खेतीबाड़ी के क्षेत्र में भारत में क्या-क्या विकास हुआ है? व्याख्या करें- ( क ) जलस्रोत ( ख ) बीज का चुनाव

खेतीबाड़ी के क्षेत्र में भारत में क्या-क्या विकास हुआ है? व्याख्या करें- ( क ) जलस्रोत ( ख ) बीज का चुनाव

( 44वीं BPSC/2002 )
उत्तर- ( क ) जलस्रोत – भारतीय कृषि मुख्यतया वर्षाजल पर निर्भर है। लगभग 990 लाख हेक्टेयर भूमि पर सिंचाई वर्षा जल से होती है। यह आंकड़ा कुल कृषियोग्य भूमि का लगभग 70 प्रतिशत है। इसके अलावा नहरें, कुएं, तालाब आदि सिंचाई के मुख्य स्रोत हैं। स्वतंत्रता के बाद देश में बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाओं का निर्माण किया जाने लगा एवं इससे निकली नहरें सिंचाई के प्रमुख स्रोत साबित हुए। दामोदर घाटी परियोजना (झारखंड, पं. बंगाल), भाखड़ा-नांगल परियोजना (पंजाब), रिहंद बांध परियोजना उत्तर प्रदेश, हीराकुंड बांध परियोजना (उड़ीसा), मयूराक्षी परियोजना (पश्चिम बंगाल एवं झारखंड) आदि कुछ नदी घाटी परियोजनाएं हैं जिससे इन राज्यों के बड़े भाग में सिंचाई कार्य हो रहा है।
वर्तमान में भारत में कुछ नवीनतम प्रौद्योगिकी का प्रयोग सिंचाई के लिए हो रहा है जिनमें से प्रमुख है – 
1. ड्रिप सिंचाई (Drip Irrigation) — इसे ‘टपक सिंचाई’ भी कहते हैं। इस प्रणाली में खेत में पाइपलाइन बिछा कर स्थान-स्थान पर नोजल लगाकर पौधों की जड़ों में सीधे बूंद-बूंद करके जल पहुंचाया जाता है। सिंचाई की यह विधि रेतीली मृदा, उबड़-खाबड़ खेत तथा बागों के लिए अधिक उपयोगी है।
2. छिड़काव सिंचाई (Sprinkling Irrigation ) – इस विधि में पाइपलाइन द्वारा पौधों पर फव्वारों के रूप में पानी का छिड़काव किया जाता है । रेगिस्तानी क्षेत्रों के लिए यह विधि उपयुक्त है। कपास, मूंगफली, तंबाकू आदि के लिए यह विधि अपनाई जाती है।
3. रेन वाटर हारवेस्टिंग (Rain Water Harvesting) – वर्षा के पानी को आधुनिक विधियों से एकत्र किया जाता है ताकि वे भूमिगत जल में समा जाएं एवं भूमिगत जल का स्तर बना रहे।
(ख) बीज का चुनाव – साठ के दशक में हुई हरित क्रांति में उन्नत बीजों का सबसे ज्यादा योगदान था। मैक्सिको से आयातित गेहूं के उन्नत बीज लार्मा रोजा का भारतीय वैज्ञानिकों ने देशी किस्म सोनेरा के साथ क्रास कर सोनारा-64 नामक उच्च उत्पादक किस्म (HYV) तैयार की जो हरित क्रांति में महत्वपूर्ण साबित हुई।
1963 में राष्ट्रीय बीज निगम का गठन किया गया। इसके बाद 1966 में भारतीय बीज अधिनियम पारित किया गया। कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए संकरण पद्धति का प्रयोग कर उच्च उत्पादकता वाली किस्म (HYV) के बीज उत्पादित किए जा रहे हैं। इसके अतिरिक्त जैव प्रौद्योगिकी के अंतर्गत बीज के प्राकृतिक जीन में परिवर्तन कर जीन संवर्द्धित (GM) बीजों का उत्पादन किया जा रहा है। संकरण पद्धति से तीन चरणों में उन्नत किस्म के बीज, जिसे क्वालिटी बीज कहते हैं, प्राप्त किया जाता है। ये तीन चरण हैं
1. प्रजनक बीज (Breeders Seeds)
2. आधार बीज (Foundation Seeds)
3. प्रमाणित बीज (Certified Seeds)
इसके अलावा GM Seeds भी तैयार किए गए हैं जो कृत्रिम उपायों द्वारा बीजों के गुणों में फेरबदल करके प्राप्त किया जाता है। इनमें कम सिंचाई की आवश्यकता होती है तथा ये कीटरोधी होते हैं। पराजीनी बीज (Transgenic Seeds) एक अन्य उन्नत बीज है जिसमें कृत्रिम उपायों द्वारा बीज के जीन में किसी अन्य वनस्पति या जीव के जीन को मिलाकर विकसित किया जाता है। ये रोगरोधी तथा कीटरोधी होते हैं। साथ ही इनसे प्राप्त फसलों के रूप-रंग, स्वाद में भी इच्छित परिवर्तन किए जा सकते हैं।
( क ) प्रमुख बहुद्देश्यीय परियोजना ( इनका प्रयोग सिंचाई कार्य हेतु किया जा रहा है। )
> दामोदर घाटी परियोजना (झारखण्ड, पश्चिम बंगाल)
> रिहंद बांध परियोजना (उत्तर प्रदेश)
> मयुराक्षी परियोजना (पश्चिम बंगाल एवं झारखंड )
> भाखड़ा-नांगल परियोजना (पंजाब)
> हीराकुड बांध परियोजना (उड़ीसा)
• सिंचाई की नवीनतम तकनीक
> ड्रिप सिंचाई (Drip Irrigation)
> रेन वाटर हारवेस्टिंग (Rain Water Harvesting )
> छिड़काव सिंचाई (Sprinkling Irrigation)
( ख ) उत्तम बीजों के लिए स्थापित संगठन / ढांचा
> 1963 में राष्ट्रीय बीज निगम की स्थापना | 1966 में भारतीय बीज अधिनियम पारित।
>  संकरण पद्धति का उपयोग कर उच्च उत्पादकता किस्म (HYV) वाली बीज उत्पादित किए जा रहे हैं। इसके अलावा GM Seeds, Transgenic Seeds का विकास किया जा रहा है।
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