिन उत्पादन की वृद्धि दर इसके सापेक्ष में स्थिर सी प्रतीत हो रही है। विद्युत ऊर्जा के इस संकट को अगर अभी दूर नहीं किया गया तो भविष्य संकटमय साबित होगा। दुर्भाग्यवश खनिज, तेल, पेट्रोलियम, गैस, उत्तम गुणवत्ता के कोयले जैसे प्राकृतिक संसाधन हमारे यहां बहुत सीमित हैं। ऊर्जा के बिना हम विकसित राष्ट्र का सपना नहीं देख सकते। भारत में ऊर्जा
संसाधनों के रूप में परम्परागत ऊर्जा, जैसे जलावन, उपले, कोयले, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस एवं बिजली का जाता है तथा गैर-परम्परागत साधनों में सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा, बायोगैस तथा परमाणु ऊर्जा का प्रयोग किया जाता है। अपनी वाणिज्यिक ऊर्जा की जरूरतों के लिए भारत कोयले पर सबसे ज्यादा निर्भर है, जो पर्यावरण के लिए काफी खतरनाक है। इसके बाद पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस का उपयोग किया जाता है परन्तु ये सभी भारत में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध नहीं हैं, इसलिए भारत को इसका आयात करना पड़ता है जोकि एक महंगा सौदा है।
गैर-परम्परागत ईंधनों में सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा तथा बायो-गैस ऊर्जा के क्षेत्र में धीरे-धीरे प्रौद्योगिकीय विकास होने के कारण अभी इसका भरपूर प्रयोग नहीं हो पाया है। इसलिए भारतीय विद्युत उत्पादन एवं आपूर्ति के क्षेत्र में नाभिकीय ऊर्जा एक निश्चित एवं निर्णायक भूमिका अदा कर सकती है। विकासशील देश होने के कारण भारत की सम्पूर्ण विद्युत आवश्यकताओं का एक बड़ा भाग गैर-पारम्परिक स्रोतों से पूरा किया जा रहा है, क्योंकि पारंपरिक स्रोतों से बढ़ती हुई आवश्यकताओं को पूरा नहीं किया जा सकता। वर्तमान में भारत की कुल स्थापित नाभिकीय ऊर्जा क्षमता लगभग 6780 मेगावाट है तथा भारत सरकार का लक्ष्य 2022 तक लगभग 4000 मेगावाट और नाभिकीय ऊर्जा की उत्पादन का लक्ष्य है। भारत में नाभिकीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी को शुरू करने का श्रेय डा० होमी जहांगीर भाभा को जाता है।
भारत में प्रति व्यक्ति विद्युत की खपत 400 किलोवाट घंटा प्रति वर्ष है जोकि विश्व की औसत खपत 2400 किलोवाट घंटा प्रति वर्ष से बहुत कम है। अतः आने वाले वर्षों में सकल राष्ट्रीय दर को बढ़ाकर उसे विश्व औसत के बराबर लाने के लिए हमें विद्युत के उत्पादन में बहुत वृद्धि करनी होगी।
भारत में कोयले के अनुमानित भण्डार 206 अरब टन हैं। ऊर्जा की बढ़ती मांग को देखते हुए यह पर्याप्त नहीं है। इसके अलावा भारतीय कोयले में सल्फर एवं राख की उच्च मात्रा होने के कारण इससे पर्यावरणीय समस्याएं उत्पन्न होती हैं। जल विद्युत उत्पादन क्षमता अनिश्चित मानसून पर निर्भर है। अपनी प्रकृति के कारण जहां अन्य गैर-परम्परागत स्रोत विद्युत विकेन्द्रित अनुप्रयोगों के लिए उपयुक्त हैं, वहीं नाभिकीय बिजलीघर बृहद केन्द्रीय उत्पादन के लिए उपयुक्त है।
वैश्विक स्तर पर प्रचलित रिएक्टरों की संख्या की दृष्टि से भारत का सातवां स्थान है। अमेरिका में सबसे ज्यादा तथा उसके बाद क्रमशः फ्रांस, जापान, रूस, चीन तथा कोरिया हैं। भारत में कुल 27 न्यूक्लियर रिएक्टर हैं जिनमें 6 निर्माणाधीन हैं। भारत के कुल बिजली उत्पादन में परमाणु ऊर्जा से प्राप्त बिजली का योगदान केवल 3.53% है।
