भारत में ‘कृषि विपणन’ का वर्णन कीजिए एवं ‘कृषि विपणन व्यवस्था’ की कमजोरियों को बताइए। कृषि उपज विपणन व्यवस्था में सुधार की दृष्टि से बिहार सरकार द्वारा क्या उपाय किए गए हैं?

भारत में ‘कृषि विपणन’ का वर्णन कीजिए एवं ‘कृषि विपणन व्यवस्था’ की कमजोरियों को बताइए। कृषि उपज विपणन व्यवस्था में सुधार की दृष्टि से बिहार सरकार द्वारा क्या उपाय किए गए हैं?

अथवा

भारत में कृषि विपणन का वर्णन कीजिए। कृषि विपणन की समस्याओं तथा बिहार सरकार द्वारा किए गए सुधार प्रयासों की चर्चा कीजिए।
उत्तर – भारत कृषि प्रधान देश होने के बावजूद, यहां के खेतिहरों को निर्धनता का सामना करना पड़ता है। कारण स्पष्ट है कि वर्तमान में उसके शोध पर GDP का मात्र 0.3% ही खर्च किया जाता है जिससे भारतीय कृषि को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। उत्पादन होने के बावजूद विपणन की सही व्यवस्था नहीं हो पाने के कारण किसानों को उपज का उचित मूल्य नहीं मिल पाता। विपणन की व्यवस्था पर बिहार सरकार द्वारा उठाए गए कदम भी अभी तक संतोषजनक नहीं हैं।
भारतीय कृषि मानसून आधारित होने के कारण कभी अल्पवृष्टि के कारण उत्पादन कम, तो कभी पर्याप्त वर्षा के कारण उत्पादन ज्यादा होता है, फलस्वरूप मूल्यों में उतार-चढ़ाव होते ही रहते हैं। कृषि उत्पादन की विपणन संबंधी समस्याओं का अध्ययन इसलिए आवश्यक हो जाता है कि जब तक कृषि उत्पादकों को उनके उत्पादन का सही मूल्य नहीं मिल जाता तब तक देश का विकास होना असंभव है। कृषि उपजों का विपणन कृषकों के लिए एक जटिल समस्या है, और उसका निराकरण नियंत्रित मण्डियों की स्थापना के द्वारा करने का प्रयास किया जाता है ।
आज कृषि के सम्मुख अनेकों समस्याएं हैं। इसके दो पहलू हैं- कृषि ट्रेडिंग और कृषि विपणन । कृषि विपणन की प्रमुख समस्याएं निम्नलिखित हैं
1. वर्गीकरण एवं प्रमाणीकरण का अभाव – कृषि उपज मण्डी अधिनियम, 1972 के अंतर्गत इसकी व्यवस्था प्रत्येक मण्डियों में की गई थी, परन्तु सर्वेक्षण में पाया जाता है कि अधिकांश मण्डियों में इसकी सुविधा ही नहीं है। वर्गीकरण एवं प्रमापीकरण के अभाव में किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य नहीं मिल पाता, उपज का मूल्यांकन हेतु किसानों को व्यापारियों पर निर्भर रहना पड़ता है जो कि घाटे का सौदा है।
2. अधिकारों का केन्द्रीकरण – कृषि मण्डियों को स्वायत्त शासन का दर्जा दिया गया है, उनका विकेन्द्रीकरण नहीं किया गया, जिसके कारण सारा संचालन मण्डी बोर्ड के पास केन्द्रित हो गया। विकेन्द्रीकरण न होने के कारण सभी मण्डियां छोटे-छोटे कार्यों को पूर्ण करने के लिए संचालक की स्वीकृति पर निर्भर करती हैं। अतः इनका विकेन्द्रीकरण आवश्यक है।
3. मध्यस्थों की श्रृंखला- किसानों को अपने उपज को मण्डियों तक पहुंचाने में दलालों का सहारा लेना पड़ता है। यद्यपि मण्डियों की स्थापना मूल रूप से विपणन को सुगम बनाने के लिए की गई थी परन्तु, आज भी मध्यस्थों की श्रृंखला कृषि उत्पादों को कम में क्रय कर अधिक मूल्य बेचती हैं। उस श्रृंखला से किसानों का कई तरह का शोषण होता है, जिसके फलस्वरूप उन्हें आर्थिक हानि उठानी पड़ती है।
4. प्रतियोगिता का अभाव – कृषि उत्पाद के विपणन में स्वस्थ प्रतियोगिता कृषकों को उनके उत्पाद का उचित मूल्य दिलाने में सहायक होती है, परन्तु उसका सर्वथा अभाव है। क्रेताओं द्वारा समूह बनाकर समझौते के द्वारा कृषि उपज का क्रय किया जाता है जिसके कारण व्यापारियों को लाभ, तो किसानों को हानि का सामना करना पड़ता है।
5. गोदाम का अभाव – जिले के कुछ मण्डियों में गोदाम का अभाव होने के कारण कृषकों एवं व्यापारियों को कृषि उत्पाद खुले में रखना पड़ता है। वर्षा होने के कारण अनाज सड़ जाते हैं। किसान गोदाम की व्यवस्था नहीं कर पाते क्योंकि उन्हें अगले फसल के लिए वित्त की जरूरत होती है। अतः गोदाम का अभाव कृषि विपणन की प्रमुख समस्याओं में से एक है।
बिहार सरकार द्वारा विपणन की व्यवस्था उल्लेखनीय होते हुए भी अभी तक संतोषजनक नहीं है । भण्डारण के लिए उपयुक्त गोदामों की व्यवस्था जिले के मुख्यालयों में की गई है। इस हेतु शेड एवं कोल्ड स्टोर की व्यवस्था सराहनीय है, किन्तु संपूर्ण राज्य में ऐसी व्यवस्था समान रूप से नहीं है। देख-रेख के अभाव में अनाज बाहर ही सड़ जाते हैं। बिचौलियों की समस्या को समाप्त करने एवं सीधे मण्डियों तक पहुंचाने की व्यवस्था की गई है, परन्तु इसकी व्यावहारिकता में आने
वाली समस्याओं के उन्मूलन का अभी तक इंतजार है। मण्डियों में प्रतियोगिता के लिए अनाज खरीद हेतु FCI तथा मूल्यों में गिरावट न हो डैच की व्यवस्था है, किंतु सरकार की ढुलमुल रवैये एवं किसानों में जागरूकता के अभाव में उपज का उचित मूल्य मिलना आज भी मुश्किल है।
इस प्रकार कृषि प्रधान देश होने के बावजूद आधारिक संरचना एवं सरकारी अवहेलना ने किसानों को दरिद्रता की श्रेणी में पहुंचा दिया है। बिहार सरकार ने भरसक इसे कम करने की कोशिश की है, परन्तु दृढ़ इच्छा का अभाव यहां भी दृष्टिगोचर होते हैं।
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