‘‘क्षेत्रीय भ्रमण एवं पर्यटन शिक्षण में महत्वपूर्ण है।” बताते हुए लाभों का वर्णन कीजिए ।
‘‘क्षेत्रीय भ्रमण एवं पर्यटन शिक्षण में महत्वपूर्ण है।” बताते हुए लाभों का वर्णन कीजिए ।
उत्तर— क्षेत्रीय भ्रमण एवं पर्यटन– विद्यालय एक सीमित स्थान है। यहाँ बालकों के सीखने की संभावनाएँ भी सीमित रहती हैं। पर्यटन के द्वारा बालकों को स्वयं प्रत्यक्ष अधिगम अनुभव प्राप्त करने के सुअवसर प्राप्त होते हैं। उन्हें सूक्ष्म निरीक्षण, परीक्षण, बौद्धिक शक्तियों के विकास करने में सहायता मिलती है। क्षेत्रीय भ्रमण में छात्रों को विद्यालय प्रांगण से बाहर आकर सामाजिक और प्राकृतिक, भौगोलिक, ऐतिहासिक, औद्योगिक वातावरण में बहुत-सी वस्तुओं, क्रियाओं को प्रत्यक्ष रूप से देखने के अवसर मिलते हैं।
क्षेत्रीय भ्रमण एवं पर्यटन से तात्पर्य उन स्थानों पर घूमना और अध्ययन करना है जहाँ वैज्ञानिक तथ्यों, घटनाओं और प्रक्रियाओं का प्रत्यक्ष निरीक्षण और अध्ययन संभव है, इस प्रकार के स्थानों में जंगल, औद्योगिक केन्द्र, अस्पताल आदि आते हैं।
क्षेत्रीय पर्यटन के उद्देश्य क्षेत्रीय पर्यटन के उद्देश्य निम्न हैं—
(i) वैज्ञानिक विधि से कार्य करने का प्रशिक्षण देना ।
(ii) छात्रों को सामान्य विज्ञान के दैनिक जीवन में व्यावहारिक महत्त्व को बताना।
(iii) छात्रों में सहयोग व सौहार्द की भावना का विकास करना।
(iv) प्राकृतिक पर्यावरण के प्रति रुचि विकसित करना ।
(v) छात्र की निरीक्षण शक्ति का विकास करना ।
(vi) अपने आस-पास के वातावरण में दिखाई देने वाली वस्तुओं का ज्ञान कराना।
(vii) वैज्ञानिक धारणाओं को स्पष्ट करना।
(viii) छात्रों में वैज्ञानिक अभिवृत्ति व अभिरुचि का विकास करना।
क्षेत्र पर्यटन का आयोजन– प्राथमिक स्तर पर पर्यटन उत्तरदायित्व पूर्ण रूप से शिक्षक पर ही होता है लेकिन माध्यमिक स्तर पर छात्र भी अध्यापक का सहयोग करते हैं। क्षेत्र पर्यटन निम्न सोपानों में सम्पन्न किया जाता है—
(1) पर्यटन स्थल का चुनाव– पूर्ण रूप से पर्यटन तभी सफल हो सकता है जबकि शिक्षक भौगोलिक, सामाजिक एवं औद्योगिक वातावरण से संबंधित प्रकरण का चयन करके उपयुक्त स्थान का चुनाव करे । अतः पर्यटन की तैयारी के लिए सबसे पहला कार्य स्थल का चुनाव करना होता है। पर्यटन स्थल का चुनाव करते समय निम्न बातों को ध्यान में रखना आवश्यक है—
(i) पर्यटन स्थल का चुनाव बालकों के आयु व मानसिक स्तर के अनुसार होना चाहिए ।
(ii) उद्देश्यों को ध्यान में रखकर पर्यटन स्थल का चुनाव करना चाहिए।
(iii) धन की उपलब्धता के अनुसार पर्यटन स्थल दूर या पास होना चाहिए।
(iv) पर्यटन स्थल से विद्यालय दूरी को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। प्राथमिक स्तर के बालकों के लिए कम दूरी व माध्यमिक स्तर के बालकों के लिए अधिक दूरी के स्थान का चुनाव किया जा सकता है।
(2) पर्यटन की पूर्व तैयारी– स्थान के चुनाव के बाद उसकी पूर्व की तैयारी की जाती है, इसके लिए निम्न बातों को ध्यान में रखना चाहिए—
(i) अधिकारियों से भ्रमण की तिथि की अनुमति लेना ।
(ii) छात्रों को आवश्यक सामग्री के निर्देश देना, जैसे-भोजन, डायरी, पेन आदि ।