परमाणु ऊर्जा से संबंधित तथ्य – परमाणु ऊर्जा वह ऊर्जा है जिसे नियंत्रित परमाणु अभिक्रिया से उत्पन्न किया जाता है। वर्तमान में वाणिज्यिक संयंत्र बिजली उत्पन्न करने के लिए परमाणु विखण्डन अभिक्रिया का प्रयोग करते हैं। नाभिकीय रिएक्टर से प्राप्त ऊष्मा पानी को गर्म करके भाप बनाने के काम आती है, जिसे फिर बिजली उत्पन्न करने में प्रयोग किया जाता है। आई.ए.ई.ए. ( इंटरनेशनल एजेंसी फॉर एटॉमिक एनर्जी) के अनुसार वर्तमान में दुनिया भर की बिजली उत्पादन का केवल 11% हिस्सा परमाणु संयंत्र पूरा कर रहे हैं ।
परमाणु ऊर्जा से संबंधित भय- परमाणु ऊर्जा कोयला एवं तेल से उत्पन्न कार्बन उत्सर्जन में कमी लाता है। इससे वैश्विक जलवायु परिवर्तन की स्थिति को फायदा होगा। जीवाश्म ईंधन की खपत को कम करके हम बीमारी और जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकते हैं। परन्तु दूसरी ओर इसके अनेक भयावह परिणाम भी सामने आये हैं। परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की सुरक्षा प्रणालियों के उच्च स्तर के परिणाम के बावजूद मानव को अप्रत्याशित दुर्घटनाओं का सामना करना पड़ा है। चेनोबिल परमाणु दुर्घटना (यूक्रेन, 1986) एवं फुफुशिमा परमाणु (जापान, 2011) दुर्घटना इसके जीते जागते उदाहरण हैं। इसकी भयावहता को देखते हुए विकसित देश, अब अन्य गैर-परम्परागत स्रोतों पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। इसी कारण भारत में भी कुडनकुलम परमाणु संयंत्र का भी भारी विरोध किया गया था। परमाणु कचरा खुद ही एक गंभीर खतरा है जिसका मानव स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। इसका सबसे बड़ा खतरा रेडियोधर्मिता तथा आतंकी संगठनों द्वारा इसका दुरुपयोग होने की सम्भावना भी है। अतः नाभिकीय परमाणु संयंत्र के बढ़ते हुए को देखते हुए हमें इसके विकल्प की तलाश करनी चाहिए ।
विद्युत उत्पादन के सन्दर्भ में किसी महत्वाकांक्षी लक्ष्य प्राप्त करने में हमारे परम्परागत स्रोत अपर्याप्त हैं। समाप्त होते कोयले के भण्डार, जल विद्युत की सीमित क्षमता के चलते नाभिकीय एवं गैर-परम्परागत स्रोतों के दोहन के द्वारा ही भविष्य में
राष्ट्र की विद्युत आवश्यकताएं पूरी की जा सकती हैं। गैर-परम्परागत स्रोतों में भारी क्षमता है। अतः हमें इनका दोहन करना चाहिए।
भारत की भौगोलिक संरचना ऐसी है जहां पूरे वर्ष सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा का इस्तेमाल किया जा सकता है। भारत में इसके दोहन के लिए पर्याप्त उपलब्धता है, जरूरत है बस उचित प्रौद्योगिकी का विकास एवं संसाधनों का उचित प्रयोग।
> हमारे देश में कुल बिजली उत्पादन में परमाणु ऊर्जा मात्र 3.53% है।
> वैश्विक स्तर पर प्रति व्यक्ति ऊर्जा उत्पादन तथा राष्ट्रीय स्तर पर प्रति व्यक्ति उत्पादन क्रमशः 2400 व 400 किलोवाट घंटा / वर्ष
> विभिन्न परम्परागत ऊर्जा उत्पादन संयंत्रों के दोष
> नाभिकीय ऊर्जा के तथ्य
> नाभिकीय ऊर्जा से हानि
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