एन. आर. सी. विवाद से आप क्या समझते हैं? इस विवाद में निहित राजनीतिक मंशाओं को स्पष्ट कीजिए। इस मुद्दे के अन्तर्राष्ट्रीय प्रभावों की भी विवेचना कीजिए।
एन. आर. सी. विवाद से आप क्या समझते हैं? इस विवाद में निहित राजनीतिक मंशाओं को स्पष्ट कीजिए। इस मुद्दे के अन्तर्राष्ट्रीय प्रभावों की भी विवेचना कीजिए।
अथवा
एनआरसी विवाद का उल्लेख करते हुए इसमें निहित राजनीतिक मंशाओं को स्पष्ट करें। एनआरसी विवाद के अंतर्राष्ट्रीय प्रभावों का उल्लेख करें।
उत्तर- नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस (एनआरसी) के मुताबिक, जिस व्यक्ति का नाम नागरिकता रजिस्टर में नहीं होता है उसे अवैध नागरिक माना जाता है। इसे 1951 की जनगणना के बाद तैयार किया गया था। इसमें यहां के प्रत्येक गांव के हर घर में रहने वाले लोगों के नाम दर्ज किए गए हैं।
वर्ष 1947 में भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के बाद कुछ लोग असम से पूर्वी पाकिस्तान चले गये, लेकिन उनकी जमीन असम में थी और लोगों का दोनों ओर आना-जाना जारी था। इसके बाद 1951 में पहली बार असम में एन आर सी डाटा को अपडेट किया गया। इसके बाद भी भारत में घुसपैठ लगातार जारी रही। वर्ष 1971 में बांग्लादेश बनने के बाद असम में भारी संख्या में शरणार्थियों का पहुंचना जारी रहा और इससे राज्य की आबादी का स्वरूप बदलने लगा। 1980 के दशक में अखिल असम छात्र संघ (आसू) ने एक आन्दोलन शुरू किया। आसू के छह साल के संघर्ष के बाद वर्ष 1985 में असम समझौता स्वीकार किया गया। इस समझौते के मुताबिक, 24 मार्च, 1971 की आधी रात तक राज्य में प्रवेश करने वाले लोगों को भारतीय नागरिक माना गया। असम समझौते के बाद असमगण परिषद के नेताओं ने राजनीतिक दल का गठन किया, जिसने राज्य में दो बार सरकार भी बनाई। वहीं 2005 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 1951 एनआरसी को अपडेट करने का फैसला किया था। उन्होंने तय किया था कि असम में अवैध तरीके से दाखिल हो गये लोगों की पहचान की जाए। लेकिन इसके बाद यह विवाद बहुत बढ़ गया और मामला कोर्ट तक जा पहुंचा। इस मामले में उच्चतम न्यायालय के निर्देश के अनुसार उसकी देखरेख में 2015 से जनगणना का कार्य शुरू किया गया। हालांकि 2010 में पायलट प्रोजेक्ट के तहत राज्य के दो जिलों में अपडेट करने की प्रक्रिया शुरू हुई थी लेकिन कुछ समूहों के उग्र प्रदर्शन के बाद इसे रोक दिया गया था। जनवरी 2018 में असम के सिटिजन रजिस्टर में 2.9 करोड़ लोगों के नाम की सूची जारी किए गए थे जबकि 3.29 करोड़ लोगों ने आवेदन किया था। 30 जुलाई, 2018 को एनआरसी का अंतिम मसौदा प्रकाशित किया गया। इस अंतिम मसौदे में 40 लाख से ज्यादा लोगों के नाम शामिल नहीं किये गये। जिन भारतीयों के नाम इस अंतिम मसौदे में नहीं है, उन्हें अपनी नागरिकता सिद्ध करने के लिए एक मोहलत और दी गई है।
