गेने द्वारा वर्णित अधिगम के आठ प्रकारों को समझाइये ।
गेने द्वारा वर्णित अधिगम के आठ प्रकारों को समझाइये ।
उत्तर— गेने का वर्गीकरण जो अधिगम के प्रकारों से सम्बन्धित है, निम्न प्रकार हैं—
वर्गीकरण के सम्बन्ध में एक दूसरा अभिगमन गेने द्वारा विकसित किया गया है। इसमें आठ प्रकार का सीखना सरल से जटिल तक श्रेणीबद्ध किया जाता है। ये आठ श्रेणियाँ आगे दिये हुए चार्ट में दिखाई गई हैं।
गेने ने ब्लूम इत्यादि से अधिक विशेषीकरण की हुई नामावली का प्रयोग किया । वह कुछ ब्लूम के मध्य और नीचे के स्तरों के सीखने के वर्गीकरण के और सूक्ष्म विभेद और उपवर्ग प्रस्तुत करता है। दूसरी ओर वह अपने वर्गीकरण में कुछ उन उच्च वर्गों को सम्मिलित नहीं करता, जो दूसरे वर्गीकरण में हैं। दोनों ही प्रणालियों में अलग-अलग लाभ और हानियाँ हैं। किन्तु दोनों ही शिक्षण की योजना बनाने तथा विश्लेषण करने में उपयोगी हैं।
गेने सब उच्च स्तर के सीखने को श्रेणियों पर केन्द्रित मानता है जो साधारण पारस्परिक अनुबन्धन से प्रारम्भ होकर क्रिया-प्रसूत अनुबन्धन तक होती हैं। अलग-थलग सम्बन्ध एवं प्रतिक्रियायें एक बड़े सम्बन्ध में प्रक्रिया, जिसे जंजीरीकरण कहते हैं, के द्वारा मिल जाते हैं और अन्तिम रूप में अशाब्दिक व्यवहार जो अनुबन्धन द्वारा सीखा जाता है वह शब्दों के साथ संयुक्त हो जाता है। व्यवहार को शाब्दिक रूप में व्यक्त किया जाता है और आखिर में अवधारणाओं का निर्माण हो जाता है। अवधारणाओं के साथ और अनुभव ऐसे सम्बन्धों की ओर ले जाते हैं जो सामान्य नियमों को विकसित कर देते हैं और अन्त में चिन्तन एवं समस्या हल से कुशलतायें विकसित हो जाती हैं । यद्यपि यह वर्गीकरण व्यवहारवादी उन्मुखता लिए हुए है, फिर भी यह सामान्य प्रतिकृति विकासात्मक मनोविज्ञान की खोजों के अनुरूप भी होती है ।
गेने ने यह भी दिखाया है कि कैसे उसकी व्यवस्था कार्य- विश्लेषण में काम आ सकती है। कार्य- विश्लेषण शब्दों का प्रयोग गेने सीखने के कार्यों को व्यवस्थित ढंग से विश्लेषण करने की प्रक्रिया के लिए करता है । यह विश्लेषण वर्गों की पहचान करने के लिए, यह निर्धारित करने के लिए कि किस प्रकार का सीखना इसमें निहित है तथा यह निर्णय करने के लिए कि उसका शिक्षण देने के लिए सर्वोत्तम विधि कौनसी है, किया जाता है। गेने सीखने को संगठित तथा श्रेणीबद्ध करने के सम्बन्ध में निर्देश भी देता है और सुझाव भी देता है कि किस प्रकार सुधारात्मक शिक्षण दिया जाय जो कि इस बात पर निर्भर करता है कि कहाँ और कौनसे विद्यार्थी कुशलताओं की एक श्रेणी, जो एक दिये हुए प्रयोजन को प्राप्त करने के लिए होती है उसमें असफल हुए हैं।
कार्य-विश्लेषण में सीखने के उद्देश्यों को उनके छोटे अंशभूतों में बाँटना होता है और फिर इन अंशभूत भागों को और छोटे अंशभूत भागों में बाँटना होता है। स्पष्ट है कि ऐसा करने के लिए कोई एक मार्ग नहीं है और सैद्धान्तिक रूप से जो व्या अंशभूत भागों की पहचान की है वह असंख्य है किन्तु उन अंशभूत भागों की पहचान सरल होती है जो कि पहले पढ़ाये गए सीखने के उद्देश्यों के समान होते हैं। इस प्रकार से एक विशिष्ट कार्य – विश्लेषण, जो एक शिक्षक कर सकता है, उसमें सीखने के नये उद्देश्यों को अंशभूत में बाँटना होता है जो पहले