जीवन-केन्द्रित पाठ्यक्रम क्या है ? यह किन सिद्धान्तों पर आधारित है? लिखिए।

जीवन-केन्द्रित पाठ्यक्रम क्या है ? यह किन सिद्धान्तों पर आधारित है? लिखिए। 

उत्तर— जीवन-केन्द्रित पाठ्यक्रम–शिक्षा को जीवन के लिए तैयारी माना जाता है। इसका तात्पर्य है कि शिक्षा ऐसी होनी चाहिये जो बालक में ऐसी योग्यताएँ तथा क्षमताएँ विकसित करें जो उसके भावी जीवन को सफल बना सके। बचपन में प्राप्त शिक्षा ऐसी हो जिसके आधार पर वह अपने प्रौढ़ जीवन की विविध समस्याओं का समाधान कर सके। शिक्षा का पाठ्यक्रम ऐसा हो जो बालक में स्वावलम्बन विकसित कर सके, जो बालक में सामाजिक गुणों का विकास कर सकें तथा प्रजातंत्र के लिए वांछित गुणों का विकास कर सके। संक्षेप में हम कह सकते है कि शिक्षा का पाठ्यक्रम ऐसा हो जो बालक को जीवन के लिए तैयार कर सकें। ऐसा पाठ्यक्रम जो बालक को भावी जीवन के लिए तैयार करता है जीवन-केन्द्रित पाठ्यक्रम कहलाता है।
जीवन-केन्द्रित पाठ्यक्रम के सिद्धान्त—जीवन केन्द्रित पाठ्यक्रम अग्रांकित सिद्धान्तों पर आधारित होता है—
(1) भावी जीवन का सिद्धान्त—इस सिद्धान्त के अनुसार पाठ्यक्रम ऐसा होना चाहिये जो बालकों को भावी जीवन के लिए तैयार कर सकें। पाठ्यक्रम बालक को ऐसी शिक्षा दे तथा उसमें ऐसे गुणों का विकास करे जिससे वह अपने प्रौढ़ जीवन में स्वयं का समाज का तथा राष्ट्र का अधिक-से-अधिक कल्याण कर सके ।
(2) समन्वय का सिद्धान्त—पाठ्यक्रम में जो भी विषय रखे जायें वे एकीकृत तथा सह-सम्बन्धित हों। जीवन एक एकीकृत इकाई है अतः शिक्षा भी एकीकृत होनी चाहिये। इसके लिए आवश्यक है कि विषय-वस्तु विभिन्न खण्डों में प्रस्तुत न करके एकीकृत रूप में प्रस् की जाए।
(3) लोच का सिद्धान्त—जीवन केन्द्रित पाठ्यक्रम में लोच होनी चाहिये जिससे आवश्यकता पड़ने पर उसे सुविधापूर्वक परिवर्तित किया जा सके।
(4) विविधता का सिद्धान्त—जीवन से सम्बन्धित पाठ्यक्रम विविधता होनी चाहिये जिससे बालक अपनी व्यक्तिगत विशेषताओं के अनुसार पाठ्य-वस्तु का चयन कर सके। पाठ्यक्रम जितना व्यापक एवं विविधतापूर्ण होगा, वह व्यक्तिगत विभिन्नताओं के सिद्धान्त का उतना ही अधिक पालन करेगा।
(5) बाल केन्द्रितता का सिद्धान्त—जीवन केन्द्रित पाठ्यक्रम बाल केन्द्रित भी होता है। इस प्रकार के पाठ्यक्रम बालकों की रुचियों, योग्यताओं दक्षताओं एवं आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर बनाये जाते हैं।
(6) क्रियाशीलता का सिद्धान्त—जीवन से सम्बन्धित पाठ्यक्रम में छात्र क्रियाओं की पर्याप्त व्यवस्था होती है। क्रियाओं के माध्यम से बालक करके सीखता है और स्वयं करके सीखा हुआ ज्ञान न केवल अधिक प्रभावी ही होता है वरन् व्यावहारिक भी होता है।
(7) उपयोगिता का सिद्धान्त—जीवन केन्द्रित पाठ्यक्रम छात्रजीवन के लिए उपयोगी होता है। इस प्रकार के पाठ्यक्रम में केवल ऐसे तत्त्व एवं विषय-वस्तु को ही शामिल किया जाता है जो जीवन के लिए उपयोगी होते हैं ।
(8) सामाजिकता का सिद्धान्त—बालक को अपना सारा जीवन समुदाय तथा समाज में ही व्यतीत करना है। अतः बालक सामाजिक दक्षता का विकास करना आवश्यक होता है जिससे बालक स्वस्थ सामाजिक व्यतीत कर सके । अतः जीवन-केन्द्रित पाठ्यक्रम ऐसा हो जो बालकों में सामाजिक दक्षता का विकास कर सके ।
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