पत्रिका सम्पादकीय क्या है ? स्पष्ट कीजिए ।

पत्रिका सम्पादकीय क्या है ? स्पष्ट कीजिए । 

उत्तर— पत्रिका सम्पादकीय–पत्रिका प्रकाशन में प्रमुख बात सम्पादन है। सम्पादक जितना चतुर, योग्य विद्वान तथा कार्यकुशल व्यक्ति होगा पत्रिका उतनी ही उत्कृष्ट होगी। पत्र सम्पादक के लिए विद्वान होना उतना आवश्यक नहीं जितना सूझ-बूझ का धनी, मौलिक कल्पनायुक्त तथा गुणग्राही होना । इसी से वह उत्कृष्ट प्रस्तोता होता है। एक कुशल कलाकार की भाँति वह प्राप्त सामग्री का इतना अच्छा चयन, संकलन, सम्पादन करेगा कि पाठक मुग्ध हो जायेगा। इसके लिए उदार दृष्टिकोण अति आवश्यक है ताकि वह विविध विषयों में नवसृजन का महत्त्व तथा उपयोगिता को समझे, उसे ग्रहण करे एवं महत्त्वपूर्ण बात यह है कि वह कर्त्तव्यनिष्ठ तथा मार्गदर्शक हो ताकि वह विद्यालय के कार्यों की सफलता का निर्भीक मार्मिक सिंहावलोकन करे । सम्पादक सुयोग्य हो तो नगण्य निम्न स्तर की सामग्री को भी अतिरोचक आकर्षक रूप में प्रस्तुत कर देगा, लेकिन अकुशल व्यक्ति उत्कृष्ट सामग्री होते हुए भी साधारण रूप में प्रस्तुत करेगा अथवा अप्रभावकारी बना देगा ।
यह एक ज्वलन्त प्रश्न है कि इसमें रचनाएँ किनकी हों किनकी नहीं। एक पक्ष यह आग्रह करता है कि इसमें केवल छात्रों की रचनाओं का स्थान हो, अन्य किसी की यहाँ तक कि भूतपूर्व छात्रों तथा अध्यापकों की भी नहीं। दूसरा पक्ष यह मानता है कि इसमें अध्यापकों की भी रचनाओं को स्थान हो । अर्थात् छात्रों और अध्यापकों दोनों की रचनाओं को। वर्तमान समय में हमारे विद्यालयों में ये सब बातें मिश्रित रूप में प्रचलित हैं।
छात्र रचनाओं ही का औचित्य—इस पत्र में केवल छात्रों की रचनाओं को स्थान देने के पक्ष में प्रबल तर्क हैं । प्रथम तो यह कि यह पत्र ही उनका हैं। उनके ही लिए है, अन्य के लिए नहीं । द्वितीय यह है कि रचनात्मक साहित्य सृजन व लेखनाभ्यास एक बहुमूल्य प्रशिक्षण है जिसकी सार्थकता का यही एकमात्र साधन है। तृतीय यह है कि इसके द्वारा इस शिक्षण प्रशिक्षण के अनेक उद्देश्य सिद्ध होते हैं। चतुर्थ यह है कि विद्यालय छात्रों की प्रगति, उनके विकास के लिए ही तो सब-कुछ करता है । जब पत्र सर्वथा छात्र-छात्राओं ही के लिए है तो तब इसमें उनकी ही रचनाएँ होनी चाहिए अन्य किसी की नहीं ।
अध्यापकों की रचनाओं को स्थान देने के पक्ष में किसी दृष्टि से कोई औचित्य नहीं, शैक्षिक दृष्टि से भी नहीं । प्रथम तो यह पत्र ही छात्रों का छात्रों के लिए है, वैसे ही इसके उद्देश्य विशिष्ट हैं, वैसा ही उसका अपेक्षित बाल स्तर है। अध्यापक के आ जाने से उसके उद्देश्यों तथा स्तरों में बड़ा व्यवधान आ जाता है। इससे दोनों का कोई मेल नहीं बैठता । अध्यापक को चाहिए कि वह स्वयं अपनी रचनाओं को उत्कृष्ट बनाने का वास्तविक प्रयास करें ताकि कोई सम्बन्धित पत्र उसे प्रकाशनार्थ स्वीकार करें। भूतपूर्व छात्रों तथा अध्यापकों की रचनाएँ विद्यालय के अपने पत्र में अधिकांश इसलिए सम्पादक को प्रकाशित करनी पड़ती हैं कि उसके प्रस्तुत करने को छात्रों द्वारा रचित न्यूनतम अपेक्षित स्तर की सामग्री का अभाव है जिसकी पूर्ति इनके द्वारा सरलता से हो जाती है। इसलिए इस विषय में बहुत कठोर नहीं रहा जा सकता। यह अवश्य अपेक्षित है कि विद्यालय उपर्युक्त सब बातों का निष्ठापूर्वक पालन करने का प्रयास करते रहें, लेकिन अध्यापक की रचना को स्थान देने के पक्ष में एक प्रबल तर्क है जिसे भी हम एकदम अस्वीकार नहीं कर सकते । यह कहा गया है कि विद्यालय में अनेकविध शोध, प्रयोग, योजनाएँ, परियोजनाएँ, आयोजन आदि समय-समय पर होते रहते हैं। ये कार्य अध्यापक ही करते हैं ।
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