‘मूल्यों’ से आपका क्या अभिप्राय है ?

‘मूल्यों’ से आपका क्या अभिप्राय है ?

उत्तर— मूल्यों का अर्थ — मूल्य सहित जीवन ही अर्थपूर्ण है, मूल्य रहित जीवन कुछ भी नहीं। जो मनुष्य मूल्यों को महत्त्व देता है, वो समाज में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। ऐसा व्यक्ति समय को महत्त्व देता है, वह प्रत्येक पल का भरपूर आनन्द लेता है एवं उसका भरपूर उपयोग करता है। अतः प्रत्येक वस्तु जिसका महत्त्व होता है, उसे हम मूल्य कहते हैं। सत्य, ईमानदारी, अच्छाई, आदि मूल्य है, जबकि झूठ, बेईमानी आदि अवमूल्य है । Value शब्द का उद्भव ‘Valure’ से हुआ है जो कि लेटिन भाषा का शब्द है, जिसका तात्पर्य महत्त्व, उपयोगिता अथवा वांछनीयता से लगाया जाता है। मूल्य समाज में विभिन्न आदर्शों, प्रतिमानों के रूप में समाज को उचित दिशा निर्देशन प्रदान करते हैं। समाज में व्याप्त मूल्य एवं आदर्श सामाजिक व्यक्तित्व विकास एवं चरित्र निर्माण की दृष्टि से वांछनीय एवं उपयोगी है। मूल्य एक ऐसी आचरण संहिता या सद्गुणों का समूह है, जिसे व्यक्ति अपनाकर अपने व्यक्तित्व का विकास कर सकता है। भारतीय धर्म ग्रन्थों में मूल्य के लिए ‘शील’ शब्द का प्रयोग हुआ है जो मूल्य का पर्याय नहीं वरन् ‘नजदीकी’ शब्द है । –

मूल्य की परिभाषाएँ—
जॉन जे. केन (John J. Kane) के अनुसार, “मूल्य वे आदर्श, विश्वास या मानक हैं, जिन्हें समाज या समाज के अधिकांश सदस्य किए हुए होते हैं।”
सी. वी. गुड के अनुसार, “मूल्य वह चारित्रिक विशेषता है जो मनोवैज्ञानिक सामाजिक और सौन्दर्य-बोध की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। लगभग सभी विचार मूल्यों के अभीष्ट चरित्र को स्वीकार करते
आलपोर्ट के अनुसार, “मूल्य एक मानव विश्वास है जिसके आधार पर मनुष्य वरीयता प्रदान करते हुए कार्य करता है । “
जैक आर. फ्रैंकलिन के अनुसार, “मूल्य आचार, सौन्दर्य, कुशलता या महत्त्व के वे मानदण्ड है, जिनका लोग समर्थन करते हैं, जिनके साथ वे जीते हैं तथा जिन्हें वे कायम रखते हैं।”
जेम्स पी. शेयर तथा विलियम स्ट्रांग का मत है कि, “मूल्य महत्त्व के बारे में निर्णय के मानदण्ड तथा नियम है ये वे मानदण्ड है जिनसे हम चीजों (लोगों, वस्तुओं, विचारों, क्रियाओं तथा परिस्थितियों) के अच्छा, महत्त्वपूर्ण वांछनीय होने अथवा खराब महत्त्वहीन व तिरस्करणीय होने के बारे में निर्णय करते हैं। “
स्वामी विवेकानन्द जी का यह कथन है कि, “हमें वह शिक्षा चाहिए जिससे व्यक्ति चरित्रवान बनता है और उसकी प्रतिभा व मन की शक्ति का विस्तार होता है । ” शिक्षा ही एक मात्र वह साधन है जो व्यक्ति को चारित्रिक एवं जीवन के उत्तम आदर्शों से अवगत कराती है।
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