बन्दुरा के सामाजिक शिक्षण सिद्धान्त की व्याख्या कीजिये ।

बन्दुरा के सामाजिक शिक्षण सिद्धान्त की व्याख्या कीजिये । 

उत्तर— बन्दुरा का सामाजिक शिक्षण सिद्धान्त (Bandura ‘s Theory of Social Development)–किशोरावस्था के सामाजिक शिक्षण सिद्धान्त का प्रतिपादन अल्बर्ट बन्दुरा ने किया था। इसीलिए इनके सिद्धान्त को ‘बन्दुरा का सामाजिक शिक्षण सिद्धान्त’ नाम दिया गया । बन्दुरा का यह मानना था कि किशोरावस्था के स्वरूप की पूर्ण व्यवस्था ‘हॉल’ के पुनरावर्तन एवं अर्जित गुणों की वंशागति के सम्प्रत्ययों तथा ‘फ्रॉयड’ के लिबीडो (काम-इच्छा) के सम्प्रत्यय के आधार पर सम्भव नहीं हो सकता है क्योंकि ‘हॉल का पुनरावर्तन सिद्धान्त’ तथा फ्रॉयड का मनोविश्लेषणात्मक सिद्धान्त किशोरावस्था की विशेषताओं एवं समस्याओं की व्याख्या मुख्यतः जननिक या वंशागति के आधार पर करते हैं जिसे बन्दुरा ने स्वीकार नहीं किया । इनका मानना था कि किशोरावस्था के विकास में निरीक्षण-अनुकूलन का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। निरीक्षण-अनुकूलन को ही इन्होंने सामाजिक शिक्षण की भी संज्ञा दी। इसके अनुसार किशोर बालक तथा किशोरी बालिकाएँ अपनी सामाजिक परिस्थितियों का निरीक्षण कर उचित (वांछित) और अनुचित (अवांछित) दोनों तरह के व्यवहार को स्वतः सीख लेते हैं । जो किशोर आक्रामक व्यवहार का निरीक्षण करते हैं वे आक्रामक व्यवहार करना सीख जाते हैं तथा आक्रामक प्रवृत्ति (आक्रामक व्यक्तित्व वाले) के हो जाते हैं परन्तु जिन किशोरों को यह अवसर प्राप्त नहीं होता है वे इस प्रकार के आक्रामक प्रवृत्ति वाले नहीं होते हैं ।
इन्होंने अपने एक प्रयोग से नर्सरी कक्षा में पढ़ने वाले बालकों को वयस्कों की एक फिल्म दिखाई जिसमें वे एक बड़े प्लास्टिक के गुड्डे के साथ आक्रामक व्यवहार जैसे— खींचना, पीटना तथा मारना आदि कर रहे थे। इस फिल्म को देखने वाले बालकों ने भी अपने खिलौनों को मारने-पीटने तथा नोंचने लगे परन्तु जिन बच्चों ने यह फिल्म नहीं देखी उन्होंने इस तरह का कोई व्यवहार नहीं किया। इस प्रकार इस प्रयोग द्वारा स्पष्ट होता है कि बालकों ने इस प्रकार की अनोखी अनुक्रियाएँ पुनर्बलन के कारण ही सम्पादित की। अनुकरण द्वारा सीखने की प्रक्रिया इस बात पर निर्भर करती है कि ‘मॉडल’ को किस प्रकार का दण्ड या पुनर्बलन मिला।
मॉडल दो प्रकार के होते हैं—
(i) यथार्थ जीवन्त प्रतिमान (Real Life Model)— बालक अपने वास्तविक दुनिया में अपने चारों ओर इस प्रकार के प्रतिमानों को देखते हैं। जैसे—माता-पिता, क्रिकेट फुटबाल आदि खेलों से सम्बन्धित खिलाड़ी आदि।
(ii) प्रतीकात्मक प्रतिमान (Symbolic Model)– इसके अन्तर्गत वे सभी शाब्दिक, अशाब्दिक सामग्रियाँ एवं वस्तुएँ आती हैं। जैसे—देवी-देवताओं की मूर्तियाँ, फिल्म कॉमिक्स, चित्र, कॉमिक्स आदि। अधिगम में दोनों प्रकार के प्रतिमान समान रूप से प्रभावशाली होते हैं। हम स्वयं यह देखते हैं उसे कि बालक टी.वी. या फिल्मों में जो भी देखते हैं, अपने वास्तविक जीवन में अपनाते हैं। किशोरावस्था में यह सब अधिक प्रभावी होता है।
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