धोलावीरा सभ्यता (2650-2100 ई.पू.)

धोलावीरा सभ्यता (2650-2100 ई.पू.)

धोलावीरा ( गुजराती; ધોળાવીરા) भारत के गुजरात राज्य के कच्छ ज़िले की भचाऊ तालुका में स्थित एक पुरातत्व स्थल है। इसका नाम यहाँ से एक किमी दक्षिण में स्थित ग्राम पर पड़ा है, जो राधनपुर से 165 किमी दूर स्थित है। धोलावीरा में सिन्धु घाटी सभ्यता के अवशेष और खण्डहर मिलते हैं और यह उस सभ्यता के सबसे बड़े ज्ञात नगरों में से एक था। इस पुरातत्व स्थल को धोलावीरा गांव के निवासी शंभूदान गढ़वी  ने 1960 के दशक के प्रारम्भ में खोजा था, जिन्होंने इस स्थान पर सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए वर्षों तक प्रयास किये। भौगोलिक रूप से यह कच्छ के रण पर विस्तारित कच्छ मरुभूमि वन्य अभयारण्य के भीतर खादिरबेट द्वीप पर स्थित है। यह नगर 47 हेक्टर (120 एकड़) के चतुर्भुजीय क्षेत्रफल पर फैला हुआ था। बस्ती से उत्तर में मनसर जलधारा और दक्षिण में मनहर जलधारा है, जो दोनों वर्ष के कुछ महीनों में ही बहती हैं। यहाँ पर आबादी लगभग 2650 ईसापूर्व में आरम्भ हुई और 2100 ईपू के बाद कम होने लगी। कुछ काल इसमें कोई नहीं रहा लेकिन फिर 1450 ईपू से फिर यहाँ लोग बस गए। नए अनुसंधान से संकेत मिलें हैं कि यहाँ अनुमान से भी पहले, 3500 ईपू से लोग बसना आरम्भ हो गए थे और फिर लगातार 1800 ईपू तक आबादी बनी रही। धोलावीरा पांच हजार साल पहले विश्व के सबसे व्यस्त महानगर में गिना जाता था था। इस हड़प्पा कालीन शहर धोलावीरा को यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में (2021 चीन में संपन्न यूनेस्को की ऑनलाइन बैठक में) शामिल किया गया है। यह भारत का 40वां विश्व धरोहर स्थल है(march 2022 तक कोई नयी साईट नही खोजी गई है यह नवीनतम है)।




धोलावीरा सभ्यता (2650-2100 ई.पू.)

  • सर्वप्रथम खोज – 1967-68 ई.
  • खोजकर्ता –  जगतपति जोशी।
  • विस्तृत उत्खनन -रवीन्द्रसिंह बिस्ट (1990-91 में)

धोलावीरा भारत के गुजरात राज्य के कच्छ ज़िले की भचाऊ तालुका में स्थित एक पुरातत्व स्थान  है। इसका नाम यहाँ से एक किमी दक्षिण में स्थित गाँव पर पड़ा है, जो राधनपुर से 165 किमी दूरी पर स्थित है। धोलावीरा में सिन्धु घाटी सभ्यता के अवशेष और खण्डहर प्राप्त हुए और यह उस सभ्यता के सबसे बड़े ज्ञात नगरों में से ही एक था। भौगोलिक रूप से यह कच्छ के रण पर विस्तारित कच्छ मरुभूमि वन्य अभयारण्य के भीतर खादिरबेट द्वीप पर स्थित है। यह नगर 47 हेक्टर (120 एकड़) के चतुर्भुजीय क्षेत्रफल पर फैला हुआ था।

बस्ती से उत्तर में मनसर जलधारा और दक्षिण में मनहर जलधारा है, जो दोनों वर्ष के कुछ महीनों में ही बहती हैं। यहाँ पर आबादी लगभग 2650 ईसापूर्व में आरम्भ हुई और 2100 ईपू के बाद कम होने लगी। कुछ काल तक इसमें कोई नहीं रहा लेकिन फिर 1450 ईपू से फिर यहाँ लोग बस गए। नए अनुसंधान से संकेत मिलें हैं कि यहाँ अनुमान से भी पहले, 3500 ईपू से लोग बसना आरम्भ हो गए थे और फिर लगातार 1800 ईपू तक आबादी बनी रही। धोलावीरा पांच हजार साल पहले विश्व के सबसे व्यस्त महानगर में गिना जाता था था। इस हड़प्पा कालीन शहर धोलावीरा को यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में (2021 चीन में संपन्न यूनेस्को की ऑनलाइन बैठक में) सम्मिलित किया गया है। यह भारत का 40वां विश्व धरोहर स्थल है।