वर्तमान परिदृश्य में 40 लाख से ज्यादा लोग जो दस्तावेज प्रस्तुत करने में असमर्थ हैं और भारतीय नागरिक होने का दावा कर रहे हैं उसके समाधान के रूप में उनका डीएनए परीक्षण भी एक विकल्प हो सकता है। ताकि उन्हें अंतिम मौका मिल सके। वर्तमान एनआरसी मसौदे में काफी खामियां बताई जा रही हैं। मामला चाहे जो भी हो इसे पूरी तरह पारदर्शी बनाने के लिए सरकार को रजिस्टर का डाटा सार्वजनिक करना चाहिए। सरकार इस बात पर मौन है कि जिनका नाम एनआरसी में शामिल नहीं होगा उनका क्या होगा? वैसे भी भारत शुरू से ही प्रवासियों का स्वागत करता रहा है ऐसे में अब हमारे सामने एक चुनौती भी है कि उन्हें किसी भी तरीके से आश्रय दिया जाये। यहां पर ध्यान देने वाली बात यह है कि देश की सुरक्षा के साथ-साथ कैसे वर्षों पुरानी परम्परा को बचाया जाए।
एनआरसी विवाद में निहित राजनीतिक मंशाएं- एनआरसी विवाद में अनेक राजनीतिक मंशाओं का संकेत मिलता है। एक ओर जहां केन्द्र सरकार इसका मजबूती के साथ समर्थ कर रही है तथा गैर नागरिकों को बाहर भेजने के लिए दृढ़ दिखाई पड़ती है वहीं विपक्षी पार्टियों द्वारा एनआरसी को लेकर केन्द्र सरकार पर अनेक आरोप लगाये गये है।
> भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि असम समझौता 1985 में राजीव गांधी ने किया था। इसकी आत्मा में एनआरसी था। इन पर अमल करने की हिम्मत हमने दिखाई ।
> विपक्षी पार्टियों का कहना है कि असम में केवल हिन्दू प्रवासियों को ही शामिल किया गया है। खुफिया एजेंसियों के अनुसार यह माना जाता रहा है कि देश में दो करोड़ से ज्यादा अवैध बांग्लादेशी है जिनमें से 55 लाख बंगाल में तथा 15 लाख से ज्यादा असम में हैं। एनआरसी. मसौदे में इनकी संख्या 40 लाख से ज्यादा होना अचंभित करता है।
> नॉर्थ-ईस्ट के 7 राज्यों में लोकसभा की 25 सीटें हैं। 40 साल से यहां की राजनीति बांग्लादेश घुसपैठियों के इर्द-गिर्द ही घूमती रही है। इनमें असम सबसे अहम राज्य है। यहां 14 सीटें हैं। भाजपा के पास 7 हैं। बदरुद्दीन अजमल की एआईयूडीएफ के 3 सांसद हैं। इसे घुसपैठियों का समर्थक माना जाता है। बीजेपी ने किसी वक्त ठंडे पड़ चुके इस मामले को भावनात्मक मुद्दा बना दिया।
उल्लेखनीय है कि इस रजिस्टर में अनेक महत्वपूर्ण नेताओं एवं अधिकारियों के नाम दर्ज नहीं है अतः इस संदर्भ में यह मुद्दा और अधिक राजनीतिक स्वरूप धारण करता जा रहा है –
> पूर्व राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के भतीजे जियाउद्दीन अली अहमद का नाम इस सूची से गायब हैं।
> असम की एकमात्र महिला मुख्यमंत्री सैयदा तैमूर दिसंबर 1980 से जून 1981 तक राज्य की मुख्यमंत्री रहीं, इस सूची में उनका नाम नहीं है ।
> रिटायर्ड आर्मी ऑफिसर अजमल हक 1986 से 2016 तक तीस साल सेना में रहे। इस ड्राफ्ट में इनका, इनके बेटा-बेटी का नाम भी नहीं है ।
> विधायक व विधायकों के परिजन एआईयूडीएफ के विधायक अनंत कुमार मालो, बीजेपी विधायक दिलीप कुमार पाल की पत्नी अर्चना, उल्फा नेता परेश बरुआ की पत्नी व बेटे के नाम नहीं हैं।
> एनआरसी पीड़ितों से मिलने जा रहे तृणमूल के छह सांसद और दो विधायकों को एयरपोर्ट पर हिरासत में ले लिया गया। संसद में भी तृणमूल नेताओं ने इस मुद्दे पर जमकर हंगामा किया।