उद्देश्यों के संचयन का प्रतिनिधित्व करते हैं। नये कार्य नये उद्देश्यों के जोड़ को शामिल करते हैं । वह निश्चित कर लेते हैं कि जो उद्देश्य पहले सीखे गये और अभ्यास अलग से किये गये अब संघ के रूप में प्रयोग किये जायें। ऐसा विश्लेषण शिक्षकों को कार्यों की आन्तरिक संरचना को देखना, तर्कपूर्ण ढंग से सूचना के श्रेणीबद्ध प्रस्तुतीकरण की योजना बनाना तथा संभवत: उठने वाली सीखने की कठिनाइयों का पूर्वानुमान लगाना संभव बनाता है।
गेने की आठ सीखने की जटिलता में बढ़ती हुई श्रेणियाँ—
समस्या हल
नियम सीखना
अवधारणा सीखना
विभेद सीखना
शाब्दिक सम्बन्ध सीखना
जंजीरीकरण
उत्तेजक प्रतिक्रिया सीखना
संकेतक सीखना
(1) संकेतक सीखना– इसका उदाहरण पावलव का अनुबन्ध का प्रयोग है जिसमें घटी की आवाज सुनकर कुत्ता लार टपकाता है । यह सबसे निचले स्तर का सीखना है। इस स्तर पर अनैच्छिक प्रतिक्रियाएँ होती हैं इसलिए यह दूसरे सात प्रकार के सीखने से भिन्न है।
(2) उत्तेजक प्रतिक्रिया सीखना– यह दूसरे स्तर का सीखना है जिसका उदाहरण स्किनर (Skinner) के क्रिया-प्रसूत अनुबन्धनसम्बन्धी प्रयोग हैं जिनमें ऐच्छिक क्रियाएँ पुष्टिकरण द्वारा पनपती हैं।
(3) जंजीरीकरण– व्यक्ति के अर्जित कार्य, जो S-R सीखने द्वारा होते हैं, वे आपस में संयुक्त हो जाते हैं जब वह तेजी से एक के बाद एक उचित क्रम में होते रहते हैं और पुष्टिकरण की ओर ले जाते हैं।
(4) शाब्दिक सम्बन्धित सीखना– शाब्दिक जंजीरें एक प्रक्रिया द्वारा अर्जित होती हैं जिसमें यह तत्त्व सम्मिलित होते हैं : S-R सम्बन्ध जो शब्दों के रूप में पहले से अर्जित हैं, एक सांकेतिक सम्बन्ध नये और पुराने शब्दों में, प्रत्येक कड़ी की अपने बाद आने वाली कड़ी से समीपता, नई प्रतिक्रिया सही है इसका संकेत ।
(5) विभेद सीखना– विद्यार्थी अपने शाब्दिक सम्बन्धी प्रत्युत्तरों में जैसे-जैसे उनके प्रत्युत्तरों का भण्डार बढ़ जाता है और वे जटिल हो जाते हैं, परिवर्तन लाना सीख लेते हैं ।
(6) अवधारणा सीखना– विद्यार्थी वस्तुओं अथवा घटनाओं के साथ एक संयुक्त रूप में प्रतिक्रिया करते हैं; उदाहरण के लिए – बालक मध्य की अवधारणा, विभिन्न वस्तुएँ जो एक सरल रेखा में संजोई होती हैं उनके कई प्रकार के समूह देख कर सीख जाते हैं। वस्तुएँ छोटी-बड़ी या किसी भी आकार की हो सकती हैं। बालक सीख लेते हैं कि मध्य सदैव उसको बताता है जो दूसरों के बीचों-बीच होता है।
(7) नियम सीखना– विद्यार्थी संयुक्त करना सीखते हैं अथवा अवधारणाओं की जंजीरों, जिनको उन्होंने पहले सीख लिया है, आपस में इस प्रकार सम्बन्धित करना सीख लेते हैं कि जो कुछ उन्होंने सीखा है उसे विभिन्न प्रकार की समान स्थितियों में प्रयोग कर सकने योग्य हो जाते हैं। जैसे कि एक छोटा बालक गोल और गेंद की अवधारणाओं को मिला देता है जब वह सीख जाता है कि गोल वस्तुएँ लुढ़कती हैं।
(8) समस्या हल– व्यक्ति नियमों को इस प्रकार संयुक्त करना सीखते हैं कि वे इस योग्य हो जाते हैं कि नियमों की एक बड़ी संख्या को नई स्थितियों में प्रयोग करना सीख लेते हैं जैसे एक बालक, जो यह सीख लेता है कि गोल वस्तुएँ लुढ़कती हैं, अपनी गेंद को ऐसे स्थान पर रखता है जहाँ से वह लुढ़केगी नहीं ।
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