धोलावीरा सभ्यता की विशेषताएँ

  1. धोलावीरा नगर तीन मुख्य भागों में विभाजित था, जिनमें दुर्गभाग (140×300 मी.) मध्यम नगर (360×250 मी.) तथा नीचला भाग (300×300 मी.) हैं। मध्यम नगर केवल धोलावीरा में ही पाया गया है। यह संभवतः प्रशासनिक अधिकारियों एवं महत्त्वपूर्ण नागरिकों के लिए प्रयुक्त किया जाता था। दुर्ग भाग में अतिविशिष्ट लोगों के निवास रहे होंगे, जबकि निचला नगर आम जनों के लिए रहा होगा। तीनों भाग एक नगर आयताकार प्राचीर के भीतर सुरक्षित थे। इस बड़ी प्राचीर के अंतर्गत भी अनेक छोटे-बड़े क्षेत्र स्वतंत्र रूप से मजबूत एवं दुर्भेद्य प्राचीरों से सुरक्षित किये गए थे। इन प्राचीर युक्त क्षेत्रों में जाने के लिए भव्य एवं विशाल प्रवेशद्वार बने थे।
  2. धोलावीरा नगर के दुर्ग भाग एवं माध्यम भाग के मध्य अवस्थित 283×47 मीटर की एक भव्य इमारत के अवशेष मिले हैं। इसे स्टेडियम बताया गया है। इसके चारों ओर दर्शकों के बैठने के लिए सीढ़ियाँ बनी हुई थीं।
  3. यहाँ से पाषाण स्थापत्य के उत्कृष्ट नमूने मिले हैं। पत्थर के भव्य द्वार, वृत्ताकार स्तम्भ आदि से यहाँ की पाषाण कला में निपुणता का पर्चे मिलता है। पौलिशयुक्त पाषाण खंड भी बड़ी संख्या में मिले हैं, जिनसे विदित होता है कि पत्थर पर ओज लाने की कला से धोलावीरा के कारीगर सुविज्ञ थे।
  4. धोलावीरा से सिन्धु लिपि के सफ़ेद खड़िया मिट्टी के बने दस बड़े अक्षरों में लिखे एक बड़े अभिलेख पट्ट की छाप मिली है। यह संभवतः विश्व के प्रथम सूचना पट्ट का प्रमाण है।
  5. इस प्रकार धोलावीरा एक बहुत बड़ी बस्ती थी जिसकी जनसंख्या लगभग 20 हजार थी जो मोहनजोदड़ो से आधी मानी जा सकती है। हड़प्पा सभ्यता से उद्भव एवं पतन की विश्वसनीय जानकारी हमें धौलावीरा से मिलती है। जल स्रोत सूखने व नदियों की धरा में परिवर्तन के कारण इसका विनाश हुआ।
  6. गुजरात के कच्छ जिले के मचाऊ तालुका में मानसर एवं मानहर नदियों के मध्य अवस्थित सिन्धु सभ्यता का एक प्राचीन तथा विशाल नगर, जिसके दीर्घकालीन स्थायित्व के प्रमाण मिले हैं। इसका अन्वेषण जगतपति जोशी ने 1967-68 ईस्वी में किया लेकिन विस्तृत उत्खनन रवीन्द्रसिंह बिस्ट द्वारा संपन्न हुआ।
  7. यहाँ 16 विभिन्न आकार-प्रकार के जलाशय मिले हैं, जो एक अनूठी जल संग्रहण व्यवस्था का चित्र प्रस्तुत करते हैं। इनमें दो जलाशय उल्लेखनीय है —
    1. एक बड़ा जलाशय दुर्ग भाग के पूर्वी क्षेत्र में बना हुआ है। यह लगभग 70x24x7.50 मीटर हैं। कुशल पाषाण कारीगरी से इसका तटबंधन किया गया है तथा इसके उत्तरी भाग में नीचे उतरने के लिए पाषाण की निर्मित 31 सीढ़ियाँ बनी हैं।
    2. दूसरा जलाशय 95 x 11.42 x 4 मीटर का है तथा यह दुर्ग भाग के दक्षिण में स्थित है। संभवतः इन टंकियों से पानी वितरण के लिए लम्बी नालियाँ बनी हुई थीं। महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि इन्हें शिलाओं को काटकर बनाया गया है  इस तरह के रॉक कट आर्ट का यह संभवतः प्राचीनतम उदाहरण है।




धौलावीरा से प्राप्त साक्ष्य

  1. अनेक जलाशय के प्रमाण मिले।
  2. निर्माण में पत्थर के साक्ष्य प्राप्त हुए।
  3. पत्थर पर चमकीला पौलिश मिला
  4. त्रिस्तरीय नगर-योजना का साक्ष्य मिला
  5. अपने समय में क्षेत्रफल के दृष्टिकोण से भारतीय सैन्धव स्थलों में सबसे बड़ा शहर कहलाता था।
  6. घोड़े की कलाकृतियाँ के अवशेष भी मिलते हैं
  7. श्वेत पौलिशदार पाषाण खंड मिलते हैं जिससे पता चलता है कि सैन्धव लोग पत्थरों पर पौलिश करने की कला से परिचित थे।
  8. सैन्धव लिपि के दस ऐसे अक्षर प्रकाश में आये हैं जो काफी बड़े हैं और विश्व की प्राचीन अक्षरमाला में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं।
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
  • Whats’App ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *