‘जनांकिकी लाभ’ क्या है? आर्थिक संवृद्धि पर इसके प्रभाव को स्पष्ट कीजिए ।
‘जनांकिकी लाभ’ क्या है? आर्थिक संवृद्धि पर इसके प्रभाव को स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर-‘जनांकिकी लाभ’ अर्थव्यवस्था में मानव संसाधन के सकारात्मक और सतत् विकास को दर्शाता है। यह जनसंख्या ढांचे में बढ़ती युवा एवं कार्यशील जनसंख्या (15 से 64 वर्ष आयु वर्ग) तथा घटते आश्रितता अनुपात के परिणामस्वरूप उत्पादन में बड़ी मात्रा का सृजन प्रदर्शित करता है। इस स्थिति में जनसंख्या पिरामिड उल्टा बनेगा अर्थात् इससे कम जनसंख्या आधार से ऊपर की ओर बड़ी जनसंख्या की ओर बढ़ते हैं।
दूसरे शब्दों में, ‘जनांकिकी लाभ’ उस स्थिति को कहते हैं जब किसी देश की जनसंख्या का बाहुल्य 15-64 वर्ष की आयु हो। 15 वर्ष से कम आयु के बच्चों व 64 वर्ष से अधिक आयु के लोगों पर 15-64 वर्ष की आयु के भीतर जो लोग हैं, उन्हें पैसा खर्च करना पड़ता है। जितनी यह स्थिति कम होगी, वहां उतनी ही आय अधिक समझना चाहिए। कुछ वर्ष पूर्व जब डिकंस का जिक्र किया जाता था – यानी डबल इनकम नो किड्स। परन्तु विकासशील देशों में इस दृष्टि से तो स्थिति बुरी ही नहीं, अपितु भयावह है।
कार्यशील जनसंख्या हेतु संसाधन के अभाव में यह लाभ, हानि में परिवर्तित हो जाता है। भारत जैसे अन्य विकासशील देशों की स्थिति ऐसी ही है। तेजी से बढ़ती जनसंख्या देश की आर्थिक सामाजिक समस्याओं की जननी बनकर देश के विकास के लिए खतरे की घंटी बन रही है। बढ़ती जनसंख्या देश में गरीबी, कुपोषण, शहरीकरण और मलिन बस्तियों जैसी कई चुनौतियों को बढ़ा रही है ।
• संसाधन के अभाव में बढ़ती जनसंख्या की आर्थिक संवृद्धि पर प्रभाव के निम्न बिन्दु द्रष्टव्य हैं –
> बेरोजगारी – रोजगारहीन जनसंख्या का सीधा संबंध आर्थिक संवृद्धि के प्रतिकूल स्थिति से है। यही कारण है कि कई देशों के आर्थिक विकास दर संतोषजनक होने के बावजूद रोजगार के अवसर उतने चमकीले नहीं हैं।
> खाद्यान्न संकट – खाद्यान्न उत्पादन दर में लगातार वृद्धि के बावजूद बढ़ती जनसंख्या के कारण उत्पादन वृद्धि आवश्यकता से कम दिखाई देती है। कई देशों को तो खाद्यान्न का आयात तक करना पड़ जाता है। भारत के मामले में, ‘इंडियन-काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल रिलेशन’ का कहना है कि भारत में उत्पादन घटने, ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ने, मानसून के धोखे की आशंका, बायोडीजल के लिए अनाज का उपयोग आदि के कारण 2017 के बाद देश में सभी के लिए भोजना जुटाना कठिन हो जाएगा।
> आवास की समस्या – बढ़ती जनसंख्या के कारण आवास की समस्या से भी जूझना पड़ रहा है। रोजगार की तलाश में शहरों की ओर पलायन से मलीन बस्तियों का निर्माण तेजी से बढ़ रहा है जिससे बुनियादी सुविधा न होने के कारण जीवन आसन्न संकट की ओर उन्मुख होता जा रहा है। आवास की कमी के कारण करोड़ों लोगों को बेघर होकर किराए या अन्य खुले क्षेत्रों में निवास करना पड़ रहा है।
> स्वास्थ्य – खाद्यान्न की कमी एवं मलिन बस्तियों का दुष्प्रभाव स्वास्थ्य पर भी पड़ा है। कुपोषण के शिकार लोग असमय काल का निवाला बनते जा रहे हैं। रही-सही स्थिति स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी ने पूरी कर दी है, जिनसे प्रत्येक वर्ष लोग अनेक बिमारियों की चपेट में आकर मर रहे हैं।
युवा जनसंख्या के कार्यशील होने का चमकीला पक्ष भले ही सामने हो लेकिन उसे मानव संसाधन में परिवर्तित करना कोई साधारण कार्य नहीं है। देश में युवा भरपूर हैं लेकिन हुनरमंद कम हैं, जो साक्षर हैं उनमें भी रोजगारहीनता की स्थिति है। इसका प्रतिकूल प्रभाव आर्थिक संवृद्धि पर सीधा पड़ता है। जरूरी है जन-जागरूकता के जरिए लोगों को छोटे परिवार के फायदे समझाए जाएं तथा देश की बढ़ती जनसंख्या को उपयुक्त नियंत्रित कर रोजगार के विकल्पों पर विचार किए जाएं
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