नाभिकीय ऊर्जा क्या है? क्या नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र भारतीय ऊर्जा संकट की समस्या को सुलझा सकते हैं ?

नाभिकीय ऊर्जा क्या है? क्या नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र भारतीय ऊर्जा संकट की समस्या को सुलझा सकते हैं ? 

अथवा
प्रश्न के दूसरे भाग के लिए वर्तमान भारतीय ऊर्जा समस्या को उदाहरण सहित प्रस्तुत करें। इस समस्या समाधान के लिए ‘नाभिकीय ऊर्जा’ कहां तक सक्षम है- तथ्यों/ उदाहरणों सहित लिखें।
उत्तर – नाभिकीय अभिक्रिया के फलस्वरूप जब एक अस्थायी नाभिक एक अन्य स्थायी नाभिक में परिवर्तित होता है तो इसमें ऊर्जा की एक विशाल राशि उत्पन्न होती है जिसे नाभिकीय ऊर्जा कहते हैं। यह ऊर्जा पदार्थ की अत्यल्प मात्रा का ऊर्जा में परिवर्तित हो जाने के फलस्वरूप उत्पन्न होती है। इसका परिकलन आइन्सटीन के निम्नलिखित सूत्र की सहायता से किया जाता है
E=mc²
जहां E = ऊर्जा, m = पदार्थ की मात्रा और c प्रकाश का वेग है।
नाभिकीय ऊर्जा मुख्यतः दो प्रकार से उत्पन्न हो सकते हैं- (i) नाभिकीय संलयन (Nuclear Fusion), (ii) नाभिकीय विखंडन (Nuclear Fission)
इनमें नाभिकीय संलयन की क्रिया सूर्य की ऊर्जा का स्रोत है। हाइड्रोजन के नाभिक अति उच्च वेग से अति उच्च ताप पर आपस में टकराते हैं जिसके फलस्वरूप ऊर्जा की विपुल राशि प्राप्त होती है। नाभिकीय विखंडन की अभिक्रिया में एक भारी नाभिक विखंडित होकर दो हल्के नाभिकों में परिवर्तित हो जाता है जिससे ऊर्जा की एक विशाल ऊर्जा उत्पन्न होती है। वर्तमान में नियंत्रित विखंडन अभिक्रिया ही नाभिकीय ऊर्जा प्राप्ति का स्रोत है।
भारत में ऊर्जा की आवश्यकता निरंतर बढ़ रही है। इसका एक कारण बढ़ती जनसंख्या एवं शहरी जीवन स्तर है, तो दूसरी तरफ तीव्र औद्योगिक विकास । भारत की अर्थव्यवस्था तीव्रता से बढ़ रही है। इसे बनाए रखने के लिए ऊर्जा अत्यंत आवश्यक तत्व बन गया है । ऊर्जा की इन आवश्यकताओं की पूर्ति विभिन्न परंपरागत एवं गैर-परंपरागत स्रोतों से करते हैं, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण स्रोत कोयला तथा पेट्रोलियम है। कोयला का प्रयोग ऊर्जा उत्पादन के लिए कुछ उद्योगों में
प्रत्यक्षतः किया जाता है, जबकि कोयले से विद्युत उत्पादन काफी महत्वपूर्ण है। कोयला देश की व्यावसायिक ऊर्जा की खपत का लगभग 67% भाग की पूर्ति करता है। भारत में कुल विद्युत उत्पादन में कोयले का योगदान लगभग 70% है। भविष्य की ऊर्जा आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए कोयले की सीमित भंडार पर निर्भर रहना संभव नहीं है। जबकि ऊर्जा उत्पादन के अन्य प्रमुख स्रोत, यथा- पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस, सौर ऊर्जा आदि भी भारत की ऊर्जा आवश्यकता को पूरा करने में सक्षम नहीं हैं। भारत पेट्रोलियम आवश्यकता की पूर्ति हेतु मुख्यतः आयात पर निर्भर है। ऐसे में नाभिकीय ऊर्जा की वर्तमान स्थिति, साथ ही तृतीय चरण की थोरियम आधारित नाभिकीय ऊर्जा उत्पादन कार्यक्रम महत्वपूर्ण है, क्योंकि हमारे देश में थोरियम के विशाल भंडार उपलब्ध हैं। वर्तमान में कुल ऊर्जा उत्पादन का लगभग 2.4% परमाणु ऊर्जा से उत्पादित होता है। भविष्य में इसके उत्पादन प्रतिशत को बढ़ाने की योजना है। भारत अगले कुछ वर्षों में अलग-अलग देशों से 36 नए रिएक्टर आयात करने जा रहा है जिसके सहारे करीब 30 हजार मेगावाट (MW) क्षमता विस्तार किया जाना है। अत: यदि भारत सुरक्षापूर्ण नाभिकीय ऊर्जा उत्पादन की नीति का अनुसरण करे तो देश की ऊर्जा संकट की समस्या काफी हद तक सुलझ जाएगी।
> अभिक्रिया स्वरूप जब एक अस्थायी नाभिक एक स्थायी नाभिक में परिवर्तित होता है तो उत्पन्न ऊर्जा नाभिकीय ऊर्जा कहलाती है।
> नाभिकीय ऊर्जा दो प्रकार से उत्पन्न हो सकते हैं— नाभिकीय संलयन, नाभिकीय विखंडन
> वर्तमान में देश की ऊर्जा आपूर्ति का तीसरा सबसे बड़ा स्रोत नाभिकीय ऊर्जा है। (लगभग 2.4%)
> तृतीय चरण थोरियम आधारित होगा जिसका पर्याप्त भंडार भारत के पास है।
> परमाणु ऊर्जा कार्यक्रमों को तेजी से बढ़ाया जा रहा है। अतः नाभिकीय ऊर्जा देश के लिए एक अच्छा विकल्प है।
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