(iii) छात्रों को अभिभावकों से उनकी अनुमति लेना ।
(iv) छात्रों के रहने, खाने-पीने संबंधी सुविधाओं की व्यवस्था करना ।
(v) आने-जाने के लिए वाहन की व्यवस्था करना।
(vi) विभिन्न कार्यों के लिए छात्रों के अलग-अलग समूह बनाना ।
जैसे – (i) व्यवस्था समिति, (ii) शैक्षिक समिति, (iii) परिवहन समिति, (iv) भोजन, नाश्ता समिति, (v) मनोरंजन समिति आदि ।
(3) पर्यटन का क्रियान्वयन– इसमें शिक्षक व छात्र पूर्व निर्धारित स्थान पर एकत्रित होकर अपने द्वारा निर्धारित साधन द्वारा गन्तव्य की ओर प्रस्थान करते हैं। सभी छात्र अपना-अपना कार्य करते हैं तथा शिक्षक उनकी गतिविधियों का निरीक्षण करते हैं ।
(4) पर्यटन से प्राप्त सामग्री– इस चरण में भ्रमण से प्राप्त सूचनाओं एवं सामग्रियों को व्यवस्थित करना आता है, इसे निम्न प्रकार किया जाता है—
(अ) विवेचन—
(i) इसमें भ्रमण के स्थान का जानकारी के अनुसार विवेचन किया जाता है।
(ii) भ्रमण के विभिन्न पक्षों पर निबंध लिखे जाते हैं।
(ब) प्रदर्शन– भ्रमण स्थल से प्राप्त सामग्री को प्रदर्शित किया जाता है।
(स) प्रतियोगिता– पर्यटन से प्राप्त जानकारी पर छात्रों के मध्य प्रतियोगिता सम्पन्न कराई जाती है।
(5) मूल्यांकन– इसमें भ्रमण के अनुभव कमियों तथा सुझाव तथा इन पर विस्तृत चर्चा की जाती है। आदि रखे जाते हैं
(6) रिपोर्ट लिखना– इस चरण में भ्रमण के प्रारम्भ से मूल्यांकन तक के सभी क्रियाकलापों को व्यवस्थित रूप में लिखकर टाइप किया जाता है और उसे मार्गदर्शक पत्रिका के रूप में भविष्य के लिए विद्यालय पुस्तकालय में रखा जाता है।
पर्यटन के लाभ– पर्यटन के निम्न लाभ हैं—
(i) भ्रमण छात्र शिक्षक और छात्र – छात्रा के मध्य औपचारिकतापूर्ण संबंधों को समाप्त कर देते हैं। इसमें सभी एक-दूसरे को समझने लगते हैं।
(ii) विभिन्न स्थानों के पर्यटन से छात्रों को उन उद्देश्यों की प्राप्ति हो जाती है जो कक्षा – शिक्षण द्वारा संभव नहीं है।
(iii) पर्यटन विभिन्न प्रकार के छात्रों को उनके स्तर के आधार पर पहचान सकता है ।
(iv) भ्रमण से बालकों में वैज्ञानिक अभिवृत्ति व अभिरुचि का विकास होता है।
(v) पर्यटन से छात्रों को पढ़ाई नीरस नहीं लगती वे अपना
दैनिक पाठ्यक्रम पूरा करने में पुनः रुचि लेने लगते हैं।
क्षेत्रीय भ्रमण की सीमायें– क्षेत्रीय भ्रमण की निम्न सीमायें होती हैं—
(i) इससे कक्षा-शिक्षण में बाधा आती है।
(ii) इसमें दुर्घटनाओं का अधिक डर बना रहता है; जैसे- बस दुर्घटना, नदी में डूबना
(iii) गरीब – निर्धन छात्र भ्रमण में भाग लेने में असमर्थ होते हैं। अतः वे इसका लाभ नहीं उठा सकते।
(iv) इसमें समय व धन अधिक लगता है।
क्षेत्रीय भ्रमण के समय शिक्षक के कर्त्तव्य—
(i) शिक्षक को छात्रों की निगरानी रखनी चाहिए । नदी, झील, कारखाने, बिजली आदि स्थानों पर सावधानी रहने के निर्देश देने चाहिए ।
(ii) पूर्व से तैयार कार्यक्रम के अनुसार ही भ्रमण कार्य आयोजित किया जाना चाहिए।
(iii) निरीक्षण कार्य के बाद छात्रों का मनोरंजन भी करना चाहिए।
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