कोर पाठ्यक्रम क्या है ? इसके गुण-दोषों का उल्लेख कीजिए ।
कोर पाठ्यक्रम क्या है ? इसके गुण-दोषों का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर— कोर पाठ्यक्रम—विषय केन्द्रित तथा बाल केन्द्रित पाठ्यक्रमों के अपने-अपने दोष तथा कमियाँ हैं। इन कमियों के कारण इन दोनों ही प्रकार के पाठ्यक्रमों के विरुद्ध प्रतिक्रिया के फलस्वरूप कोर पाठ्यक्रम का विकास किया गया । आधुनिक युग की सामाजिक अव्यवस्था के लिए अमेरिका में विषय- केन्द्रित तथा बाल-केन्द्रित पाठ्यक्रमों को महत्त्वपूर्ण माना जा रहा था। अतः कोर-पाठ्यक्रम का विकास अमेरिकन स्कूलों में किया गया। कोर पाठ्यक्रम इस बात पर बल देता है कि विद्यालय और अधिक सामाजिक दायित्वों को ग्रहण करें तथा सामाजिक रूप से कुशल नागरिकों का निर्माण करें। कोर- पाठ्यक्रम की विचारधारा अब केवल अमेरिका तक ही सीमित न रहकर विश्व के अनेक राष्ट्रों ने इसे स्वीकार कर लिया है।
जेम्स ली कोर पाठ्यक्रम की परिभाषा देते हुए लिखते हैं, “कोर पाठ्यक्रम वह है जो व्यक्तिगत तथा शाश्वत दोनों ही प्रकार के हितों से संबंधित अन्तःक्षेत्रीय समस्याओं में केन्द्रित होता है। इसमें विषय-वस्तु को विचारधीन समस्या के समाधान के लिए आवश्यक होने के नाते सीखने के लिए स्थान प्रदान किया जाता है। “
अलबर्टी ने कोर पाठ्यक्रम को परिभाषित करते हुए लिखा है, “कोर पाठ्यक्रम उस समग्र- पाठ्यक्रम का एक अंग माना जा सकता है जो सभी छात्रों के लिए आधारभूत है तथा जिसमें सीखने की उन क्रियाओं का समावेश रहता है, जिनका संगठन परम्परागत विषयों से पृथक् रखकर किया जाता है।”
डॉ. माथुर के शब्दों में “कोर पाठ्यक्रम से हमारा तात्पर्य ऐसे पाठ्यक्रम से है जिसमें कुछ विषय सभी छात्रों के लिए अनिवार्य हों तथा जिसमें कुछ विषयों की ऐसी सूची हो जिसमें से छात्र कुछ भी अपनी रुचियों के अनुसार चुन सकें।”
उक्त धारणा के अनुसार कोर पाठ्यक्रम में कुछ ऐसे विषय रखे जाते हैं जिनका अध्ययन करना सभी छात्रों के लिए अनिवार्य होता है। ये विषय ऐसे होते हैं जो छात्रों में सामाजिक तथा व्यक्तिगत क्षमताओं का एक सीमा तक विकास कर सके। सामाजिक तथा व्यक्तिगत जीवन की सफलता के लिए इन विषयों का एक निश्चित तथा न्यूनतम स्तर तथा ज्ञान आवश्यक समझा जाता है। इस प्रकार के विषयों में सामान्यतः भाषा, गणित, कला-कौशल बागवानी, सामान्य विज्ञान, सामाजिक विज्ञान जैसे विषय रखे जाते हैं । इनके अलावा एक सूची ऐसे विषयों की भी बनाई जाती है जिनमें से छात्र अपनी रुचि तथा क्षमता के अनुसार अध्ययन के लिए विषय-वस्तु चुनते हैं । इस प्रकार के विषयों में हम इतिहास, भूगोल, अर्थशास्त्र संगीत, गृह – विज्ञान, भौतिक, रसायन विज्ञान, जीवविज्ञान, शरीर रचना, यांत्रिकी ज्यामिति, वाणिज्य, व्यापार पद्धति, लेखा कर्म, टाइपिंग, कृषि विज्ञान ड्राइंग तथा पेंटिंग आदि जैसे विषय रखते हैं। कभी-कभी सुविधा के लिए इन वैकल्पिक विषयों को हम विभिन्न वर्गों, जैसे कला, विज्ञान, वाणिज्य, ललित कला, कृषि आदि में भी विभक्त कर देते हैं।
कोर पाठ्यक्रम की विशेषताएँ—कोर पाठ्यक्रम में हम निम्नांकित विशेषताएँ पाते हैं—
(1) इसमें कुछ विषयों का अनिवार्य रूप से प्रत्येक छात्र को अध्ययन करना पड़ता है। ये अनिवार्य विषय कहलाते हैं ।
(2) कुछ विषय वैकल्पिक होते हैं। छात्र इनका चयन अपनी रुचि तथा क्षमताओं के अनुसार करते हैं ।
(3) इसमें विषयों का यथासम्भव समन्वय किया जाता है। चेष्टा की जाती है कि जहाँ तक संभव हो विषय पृथक् पृथक् न पढ़ाये जायें। यही कारण है कि इसमें हम सामान्य विज्ञान तथा सामाजिक विज्ञान जैसे समन्वित विषय पाते हैं।
(4) अनिवार्यता के साथ-साथ स्वतंत्रता भी होती है। कुछ विषयों का चयन करने के लिए बालक पूर्णतः स्वतंत्र होता है।
(5) वैयक्तिक विभिन्नताओं का ध्यान रखा जाता है इससे यह बाल-केन्द्रित बन जाता है।
(6) इसमें व्यापकता तथा विविधता होती है। वैकल्पिक विषयों की बहुत बड़ी सूची होती है जो इसकी व्यापकता एवं विविधता दर्शाती है।
(7) व्यक्तिगत तथा सामाजिक दक्षता पर बल देता है।
(8) सफल व्यक्तिगत तथा सामाजिक जीवन के लिए जितना ज्ञान होना आवश्यक होता है उतना ज्ञान यह अनिवार्य विषयों के माध्यम से देने का प्रयास करता है।
कोर पाठ्यक्रम के दोष—कोर पाठ्यक्रम के दोष निम्नलिखित प्रकार हैं—
(1) अधिक विषय होने से शिक्षक का कार्यभार बढ़ जाता है।
(2) अधिक विषय होने के कारण पाठ्यक्रम के कार्यान्वयन की समस्या उठ खड़ी होती है।
(3) यह पाठ्यक्रम प्राथमिक तथा माध्यमिक स्तर तक ही उपयुक्त है। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में यह अनुपयोगी है।
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