पाठ्यक्रम विकास पर टिप्पणी लिखिए ।
पाठ्यक्रम विकास पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर— पाठ्यक्रम विकास—इस प्रत्यय में ‘पाठ्यक्रम विकास’ का प्रयोग साधारण अधिक किया जाता है। ‘पाठ्यक्रम विकास’ का अर्थ निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया ज़ो कभी समाप्त नहीं होती है, कहाँ से आरम्भ हुई इसका भी बोध नहीं है। शिक्षण की आवश्यकता की जानकारी छात्रों की उपलब्धियों से हो जाती है जिनको शिक्षक प्राप्त करने का प्रयास करता है। परीक्षण के द्वारा यह भी जानकारी हो जाती है कि किस सीमा तक उद्देश्य प्राप्त हुए हैं।
इसको दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि अधिगम अवसरों के नियोजन द्वारा छात्रों के व्यवहारों में विशिष्ट परिवर्तन लाना तथा परीक्षण द्वारा यह जानना कि किस सीमा तक अपेक्षित परिवर्तन हुआ है। इस प्रत्यय को पाठ्यक्रम विकास की संज्ञा दी जाती है । पाठ्यक्रम का मुख्य लक्ष्य छात्रों का विकास करना है इसलिये पाठ्यक्रम का प्रारूप ऐसा हो जिससे छात्रों के व्यवहारों में अपेक्षित परिवर्तन किया जा सके। यह प्रक्रिया चक्रीय तथा निरन्तर चलने वाली मानी जाती है। इसके प्रमुख तत्त्व चार माने जाते हैं—
(1) शिक्षण उद्देश्य—सभी साधनों का प्रयोग उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये किया जाता है। पाठ्यवस्तु एक साधन है उद्देश्यों को प्राप्त करने की दृष्टि से ।
(2) शिक्षण विधि तथा पाठ्यवस्तु—छात्रों में अपेक्षित व्यवहार परिवर्तन के लिये अधिगम परिस्थितियाँ तथा अवसर शिक्षण विधियों एवं पाठ्यवस्तु की सहायता से उत्पन्न किये जाते हैं जिससे उद्देश्य प्राप्ति की जा सके ।
(3) परीक्षण प्रक्रिया—इसके द्वारा यह सुनिश्चित किया जाता है कि शिक्षण विधियों तथा पाठ्यक्रम से किसी सीमा तक उद्देश्यों को प्राप्त किया गया है
(4) पृष्ठपोषण—परीक्षण का अर्थापन शिक्षकों तथा छात्रों को पृष्ठपोषण प्रदान करता है तथा पाठ्यक्रम के प्रारूप को सुधार के लिये दिशा मिलती है। पृष्ठपोषण मूल्यांकन का प्रभाव होता है।
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