उल्लेखनीय है कि असम में अवैध रूप से रह रहे लोगों को पश्चिम बंगाल में बसाने की तैयारी शुरू हो गई। खासतौर से, राज्य की सीमा के साथ लगते जिलों के प्रशासनिक अधिकारियों को विशेष इंतजाम करने की हिदायत दी गई। असम में एनआरसी के पूर्ण मसौदे के प्रकाशन के बाद मेघालय ने प्रदेश में आने वाले लोगों की कड़ी जांच शुरू कर दी। अधिकारियों ने लोगों को सलाह दी है कि वह अपने साथ नागरिकता पहचान पत्र लेकर ही प्रदेश में प्रवेश करें।
उल्लेखनीय है कि 2013 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद एनआरसी सूची अपडेट करने के काम में तेजी आई। दरअसल 2009 में एक एनजीओ की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर सुनवाई शुरू की थी। 2013 में कोर्ट ने इस लिस्ट को अपडेट करने का आदेश दिया। 2014 के बाद राज्य के 3.29 करोड़ लोगों ने नागरिकता साबित करने के 6.5 करोड़ दस्तावेज भेजे। इनमें से 2,89,38,677 लोगों को नागरिकता के लिए योग्य पाया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि असम में फाइनल एनआरसी जारी होने तक किसी पर कार्रवाई न की जाए। बाहर हुए 40 लाख लोगों को निष्पक्ष सुनवाई का मौका मिलना
चाहिए। एनआरसी ड्राफ्ट को अंतिम रूप दिया जा रहा है। सरकार ने इस बात का भरोसा दिया है कि जो भारतीय हैं उनका नाम इसमें जुड़ जाएगा। इस बीच सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई और आरएफ नरीमन ने असम राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर समन्वयक प्रतीक हाजेला और पंजीयक शैलेश को एनआरसी ड्राफ्ट के अंतिम रूप देने के लिए अपनाई जा रही प्रक्रिया के बारे में मीडिया से बात करने पर फटकार लगाई है।
> एनआरसी विवाद के अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव
> संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी स्टेटलेसनेस को खत्म करना चाहती है, लेकिन दुनिया में करीब एक करोड़ लोग ऐसे हैं जिनका कोई देश नहीं। ऐसे में भारत के लिये एनआरसी विवाद की स्थिति असहज करने वाली होगी।
> एनआरसी की सूची जारी होने के बाद लोग स्टेटलेस हो गए हैं, अर्थात् वे किसी भी देश के नागरिक नहीं रहे। ऐसी स्थिति में असम में हिंसा का खतरा बना हुआ है।
> एनआरसी विवाद के कारण बांग्लादेश के साथ हमारे संबंधों पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ने की आशंका है। क्षेत्रीय शांति एवं सुरक्षा के संदर्भ में बांग्लादेश के साथ सौहार्द्रपूर्ण संबंध आवश्यक है। परन्तु गैर नागरिकों को संभावित रूप से बांग्लादेश भेजने के प्रावधान से इन संबंधों को झटका लग सकता है।
> गैर नागरिकों के संदर्भ में मानवाधिकार हनन का आरोप भी भारत सरकार पर लग सकता है, जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि को नुकसान पहुंचाएगा।
> बच्चे और महिलाएं विस्थापन के समय सर्वाधिक संवेदनशील समूह होते हैं ऐसे में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मानव तस्करी एवं शोषण की घटनाओं को बढ़ावा मिल सकता है जो भारत की छवि को और अधिक हानि पहुंचा सकता है।
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